ULFA-I: असम की आज़ादी की लड़ाई या आतंक का चेहरा? जानिए क्यों है ये संगठन खबरों में

ULFA-I: पूर्वोत्तर भारत का राज्य असम एक ओर जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र कई दशकों से उग्रवाद और असंतोष का भी गवाह रहा है। इन असंतोषों का सबसे मुखर और चर्चित चेहरा रहा है – ULFA-I (United Liberation Front of Asom – Independent)

ULFA-I
            ULFA-I

🧨 ULFA-I क्या है?

ULFA-I, ULFA संगठन की एक उग्रवादी शाखा है। मूल रूप से ULFA (United Liberation Front of Asom) की स्थापना 1979 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था — “स्वतंत्र असम” की स्थापना और भारत सरकार से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना।

वर्षों के संघर्ष, हिंसा और सरकारी ऑपरेशनों के बाद, ULFA दो भागों में बंट गया:

  1. ULFA-Pro Talk Group – जो शांति वार्ता के पक्ष में है और भारत सरकार के साथ बातचीत में शामिल है।

  2. ULFA-Independent (ULFA-I) – यह गुट अब भी सशस्त्र संघर्ष कर रहा है और भारत से अलग एक संप्रभु असम की मांग करता है। इसका नेतृत्व कर रहा है परेश बरुआ, जो फिलहाल फरार है और माना जाता है कि वह म्यांमार या चीन की सीमा के पास छिपा हुआ है।

ULFA-I
                         ULFA-I

ULFA-I फिर से क्यों है खबरों में (2025)?

🔺 1. शांति वार्ता पर फिर खिंचाव

हाल ही में एक बार फिर ULFA-I को शांति वार्ता में शामिल करने की मांग उठी है। असम सरकार और कुछ सामाजिक संगठनों ने आग्रह किया है कि परेश बरुआ वार्ता के लिए आगे आएं। हालांकि ULFA-I ने स्पष्ट किया है कि “भारत के संविधान के दायरे में कोई बातचीत नहीं होगी”। यानी उनकी मांग अब भी वही है — एक स्वतंत्र राष्ट्र असम

🔺 2. नए युवाओं की भर्ती

2025 में खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ULFA-I ऑनलाइन माध्यमों से युवाओं को लुभा रहा है, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। बेरोजगारी और सामाजिक असंतोष का फायदा उठाकर संगठन अपने नेटवर्क को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। सोशल मीडिया के ज़रिये भी यह प्रचार कर रहा है।

🔺 3. हाल की गिरफ्तारी और मुठभेड़

जुलाई 2025 में असम के तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ जिलों में कुछ संदिग्ध ULFA-I सदस्यों को गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा असम राइफल्स और पुलिस ने एक छोटे ऑपरेशन में ULFA-I के एक गुट को सीमावर्ती जंगलों में घेर लिया। हालांकि कोई बड़ा मुठभेड़ नहीं हुआ, पर इससे साफ है कि संगठन अब भी सक्रिय है।

🔺 4. म्यांमार और विदेशी संपर्क

ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि ULFA-I को म्यांमार के कुछ उग्रवादी गुटों से समर्थन मिल रहा है। साथ ही कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि चीन के कुछ क्षेत्रों से अप्रत्यक्ष समर्थन मिल सकता है, हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। भारत सरकार म्यांमार से डिप्लोमैटिक बातचीत के ज़रिये ULFA-I को सीमित करने की कोशिश कर रही है।

ULFA-I का इतिहास संक्षेप में

  • 1979: ULFA की स्थापना हुई।

  • 1990: भारत सरकार ने संगठन को आतंकी संगठन घोषित किया।

  • 2000-2010: सेना और पुलिस ने कई ऑपरेशन चलाकर संगठन की कमर तोड़ी।

  • 2011 के बाद: एक भाग वार्ता में शामिल हुआ, लेकिन परेश बरुआ ने “ULFA-I” के नाम से उग्रवाद जारी रखा।

  • अब तक: ULFA-I असम में कई बम धमाके, अपहरण, और हिंसक घटनाओं में शामिल रहा है।

जनता और सरकार की राय:

ULFA-I के प्रति जनता की राय दो हिस्सों में बंटी हुई है।
कुछ लोग इसे असम की आत्मनिर्भरता की लड़ाई मानते हैं, जबकि अधिकांश लोग इसे एक आतंकी संगठन समझते हैं जो असम के विकास में बाधा है।

सरकार का रुख साफ है — जो गुट शांति वार्ता के लिए तैयार है, उससे बातचीत हो सकती है। लेकिन जो हथियार के बल पर अपनी बात मनवाना चाहता है, उसके लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी।

ULFA-I की गतिविधियां एक बार फिर से असम और भारत के सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौती बन रही हैं। जहां एक ओर सरकार बातचीत के लिए दरवाज़ा खुला रखे हुए है, वहीं ULFA-I का कट्टर रुख शांति की संभावनाओं को लगातार कमजोर कर रहा है।
इस समय ज़रूरत है कि जनता, सरकार और नागरिक समाज मिलकर आतंक की जगह संवाद को प्राथमिकता दें, ताकि असम और पूर्वोत्तर का भविष्य शांति और विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सके।

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