Cold War को क्यों कहा गया Cold? जानिए इस ‘ठंडी जंग’ की गर्म सच्चाई!

Cold War यानी शीत युद्ध, इतिहास का वह अध्याय है जिसमें दो महाशक्तियों ने कभी आमने-सामने युद्ध नहीं लड़ा, लेकिन फिर भी पूरी दुनिया उस तनाव को महसूस कर रही थी। यह संघर्ष था अमेरिका (USA) और सोवियत संघ (USSR) के बीच – एक ऐसा टकराव जो विचारधाराओं, शक्ति प्रदर्शन, हथियारों की दौड़ और छिपी हुई चालों से भरा हुआ था। लेकिन इसे ‘कोल्ड’, यानी ठंडा युद्ध क्यों कहा गया? क्या इसमें खून नहीं बहा? क्या हथियार नहीं चले? यह सब हम आगे विस्तार से समझेंगे।

पृष्ठभूमि: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया

1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, तब पूरी दुनिया थक चुकी थी। जर्मनी हार चुका था, जापान पर अमेरिका ने परमाणु बम गिरा दिए थे और लाखों लोग मारे जा चुके थे। इस समय अमेरिका और सोवियत संघ विजेता देशों में से थे, लेकिन उनके विचार और उद्देश्य बिलकुल अलग थे।

अमेरिका लोकतंत्र (Democracy) और पूंजीवाद (Capitalism) को मानता था जबकि सोवियत संघ कम्युनिज़्म (Communism) और सरकारी नियंत्रण में विश्वास करता था। यहीं से टकराव की नींव पड़ी।

‘Cold’ क्यों कहा गया?

‘Cold War’ को ‘कोल्ड’ इसलिए कहा गया क्योंकि इसमें कोई सीधा सैन्य युद्ध नहीं हुआ। यानी अमेरिका और सोवियत संघ ने एक-दूसरे पर सीधे हमला नहीं किया। उनके बीच ना तो मिसाइलें चलीं, ना ही सेनाएं भिड़ीं – लेकिन फिर भी दोनों देश एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिशों में लगे रहे।

इस युद्ध में जासूसी, प्रचार, अंतरिक्ष की दौड़, हथियारों का जखीरा इकट्ठा करना, दूसरे देशों में सरकार बदलवाना, और वैचारिक लड़ाई शामिल थी। यह सब “ठंडी लड़ाई” के तहत आता है – यानी बिना गोली चलाए मानसिक और रणनीतिक लड़ाई।

हथियारों की होड़

cold war

Cold War के दौरान सबसे बड़ा खतरा था – परमाणु युद्ध का। अमेरिका और USSR ने एक-दूसरे से ज़्यादा ताकतवर परमाणु बम बनाने शुरू कर दिए। इसे ही “आर्म्स रेस” कहा गया।

क्यूबा मिसाइल संकट (1962) एक ऐसा दौर था जब पूरी दुनिया को लगने लगा कि अब तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाएगा। सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइलें तैनात कर दीं, जो अमेरिका के बेहद नज़दीक था। अमेरिका ने इसका तीखा विरोध किया और दुनिया एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर पहुँच गई। हालांकि बात बिगड़ने से पहले ही हल निकाल लिया गया।

अंतरिक्ष की जंग: विज्ञान भी बन गया हथियार

Cold War सिर्फ ज़मीन पर नहीं, अंतरिक्ष में भी लड़ा गया। 1957 में USSR ने पहला कृत्रिम उपग्रह Sputnik-1 लॉन्च किया, जिससे अमेरिका चौंक गया। इसके जवाब में अमेरिका ने NASA की स्थापना की और अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हुई।

1969 में अमेरिका ने नील आर्मस्ट्रॉन्ग को चाँद पर भेजकर यह दिखा दिया कि वह तकनीकी रूप से आगे है। इस तरह विज्ञान भी इस ‘ठंडी लड़ाई’ का हिस्सा बन गया।

विचारधारा की जंग: पूंजीवाद बनाम साम्यवाद

Cold War सिर्फ ताकत की नहीं, सोच की भी लड़ाई थी। अमेरिका चाहता था कि दुनिया में लोकतंत्र और पूंजीवाद फैले, जबकि USSR चाहता था कि कम्युनिज्म पूरी दुनिया में लागू हो।

इसके लिए दोनों देशों ने अलग-अलग देशों में हस्तक्षेप किया। अमेरिका ने वियतनाम और कोरिया में सैनिक भेजे, तो USSR ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया। इस तरह छोटे देशों को इन दोनों महाशक्तियों की लड़ाई में मोहरा बना दिया गया।

जासूसी और प्रचार: सूचनाओं की भी जंग

Cold War के दौरान जासूसी एक बहुत अहम हथियार था। अमेरिका की CIA और सोवियत संघ की KGB एक-दूसरे की गतिविधियों पर नज़र रखती थीं। कहीं वैज्ञानिकों को खरीदा जाता था, तो कहीं फाइलें चोरी की जाती थीं।

मीडिया, फिल्में, किताबें – हर जगह इन दोनों देशों की सोच झलकती थी। अमेरिका में USSR को एक खलनायक की तरह दिखाया जाता था, वहीं सोवियत संघ में अमेरिका को एक लालची और अत्याचारी देश के रूप में दिखाया जाता था।

कोल्ड वॉर का अंत कैसे हुआ?

cold war (Credit: Britannica)

1980 के दशक में सोवियत संघ की आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी। इसके साथ ही नए नेता मिकेल गोर्बाचेव ने सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने ‘ग्लासनोस्त’ (खुलेपन की नीति) और ‘पेरेस्ट्रोइका’ (आर्थिक सुधार) की घोषणा की।

धीरे-धीरे USSR के सदस्य देश अलग होने लगे और 1991 में सोवियत संघ टूट गया। इसके साथ ही Cold War का अंत हो गया और अमेरिका अकेली महाशक्ति बनकर उभरा।

क्या कोल्ड वॉर से कुछ सीखा गया?

Cold War ने दुनिया को सिखाया कि बिना युद्ध के भी देश एक-दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। यह भी दिखा कि विचारधाराएं जब टकराती हैं, तो दुनिया कितनी अस्थिर हो सकती है।

लेकिन इसने यह भी सिखाया कि बातचीत, समझदारी और कूटनीति से बड़ा से बड़ा संकट टाला जा सकता है – जैसे क्यूबा मिसाइल संकट का समाधान।

आज की दुनिया में कोल्ड वॉर की छाया

हालांकि कोल्ड वॉर खत्म हो गया, लेकिन उसकी छाया आज भी दिखती है। अमेरिका और चीन के बीच चल रही तनातनी, रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव – ये सब कोल्ड वॉर जैसी ही स्थितियाँ हैं। अब हथियारों की जगह टेक्नोलॉजी, डेटा और साइबर हमले सामने हैं।एक ‘ठंडी’ लड़ाई जो आज भी सिखा रही है

            Cold War एक ऐसा अध्याय है जो बिना युद्ध लड़े भी दुनिया को हिला गया। यह इस बात का उदाहरण है कि ताकत सिर्फ बम और गोलियों में नहीं होती, बल्कि विचार, तकनीक, प्रचार और रणनीति में भी होती है।

हम सब को इससे यह सीखना चाहिए कि शांति बनाए रखने के लिए संवाद सबसे बड़ा हथियार है। क्योंकि युद्ध चाहे ‘ठंडा’ हो या ‘गर्म’, उसकी कीमत आम इंसानों को ही चुकानी पड़ती है।

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