Uttarkashi Cloudburst: क्यों अक्सर पहाड़ों पर ही फटते हैं बादल? जानिए उत्तराखंड जैसी आपदाओं के पीछे का वैज्ञानिक सच

Uttarkashi Cloudburst: उत्तराखंड के धराली और हर्षिल क्षेत्रों में हाल ही में हुई बादल फटने की घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस भयावह प्राकृतिक आपदा में न केवल कई लोगों के लापता होने की खबर है, बल्कि सेना के कैंप भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। राहत और बचाव कार्य में भारतीय सेना और प्रशासन पूरी ताक़त से जुटे हुए हैं, लेकिन इस बीच लोगों के मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा है — आख़िर पहाड़ी इलाकों में ही बादल फटने की घटनाएं क्यों ज़्यादा होती हैं?

यह सवाल केवल आम लोगों का नहीं बल्कि पर्यावरण वैज्ञानिकों, मौसम विशेषज्ञों और नीति-निर्माताओं के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए हम इस लेख में गहराई से समझते हैं कि आखिर क्या होता है बादल फटना, यह क्यों होता है, और पहाड़ों पर ही इसकी घटनाएं इतनी अधिक क्यों होती हैं।

क्या होता है बादल फटना? 

जब किसी सीमित क्षेत्र में बहुत कम समय के भीतर अत्यधिक बारिश होती है, तो उसे “बादल फटना” (Cloudburst) कहते हैं। भारत मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, अगर 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एक घंटे के अंदर 100 मिमी या उससे अधिक वर्षा होती है, तो वह बादल फटने की घटना मानी जाती है।

यह बारिश इतनी तेज़ और भारी होती है कि उसका असर बाढ़ जैसा होता है। अक्सर इसके साथ ओले गिरने, बिजली गिरने और भूस्खलन जैसी घटनाएं भी होती हैं, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। पहाड़ी इलाकों में यह खतरा और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि वहाँ की भौगोलिक स्थिति पहले से ही संवेदनशील होती है।

कैसे और कब होती है बादल फटने की घटना?

Uttarkashi Cloudburst
  Cloudburst Phenomena(Image: Yojna IAS)

जब वातावरण में तापमान में तेजी से बदलाव होता है, तो गर्म हवाएं नमी को साथ लेकर ऊपर की ओर उठती हैं। ऊपर जाते हुए, यह गर्म हवा ठंडी हो जाती है और उसमें मौजूद नमी पानी की बूंदों में बदलने लगती है। यह बूंदें एक-दूसरे से मिलकर बड़े-बड़े बादल बना लेती हैं, जिनका घनत्व इतना बढ़ जाता है कि वो अचानक फट जाते हैं और सीमित इलाके में मूसलधार बारिश हो जाती है।

यह प्रक्रिया आमतौर पर मॉनसून के दौरान होती है, जब हवा में नमी की मात्रा अधिक होती है। यही कारण है कि ज्यादातर बादल फटने की घटनाएं जून से सितंबर के बीच ही होती हैं।

क्यों पहाड़ों में ही ज़्यादा फटते हैं बादल? जानिए वैज्ञानिक नजरिया

अब सवाल उठता है कि क्या यह घटना केवल पहाड़ी इलाकों तक सीमित है? वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा नहीं है कि बादल फटना केवल पहाड़ों में ही हो सकता है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक संरचना और वातावरण की विशेषताएं इसे अधिक संभावित बना देती हैं।

1. पहाड़ों की वजह से रुक जाती हैं हवाएं

जब गर्म और नम हवाएं समतल ज़मीन से ऊपर की ओर बढ़ती हैं और पहाड़ों से टकराती हैं, तो वे आगे नहीं बढ़ पातीं। इसके कारण यह हवाएं एक जगह जमा हो जाती हैं और वहां पर भारी मात्रा में बादल बन जाते हैं। जब यह बादल अधिक घने हो जाते हैं, तो वर्षा के रूप में एक ही स्थान पर टूट पड़ते हैं।

