भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सहयोग में नई उड़ान: FY26 में कच्चे तेल का आयात 150% तक बढ़ने की उम्मीद | Crude Oil Imports of India

Crude Oil Imports of India: भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सहयोग एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार, भारत अमेरिका से कच्चे तेल का आयात वित्तीय वर्ष 2026 (FY26) में 150% से अधिक बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। यह वृद्धि सिर्फ दो देशों के व्यापारिक रिश्तों को ही नहीं, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में भारत की बदलती भूमिका को भी दर्शाती है।

FY26 की पहली तिमाही में ही 114% की ज़बरदस्त बढ़त | Crude Oil Imports of India from USA

FY26 की पहली तिमाही के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। इस अवधि में भारत ने अमेरिका से $3.7 बिलियन का कच्चा तेल आयात किया, जो पिछले साल (FY25) की इसी अवधि में सिर्फ $1.73 बिलियन था। यानी साल-दर-साल (YoY) के आधार पर यह बढ़त करीब 114% की है।

यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए अमेरिका की ओर लगातार झुक रहा है, खासकर तब जब वैश्विक स्तर पर तेल की आपूर्ति को लेकर कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।

अमेरिका की हिस्सेदारी बढ़कर 8% पहुंची

crude oil imports of india

कभी जो अमेरिका भारत के कच्चे तेल आयात में मामूली खिलाड़ी हुआ करता था, अब उसकी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। जुलाई 2025 में अमेरिका से आने वाला कच्चा तेल भारत के कुल आयात का 8% हो गया, जबकि पिछले साल यह सिर्फ 3% था।

इस तेज़ वृद्धि के पीछे कई कारण हैं — अमेरिका का शेल ऑयल उत्पादन, आपूर्ति स्थिरता, और रणनीतिक साझेदारी की भावना प्रमुख हैं।

कच्चे तेल का आयतन भी तेजी से बढ़ा

केवल धनराशि में ही नहीं, बल्कि आयातित तेल की मात्रा (वॉल्यूम) में भी भारी बढ़ोतरी देखने को मिली है। जनवरी से जून 2025 के बीच भारत ने अमेरिका से औसतन 0.271 मिलियन बैरल प्रति दिन (mb/day) तेल आयात किया। जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह संख्या 0.18 mb/day थी।

यानी भारत की ऊर्जा टोकरी में अमेरिका अब एक स्थायी भागीदार बनने की ओर बढ़ रहा है।

LNG कारोबार में भी नई जान

सिर्फ कच्चे तेल तक ही सीमित नहीं, भारत और अमेरिका के बीच तरल प्राकृतिक गैस (LNG) के व्यापार में भी ज़बरदस्त उछाल आया है। वित्तीय वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका से $1.4 बिलियन की LNG खरीदी थी, जो FY25 में बढ़कर $2.4 बिलियन हो गई — लगभग 100% की बढ़ोतरी

LNG की यह बढ़ती मांग भारत की ऊर्जा खपत में हो रहे बदलाव और गैस-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते कदमों को दर्शाती है।

भारत को क्या लाभ हो रहा है इस साझेदारी से?

भारत जैसे विकासशील देश के लिए ऊर्जा आपूर्ति की विश्वसनीयता और कीमतों की स्थिरता बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिका जैसे देश से आयात करने का फायदा यह है कि वहां का उत्पादन भरोसेमंद है और लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स के ज़रिए कीमतें भी काफी हद तक नियंत्रण में रहती हैं।

इसके अलावा, अमेरिका से आयातित तेल में सल्फर की मात्रा कम होती है, जिससे यह रिफाइनरी के लिए बेहतर होता है। इससे पर्यावरणीय लाभ भी मिलता है।

भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण

भारत और अमेरिका के बीच यह ऊर्जा सहयोग केवल व्यापारिक समझौता नहीं है, बल्कि इसमें भू-राजनीतिक महत्व भी छिपा है। ऐसे समय में जब मध्य पूर्व और रूस जैसे पारंपरिक आपूर्तिकर्ता क्षेत्रों में राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है, अमेरिका से तेल आयात भारत को रणनीतिक संतुलन बनाने में मदद करता है।

इसके ज़रिए भारत अपनी आपूर्ति शृंखला को विविध और स्थिर बना रहा है, जो किसी भी आपात स्थिति में काम आ सकती है।

रिफाइनरी क्षमता और इन्फ्रास्ट्रक्चर में हो रहे निवेश

भारत में रिफाइनरी कंपनियां जैसे कि इंडियन ऑयल, रिलायंस, और हिंदुस्तान पेट्रोलियम पहले से ही अमेरिकी क्रूड प्रोसेसिंग के लिए तकनीकी अपग्रेड कर चुकी हैं। बंदरगाहों और पाइपलाइनों में भी निवेश हो रहा है ताकि अमेरिकी तेल की सप्लाई को बेहतर और सस्ती बनाया जा सके।

ऊर्जा सुरक्षा की ओर एक मजबूत कदम

सरकार की ‘ऊर्जा सुरक्षा’ नीति के तहत यह साझेदारी महत्वपूर्ण साबित हो रही है। भारत अब केवल सस्ते स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि भरोसेमंद और स्थायी स्रोतों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है।

अमेरिका के साथ यह बढ़ता सहयोग भविष्य में भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

भारत-अमेरिका का ऊर्जा संबंध हो रहा है और मजबूत

FY26 में भारत द्वारा अमेरिका से कच्चे तेल और LNG का आयात जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह दोनों देशों के बीच गहराते रणनीतिक और आर्थिक रिश्तों का प्रमाण है। ऊर्जा के क्षेत्र में यह सहयोग न केवल भारत की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को भी और मजबूत बनाता है।

इस तरह की साझेदारियां भविष्य के लिए बेहद सकारात्मक संकेत हैं। भारत यदि इस दिशा में लगातार प्रगति करता है, तो वह न सिर्फ अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करेगा, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक बड़ी भूमिका निभाने में भी सक्षम होगा।

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