SC on Stray Dogs Delhi: दिल्ली से सभी आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट आदेश पर बवाल, PETA और संगठनों का विरोध तेज

SC on Stray Dogs Delhi: दिल्ली और एनसीआर की सड़कों पर रहने वाले लाखों Stray Dogs के लिए हाल के दिनों में हालात अचानक बदल गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद नगर निगमों को निर्देश दिया गया है कि सभी स्ट्रीट डॉग्स को पकड़कर नसबंदी करें और उन्हें शेल्टर में रख दें — उन्हें उनकी पुरानी जगहों पर वापस न छोड़ा जाए।
यह आदेश सुनते ही पशु कल्याण संगठनों, पशु चिकित्सकों और हजारों नागरिकों ने नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल गैर-वैज्ञानिक और अमानवीय है, बल्कि इससे दशकों से चल रहे रेबीज़ नियंत्रण के प्रयास भी चौपट हो सकते हैं।

दिल्ली में कितने हैं Stray Dogs?

PETA इंडिया के मुताबिक, 2022–23 में किए गए सर्वे में पता चला कि दिल्ली में लगभग 10 लाख सामुदायिक कुत्ते रहते हैं, जिनमें से आधे से भी कम की नसबंदी हुई है। यानी करीब 5 लाख कुत्ते अभी भी प्रजनन क्षमता रखते हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन सभी कुत्तों को एक साथ हटाने की कोशिश की गई, तो न सिर्फ शेल्टर हाउसों पर बोझ बढ़ेगा, बल्कि जिन इलाकों से कुत्ते हटाए जाएंगे, वहां “वैक्यूम इफेक्ट” पैदा होगा — यानी खाली जगह पर नए, अक्सर बिना वैक्सीन वाले कुत्ते आकर बस जाएंगे। इससे रेबीज़ का खतरा और बढ़ सकता है।

SC on Stray Dogs Delhi

PETA का कड़ा विरोध: “डिसप्लेसमेंट कभी काम नहीं करता”

PETA इंडिया की सीनियर डायरेक्टर, डॉ. मिनी अरविंदन ने कहा,

“कई समुदाय अपने मोहल्ले के कुत्तों को परिवार की तरह मानते हैं। इन्हें हटाना और पिंजरे में बंद करना वैज्ञानिक रूप से गलत है और कभी सफल नहीं हुआ।”

उन्होंने चेतावनी दी कि दिल्ली से 10 लाख कुत्तों को हटाने से स्थानीय निवासियों और पशु प्रेमियों में भारी नाराज़गी फैल जाएगी। इससे कुत्तों को भूख, बीमारियों और झगड़ों का सामना करना पड़ेगा।
PETA का मानना है कि 2001 से ही भारत में “एनिमल बर्थ कंट्रोल” यानी नसबंदी और रेबीज़ वैक्सीनेशन की नीति लागू है, लेकिन दिल्ली सरकार ने इसे सही तरीके से अमल में नहीं लाया।
डॉ. अरविंदन का कहना है,

“अगर यह कार्यक्रम समय पर और प्रभावी तरीके से चलाया जाता, तो आज सड़कों पर मुश्किल से कोई कुत्ता होता। अभी भी देर नहीं हुई है। संसाधन बेकार खर्च करने की बजाय नसबंदी को तेज़ किया जाए, अवैध पेट शॉप्स को बंद किया जाए और गोद लेने को बढ़ावा दिया जाए।”

FIAPO की चेतावनी: “यह विज्ञान, कानून और पब्लिक सेफ़्टी के ख़िलाफ़ है”

Federation of Indian Animal Protection Organisations (FIAPO) की सीईओ भारती रामचंद्रन ने इसे “चौंकाने वाला फ़ैसला” बताया। उन्होंने कहा कि यह आदेश WHO और World Organisation for Animal Health (WOAH) की गाइडलाइंस, और भारत के 2023 के ABC (एनिमल बर्थ कंट्रोल) रूल्स के भी खिलाफ है।

रामचंद्रन के अनुसार,

“रेबीज़ की घटनाओं के बाद सही और जिम्मेदार प्रतिक्रिया है — बड़े पैमाने पर नसबंदी और वैक्सीनेशन अभियान चलाना। भारत में कई दानदाता हैं जो इसे फंड कर सकते हैं। समस्या पैसे की नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की है।”

उन्होंने “वैक्यूम इफेक्ट” का ज़िक्र करते हुए कहा कि स्थिर और वैक्सीन लगे कुत्तों को हटाने से खाली जगह पर नए, बिना वैक्सीन वाले कुत्ते आ जाएंगे, जिससे रेबीज़ का खतरा और बढ़ जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव क्या कहता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कई अंतरराष्ट्रीय पशु कल्याण संगठनों ने साफ कहा है कि आवारा कुत्तों की संख्या और रेबीज़ नियंत्रण के लिए सबसे प्रभावी तरीका है — कम से कम 70% आबादी का नसबंदी और टीकाकरण।
दुनिया के कई देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड और मैक्सिको में यह मॉडल सफल रहा है। वहां बड़े पैमाने पर कुत्तों को पकड़कर नसबंदी की गई, उन्हें उसी इलाके में वापस छोड़ा गया और लगातार मॉनिटरिंग की गई।
इसके उलट, जब कुत्तों को हटाकर दूसरी जगह ले जाया गया, तो कुछ ही महीनों में नए कुत्ते आ गए और समस्या जस की तस बनी रही।

दिल्ली में असली चुनौतियां क्या हैं?

