Rupee Vs Dollar July 2025: भारतीय करेंसी मार्केट में सोमवार की शुरुआत किसी झटके से कम नहीं रही। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 86.36 के स्तर पर आ गया, जो पिछले एक महीने में सबसे कमज़ोर स्तर है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर की बढ़ती मांग, ग्लोबल कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और भारत-अमेरिका के बीच अब तक लंबित ट्रेड डील की वजह से रुपया दबाव में आ गया है।
यह स्थिति तब और भी गंभीर हो सकती है अगर 1 अगस्त तक भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में अमेरिका भारत को टैरिफ लेटर भेज सकता है, जिससे निर्यात प्रभावित हो सकता है और इसका सीधा असर रुपए की मजबूती पर पड़ेगा।
रुपए में गिरावट की शुरुआत: क्या है इस बार का बड़ा कारण?
इस समय करेंसी मार्केट में डॉलर की डिमांड बहुत तेजी से बढ़ रही है, खासकर विदेशी और स्थानीय प्राइवेट बैंकों की ओर से। इसका सीधा असर रुपए की वैल्यू पर देखने को मिल रहा है।
डॉलर इंडेक्स, जो पहले 96 के लेवल पर था, अब 98.46 तक पहुंच गया है। यह इंडेक्स अमेरिकी डॉलर की ताकत को दर्शाता है, और जब इसमें तेजी आती है तो दूसरी करेंसियों पर दबाव बढ़ता है, खासकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी पर।
कच्चे तेल की कीमतें बनी मुसीबत
ग्लोबल लेवल पर भी स्थितियां भारत के फेवर में नहीं हैं। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें अब बढ़कर करीब 69.36 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जबकि कुछ समय पहले यह 66 डॉलर पर आ गई थी।
भारत जैसे देश जो ऊर्जा आयात पर निर्भर हैं, उनके लिए यह स्थिति दोहरी मार जैसी है – महंगा तेल और कमजोर रुपया।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील अधर में, बढ़ी बेचैनी
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत अब भी अधूरी है। अगर 1 अगस्त 2025 तक इस डील पर सहमति नहीं बनती, तो अमेरिका भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर सकता है जिन्हें वह टैरिफ लेटर भेजता है।
इसका मतलब होगा – भारतीय उत्पादों पर अमेरिका में अतिरिक्त टैक्स। इससे भारत का निर्यात प्रभावित होगा और रुपए पर दबाव और बढ़ेगा।
शेयर बाजार की सुस्ती ने भी दिया झटका
सोमवार को जब बाजार खुला, तो शेयर बाजार में भी 150 अंकों से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली। निवेशकों का मूड नकारात्मक रहा और इसका असर विदेशी मुद्रा बाजार पर भी पड़ा।
बाजार में अनिश्चितता और विदेशी निवेशकों की सतर्कता ने डॉलर की डिमांड और बढ़ा दी, जिससे रुपया और फिसला।
करेंसी मार्केट का ताजा हाल: एक महीने में सबसे खराब प्रदर्शन
इंटरबैंक फॉरेन करेंसी एक्सचेंज के अनुसार, रुपया सोमवार को 86.27 पर खुला और शुरुआती कारोबार में 86.36 के लोअर लेवल तक गिर गया। यह पिछले बंद भाव से 20 पैसे की गिरावट है।
पिछले शुक्रवार को रुपया 86.16 पर बंद हुआ था। अब यह 23 जून के स्तर यानी 86.35 से भी नीचे आ गया है, जो इस बात का संकेत है कि करेंसी मार्केट में दबाव लगातार बना हुआ है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं: क्या आगे और गिरेगा रुपया?
फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स के ट्रेजरी हेड अनिल कुमार भंसाली का मानना है कि डॉलर की मौजूदा मजबूती को देखते हुए रुपए का कमजोर होना स्वाभाविक है।
उन्होंने कहा कि रुपया फिलहाल 85.90 से 86.40 के बीच रह सकता है, लेकिन अगर ट्रेड डील नहीं हुई तो गिरावट का ट्रेंड और तेज हो सकता है। इससे भारतीय निर्यातकों पर भी दबाव बढ़ेगा।
सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स के एमडी अमित पाबारी ने भी कुछ ऐसा ही संकेत दिया। उन्होंने कहा कि जब तक ट्रेड डील को लेकर स्पष्टता नहीं आती, तब तक बाजार में अनिश्चितता बनी रहेगी और रुपया कमजोर रह सकता है।
डॉलर इंडेक्स का रोल: ताकतवर डॉलर, कमज़ोर रुपये
डॉलर इंडेक्स वो मीटर है जो दुनिया की दूसरी बड़ी मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को बताता है। अगर यह बढ़ता है तो इसका मतलब है कि डॉलर मजबूत हो रहा है।
जैसे-जैसे डॉलर इंडेक्स 98 के पार पहुंचा, वैसे ही भारत जैसे देशों की करेंसी में कमजोरी देखने को मिली। इसकी वजह से रुपया 86.00 के अहम स्तर को तोड़ता हुआ नीचे चला गया।
क्या पटरी पर लौट पाएगा रुपया?
इस सवाल का जवाब फिलहाल साफ नहीं है। फिलहाल रुपये की हालत में सुधार तभी संभव है जब:
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डॉलर की डिमांड कम हो
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ट्रेड डील जल्दी हो जाए
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क्रूड ऑयल की कीमतें कंट्रोल में आएं
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विदेशी निवेशकों का भरोसा वापस लौटे
अगर ये स्थितियां बनती हैं, तो रुपया धीरे-धीरे रिकवर कर सकता है। लेकिन जब तक ये फैक्टर अनसुलझे हैं, बाजार में सतर्कता बनी रहेगी।
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
जो निवेशक करेंसी मार्केट या विदेशी निवेश से जुड़े हैं, उनके लिए यह समय सतर्क रहने का है। ट्रेड डील की खबर पर नजर बनाए रखें, क्योंकि इसका असर सिर्फ रुपये पर नहीं बल्कि शेयर बाजार और विदेशी निवेश पर भी पड़ेगा।
रुपए के लिए आने वाले दिन अहम
भारतीय रुपया इस समय एक संवेदनशील मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ मजबूत डॉलर, दूसरी तरफ ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता और ऊपर से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें – ये सभी फैक्टर रुपया कमजोर करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
अगर भारत और अमेरिका के बीच समय रहते समझौता हो जाता है, तो यह स्थिति कुछ हद तक संभल सकती है। लेकिन अगर डील में देरी होती है या टूट जाती है, तो आने वाले दिनों में रुपया और भी कमजोर हो सकता है।
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