भारत में उपराष्ट्रपति चुनाव: भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहाँ प्रत्येक संवैधानिक पद की एक विशेष प्रक्रिया और महत्व निर्धारित है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ-साथ उपराष्ट्रपति का पद भी अत्यंत अहम माना जाता है। उपराष्ट्रपति भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा के सभापति होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति के स्थान पर कार्यभार भी संभालते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि भारत में उपराष्ट्रपति चुनाव कैसे होते हैं, उनकी भूमिका क्या है और यह पद हमारे लोकतंत्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
उपराष्ट्रपति पद का संवैधानिक आधार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।”
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यह पद मूल रूप से संसद की कार्यवाही को सुव्यवस्थित करने और राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या असमर्थता में उनके स्थान पर कार्य करने के लिए बनाया गया है।
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उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
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उन्हें दोबारा भी चुना जा सकता है।
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इस पद के लिए आवश्यक योग्यता वही है जो राज्यसभा सदस्य बनने के लिए चाहिए।
उपराष्ट्रपति बनने की योग्यता:
भारतीय संविधान के अनुसार उपराष्ट्रपति पद के लिए व्यक्ति को:
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भारत का नागरिक होना चाहिए।
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न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए।
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राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखनी चाहिए।
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लाभ का कोई अन्य पद धारण नहीं करना चाहिए (सरकारी नौकरी या संवैधानिक पद)।
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया:
उपराष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रपति चुनाव से कुछ अलग होता है।
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चुनाव करने वाला निकाय: केवल संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित एवं नामित सदस्य उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
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राज्य विधानसभाओं की इसमें कोई भूमिका नहीं होती।
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मतदान गुप्त मतदान प्रणाली (Secret Ballot) के तहत होता है।
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चुनाव का संचालन भारत का निर्वाचन आयोग करता है।
चुनाव में प्रयुक्त प्रणाली:
उपराष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्येक सांसद को एक वोट दिया जाता है।
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यहाँ प्रत्येक वोट का मूल्य समान होता है, जबकि राष्ट्रपति चुनाव में मतों का मूल्य अलग-अलग होता है।
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विजेता तय करने के लिए एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) अपनाई जाती है।
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यदि पहले चरण में किसी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिलता, तो कम वोट पाने वाले उम्मीदवार के वोट दूसरे उम्मीदवारों में स्थानांतरित किए जाते हैं, जब तक किसी को आवश्यक बहुमत न मिल जाए।
उपराष्ट्रपति का शपथ ग्रहण और कार्यकाल:
चुनाव जीतने के बाद उपराष्ट्रपति पद की शपथ राष्ट्रपति द्वारा दिलाई जाती है।
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कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफ़ा दिया जा सकता है।
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संसद द्वारा महाभियोग जैसी प्रक्रिया के माध्यम से भी उपराष्ट्रपति को हटाया जा सकता है, इसके लिए राज्यसभा में विशेष बहुमत और लोकसभा में साधारण बहुमत चाहिए।
उपराष्ट्रपति की भूमिका और अधिकार:
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राज्यसभा के सभापति:
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वे राज्यसभा की कार्यवाही को सुचारु रूप से संचालित करते हैं।
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सदन में अनुशासन बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है।
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वे सदन में मतदान नहीं करते, लेकिन यदि मतों की संख्या बराबर हो जाए तो निर्णायक मत (Casting Vote) देते हैं।
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राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार:
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यदि राष्ट्रपति का निधन हो जाए, इस्तीफ़ा दे दें या किसी कारणवश पद पर कार्य न कर पाएँ, तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति का कार्यभार संभालते हैं।
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इस स्थिति में उपराष्ट्रपति अधिकतम 6 महीनों तक राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल सकते हैं, जब तक नए राष्ट्रपति का चुनाव न हो जाए।
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अब तक के उपराष्ट्रपति:
1952 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति चुने गए थे।
उनके बाद से कई प्रमुख व्यक्तित्व इस पद पर रह चुके हैं, जैसे:
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डॉ. ज़ाकिर हुसैन
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बी. डी. जत्ती
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हामिद अंसारी (दो बार निर्वाचित)
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वेंकैया नायडू
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वर्तमान में (2022 से) जगदीप धनखड़ भारत के उपराष्ट्रपति हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव का महत्व:
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यह पद भारतीय लोकतंत्र में स्थिरता और निरंतरता का प्रतीक है।
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राष्ट्रपति के स्थान पर कार्यभार संभालने की जिम्मेदारी उपराष्ट्रपति की भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना देती है।
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चूँकि वे राज्यसभा के सभापति होते हैं, इसलिए कानून निर्माण की प्रक्रिया में उनकी निष्पक्ष भूमिका लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूत करती है।
भारत में उपराष्ट्रपति चुनाव केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र की गहराई को दर्शाने वाला प्रक्रिया है। उपराष्ट्रपति का पद, यद्यपि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जितना चर्चित नहीं होता, लेकिन यह संसद की कार्यवाही को दिशा देने और संवैधानिक स्थिरता बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। सही मायनों में, यह पद भारतीय लोकतंत्र का “संतुलन स्तंभ” है, जो कार्यपालिका और विधायिका के बीच समन्वय स्थापित करता है।
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