  1. नसबंदी की धीमी रफ्तार – दिल्ली में करीब आधे कुत्तों की ही नसबंदी हुई है।
  2. शेल्टर की कमी – 10 लाख कुत्तों के लिए पर्याप्त शेल्टर बनाना लगभग असंभव है।
  3. जन जागरूकता का अभाव – कई लोग अब भी मानते हैं कि कुत्तों को हटाना ही समाधान है, जबकि विज्ञान इसके उलट कहता है।
  4. अवैध प्रजनन और पेट शॉप्स – अनियंत्रित डॉग ब्रीडिंग और बिक्री से भी सड़क पर कुत्तों की संख्या बढ़ती है।

अगर आदेश लागू हुआ तो क्या होगा? SC on Stray Dogs Delhi

  • मोहल्लों से कुत्ते हटाने पर कई इलाकों में चूहे और अन्य छोटे जानवरों की आबादी बढ़ सकती है, क्योंकि कुत्ते प्राकृतिक रूप से इन्हें नियंत्रित करते हैं।
  • लोगों और नए आए, अनजान कुत्तों के बीच टकराव बढ़ सकता है।
  • शेल्टर हाउसों में भीड़ बढ़ने से कुत्तों के लिए भोजन, चिकित्सा और देखभाल का संकट होगा।
  • पहले से वैक्सीन लगे कुत्ते हटने पर रेबीज़ नियंत्रण में मिली प्रगति पीछे जा सकती है।

सोशल मीडिया पर गुस्सा और संवेदनाएं दोनों

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोशल मीडिया पर #SaveDelhiDogs, #ABCNotRemoval और #PawsOnTheStreet जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हजारों यूज़र्स ने अपनी भावनाएं जाहिर कीं।

  • पशु प्रेमियों ने मोहल्ले के कुत्तों के साथ अपनी तस्वीरें और वीडियो डालकर लिखा कि यह कुत्ते उनके घर के सदस्य जैसे हैं, और उन्हें हटाना क्रूरता है।

  • एक्सपर्ट्स और NGO वर्कर्स ने WHO की रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए बताया कि हटाना समाधान नहीं है, बल्कि समस्या बढ़ाने जैसा है।

  • कुछ लोगों ने समर्थन भी किया, खासकर वे जिनके मोहल्ले में कुत्तों से डर या काटने के मामले सामने आए थे। उनका कहना है कि सरकार को पहले सुरक्षा देनी चाहिए।

  • मीम पेज और क्रिएटर्स ने इस मुद्दे पर व्यंग्यात्मक पोस्ट बनाई, जिसमें “शेल्टर में VIP कुत्तों” और “मोहल्ले के पुराने राजा कुत्ते” जैसे कैरेक्टर दिखाए गए।

यूट्यूब पर भी कई बड़े चैनल्स ने लाइव डिस्कशन और ग्राउंड रिपोर्ट चलाई, जिनमें नागरिकों और पशु कार्यकर्ताओं को बहस करते दिखाया गया।
रील्स और शॉर्ट्स में ऐसे वीडियो वायरल हुए, जहां बच्चे अपने मोहल्ले के कुत्ते को गले लगाकर रो रहे थे और कह रहे थे कि “इसे मत ले जाओ”।

समाधान की राह: विज्ञान और करुणा का संगम

विशेषज्ञ और संगठन मानते हैं कि दिल्ली के लिए सबसे अच्छा रास्ता है —

  • बड़े पैमाने पर नसबंदी और वैक्सीनेशन अभियान चलाना।
  • कम्युनिटी डॉग वॉलंटियर्स और पशु प्रेमियों के साथ मिलकर स्थिर, वैक्सीन लगे कुत्तों की निगरानी करना।
  • अवैध पेट शॉप्स और ब्रीडर्स पर सख्त कार्रवाई करना।
  • गोद लेने की संस्कृति को बढ़ावा देना, ताकि लोग पालतू कुत्ते खरीदने की बजाय सड़क के कुत्तों को घर दें।

दिल्ली के स्ट्रीट डॉग्स सिर्फ सड़क पर भटकते जानवर नहीं हैं, बल्कि वे मोहल्लों की पहचान और कई लोगों की भावनाओं का हिस्सा हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश भले ही सुरक्षा के मद्देनज़र आया हो, लेकिन अगर यह वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण के बिना लागू हुआ, तो इससे न सिर्फ कुत्तों बल्कि इंसानों की भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सही दिशा यही है कि अंतरराष्ट्रीय अनुभवों और भारतीय कानूनों के अनुरूप नसबंदी और टीकाकरण को तेज़ किया जाए। यह न सिर्फ एक मानवीय समाधान है, बल्कि एक सुरक्षित और स्थायी रास्ता भी है।

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