काफुली उत्तराखंड की पारंपरिक और सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है। यह एक हरी, गाढ़ी और बेहद स्वादिष्ट सब्ज़ी होती है, जिसे पालक (Spinach) और मेथी (Fenugreek) जैसी हरी पत्तेदार सब्ज़ियों से बनाया जाता है। इसमें चावल का आटा मिलाकर इसे गाढ़ापन दिया जाता है और स्थानीय मसालों से इसका स्वाद बढ़ाया जाता है। काफुली न केवल स्वाद में उम्दा होती है, बल्कि सेहत के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।
इतिहास:
उत्तराखंड का खाना सदियों से सादगी, पोषण और मौसम के अनुसार अनुकूलता पर आधारित रहा है। यहाँ के पहाड़ी क्षेत्रों में लंबे समय तक सर्दी पड़ती है, और वहाँ की आबादी के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। ऐसे में काफुली एक संपूर्ण भोजन बन गया है।
काफुली (Kafuli) दरअसल गढ़वाली व्यंजन है, लेकिन कुमाऊं क्षेत्र में भी इसे खूब खाया जाता है। यह उत्तराखंड के दोनों प्रमुख सांस्कृतिक क्षेत्रों — गढ़वाल और कुमाऊं — में प्रसिद्ध है, लेकिन इसकी उत्पत्ति मुख्यतः गढ़वाल क्षेत्र से मानी जाती है।
काफुली का जन्म उस समय हुआ जब सीमित संसाधनों के साथ लोगों को स्वाद और सेहत दोनों का ख्याल रखना पड़ता था। पहाड़ों में पालक, मेथी, बथुआ जैसी सब्जियाँ आसानी से उगाई जाती हैं और चावल का आटा भी घर में प्रचुर मात्रा में होता है। इन दोनों सामग्रियों के संगम से बना ‘काफुली’ वास्तव में उत्तराखंड की खानपान परंपरा की पहचान बन गया है।
आज यह व्यंजन उत्तराखंड के घर-घर में बनाया जाता है, खासतौर पर सर्दियों में। यह राजसी भोज हो या किसी साधारण घर का दोपहर का खाना – काफुली हमेशा अपनी खास जगह रखता है।
काफुली बनाने की विधि (Kafuli Recipe):
सामग्री:
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पालक – 2 कप (बारीक कटी हुई)
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मेथी के पत्ते – 1 कप (बारीक कटी हुई)
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हरा धनिया – 1/2 कप
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हरी मिर्च – 2
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लहसुन – 5-6 कलियाँ
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अदरक – 1 इंच टुकड़ा
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चावल का आटा – 2 टेबलस्पून
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सरसों का तेल – 2 टेबलस्पून
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जीरा – 1/2 चम्मच
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हींग – 1 चुटकी
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हल्दी – 1/2 चम्मच
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नमक – स्वादानुसार
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पानी – आवश्यकतानुसार
बनाने की विधि:
1. पत्तेदार सब्ज़ियों को उबालना:
पालक, मेथी और हरे धनिए को अच्छी तरह धोकर काट लें। अब इन्हें थोड़े पानी में 5-6 मिनट तक उबालें। उबालने के बाद ठंडा करके इन्हें मिक्सी में पीस लें। साथ ही हरी मिर्च, लहसुन और अदरक को भी इसमें मिला लें और एक महीन पेस्ट बना लें।
2. चावल के आटे का घोल तैयार करें:
एक कटोरी में चावल का आटा लें और उसमें थोड़ा पानी डालकर पतला घोल बना लें। ध्यान रहे कि इसमें गांठ न पड़े।
3. मसालों की तड़का लगाएं:
एक गहरे तले की कढ़ाही में सरसों का तेल गर्म करें। उसमें हींग और जीरा डालें। जब जीरा चटकने लगे तब उसमें हल्दी डालें।
4. पालक-मेथी का पेस्ट डालें:
अब मसाले वाले तेल में पालक-मेथी-धनिया का पेस्ट डालें और मध्यम आंच पर पकाएं। इसे लगभग 5-7 मिनट चलाते रहें।
5. चावल का घोल मिलाएं:
अब इसमें तैयार किया हुआ चावल के आटे का घोल धीरे-धीरे डालें और लगातार चलाते रहें। इससे काफुली में गाढ़ापन आ जाएगा। इसे 10 मिनट तक पकाएं जब तक यह अच्छी तरह से गाढ़ा न हो जाए।
6. नमक और स्वाद मिलाएं:
अंत में नमक डालें और स्वाद अनुसार हल्का गरम मसाला भी डाल सकते हैं। अब गैस बंद कर दें।
परोसने का तरीका:
काफुली को गरमा गरम चावल या मांडुए (रागी) की रोटी के साथ परोसा जाता है। उत्तराखंड में इसे कांसे या पीतल की थाली में परोसना पारंपरिक रूप से शुभ माना जाता है।
काफुली के स्वास्थ्य लाभ:
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पालक और मेथी दोनों आयरन, कैल्शियम, फाइबर और विटामिन्स से भरपूर होती हैं।
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यह व्यंजन शरीर को गर्मी प्रदान करता है, जो खासकर सर्दियों में लाभकारी होता है।
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चावल का आटा ग्लूटन-फ्री होता है और पेट को आराम देता है।
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यह व्यंजन ह्रदय रोगियों और डायबिटीज के मरीजों के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।
काफुली न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत है, बल्कि यह आधुनिक जीवनशैली के लिए भी एक आदर्श भोजन है – पौष्टिक, हल्का और स्वादिष्ट। यह एक ऐसा व्यंजन है जो हर मौसम और हर उम्र के व्यक्ति के लिए फायदेमंद है। यदि आपने अभी तक काफुली का स्वाद नहीं चखा है, तो अगली बार ज़रूर बनाएं – पहाड़ों का स्वाद अब आपके रसोईघर में!
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