2. नमी वाली हवाओं की टकराहट

हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में नमी से भरी गर्म हवाएं ठंडी हवाओं से टकराती हैं। यह टकराव बहुत तेजी से बड़े आकार के बादलों का निर्माण करता है। इनका घनत्व और वज़न इतना बढ़ जाता है कि वे अचानक फट जाते हैं, जिससे बादल फटने की घटना होती है।

3. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन यानी Climate Change की वजह से इन घटनाओं में हाल के वर्षों में काफी वृद्धि देखी गई है। तापमान में बदलाव, ग्लेशियरों का पिघलना, वनों की कटाई और अंधाधुंध निर्माण कार्य इन आपदाओं को और ज़्यादा बढ़ावा देते हैं।

उत्तराखंड और हिमाचल: बादल फटने की घटनाओं के हॉटस्पॉट क्यों बन रहे हैं?

पिछले कुछ वर्षों में हिमालयी राज्यों में बादल फटने की घटनाओं में 1.5 गुना तक की वृद्धि देखी गई है। खास बात यह है कि यह घटनाएं ज्यादातर मानसून के महीनों में ही सामने आती हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन, तापमान में उतार-चढ़ाव और बढ़ती जनसंख्या के कारण इन क्षेत्रों में आपदाओं का खतरा लगातार बढ़ रहा है।

इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:

  • वनों की कटाई से वातावरण की प्राकृतिक नमी संतुलन गड़बड़ा जाती है।
  • निर्माण कार्य, खासकर सड़कों और होटलों की वजह से पहाड़ों की स्थिरता कमजोर हो रही है।
  • पर्यटन के बढ़ते दबाव से प्रदूषण बढ़ता है जो जलवायु पर असर डालता है।
  • बढ़ते वाहन और ध्वनि प्रदूषण से तापमान में असंतुलन आता है।

इन सबका असर मिलकर स्थानीय जलचक्र को प्रभावित करता है, और बादल फटने जैसी आपदाओं की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

सेना और सरकार की भूमिका: राहत और बचाव कार्य

Uttarkashi Cloudburst 

उत्तराखंड की हालिया आपदा में भारतीय सेना ने तत्परता से मोर्चा संभाला है। धराली और हर्षिल के इलाकों में सेना के कैंप भी प्रभावित हुए हैं, लेकिन सेना ने न सिर्फ अपने सैनिकों को सुरक्षित किया, बल्कि स्थानीय लोगों की मदद में भी जुट गई।

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन मिलकर राहत और बचाव अभियान चला रहे हैं। कई हेलीकॉप्टरों की मदद से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है और खाने-पीने की चीजें भी पहुंचाई जा रही हैं।

आगे क्या किया जा सकता है? – समाधान की तलाश

बादल फटने की घटनाएं पूरी तरह से रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कदम उठाए जाने जरूरी हैं:

  • समय पर मौसम की चेतावनी देने वाली प्रणाली को मज़बूत किया जाए।
  • स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए कि आपदा के समय कैसे प्रतिक्रिया करें।
  • वनीकरण और वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए ताकि वातावरण का संतुलन बना रहे।
  • अत्यधिक निर्माण कार्यों पर नियंत्रण किया जाए, खासकर संवेदनशील इलाकों में।
  • जलवायु परिवर्तन पर नीति स्तर पर गंभीरता से काम किया जाए।

पहाड़ों पर आपदा क्यों बार-बार आती है, हमें समझना होगा

बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन इसके पीछे की विज्ञान और मानवीय गतिविधियों की जटिलता को समझे बिना हम इससे न तो बचाव कर सकते हैं, और न ही समाधान ढूंढ सकते हैं। पहाड़ों की सुंदरता और रहन-सहन को बचाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम अभी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में ये आपदाएं और भी विकराल रूप ले सकती हैं।

हमें विज्ञान की समझ के साथ, प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर चलना होगा। तभी उत्तराखंड और हिमाचल जैसी खूबसूरत जगहें सुरक्षित रह पाएंगी, और उनके बाशिंदे चैन की नींद सो पाएंगे।

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