राघव चड्ढा ने उठाई मांग: हर नागरिक को मिले वार्षिक हेल्थ चेकअप का कानूनी अधिकार | Jagdeep Dhankhar News

Jagdeep Dhankhar News: राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता राघव चड्ढा ने संसद में एक बेहद अहम मुद्दा उठाया है, जो भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को नई दिशा दे सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में वार्षिक हेल्थ चेकअप एक “लग्ज़री” बन चुका है, जिसे सिर्फ अमीर लोग ही अफोर्ड कर सकते हैं, जबकि यह हर नागरिक का कानूनी अधिकार होना चाहिए।

राघव चड्ढा ने संसद में स्पेशल मेंशन के तहत यह बात रखते हुए सरकार से अपील की कि वह इस विषय को गंभीरता से ले और पूरे देश में संरचित, राज्य प्रायोजित (State Sponsored) प्रिवेंटिव हेल्थकेयर को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाए।

हेल्थ चेकअप से जुड़ी सच्चाइयाँ – जो सुनकर चौंक जाएंगे आप

raghav chadha Jagdeep dhankhar

राघव चड्ढा ने कुछ दिल छू लेने वाले उदाहरण देते हुए कहा –
“एक मां जिसे कभी पता नहीं चला कि उसे कैंसर है, एक बेटा जिसे स्ट्रोक के बाद ही हाई ब्लड प्रेशर का पता चला, एक बहन जिसकी आंखों की रोशनी जाने के बाद डायबिटीज़ का खुलासा हुआ – ऐसी कहानियाँ बहुत आम हो गई हैं।”

उन्होंने कहा कि अगर समय रहते इन बीमारियों की पहचान हो जाती, तो शायद इलाज आसान होता और जान बच जाती। आज भारत में अधिकांश लोग तब डॉक्टर के पास जाते हैं जब बीमारी बढ़ चुकी होती है। और तब इलाज महंगा, लंबा और तकलीफदेह बन जाता है।

कोविड के बाद बढ़ी स्वास्थ्य की चिंता

कोविड-19 महामारी ने पूरे देश को स्वास्थ्य के महत्व का एहसास कराया है। राघव चड्ढा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कोविड के बाद, देश में हृदयघात (Cardiac Arrest) के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल रही है, खासकर युवा लोगों में। कई वायरल वीडियोज़ भी यह दिखाते हैं कि कैसे कम उम्र में भी लोग अचानक दिल के दौरे से जान गंवा रहे हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने सरकार से मांग की कि अब वक्त आ गया है कि भारत में स्वास्थ्य को लेकर नीतियों में आमूलचूल बदलाव किया जाए और प्रिवेंटिव हेल्थकेयर को प्राथमिकता दी जाए।

NFHS-5 के आंकड़े हैं चौंकाने वाले

राघव चड्ढा ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि भारत में केवल 2% महिलाएं ही कैंसर स्क्रीनिंग करवा पाती हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई भी उजागर करता है।

उन्होंने इसे “बेहद चिंताजनक” बताया और कहा कि यदि स्क्रीनिंग का अधिकार हर नागरिक को मिल जाए, तो बीमारियाँ शुरूआती दौर में ही पकड़ी जा सकती हैं और समय रहते इलाज संभव हो सकता है।

दुनिया के विकसित देशों में है यह आम प्रैक्टिस

राघव चड्ढा ने NDTV से बातचीत में बताया कि विकसित देशों में सरकारें नागरिकों को खुद चेकअप के लिए बुलाती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि बीमारी का पता समय पर लगे। उन्होंने कहा, “भारत जैसे देश में, जहाँ हर साल लाखों लोग इलाज की कमी या देर से डायग्नोसिस के कारण जान गंवा देते हैं, वहां ये नीति एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।”

उनका यह भी कहना है कि यह योजना सरकार के ऊपर आर्थिक बोझ नहीं डालेगी, बल्कि लंबी अवधि में स्वास्थ्य पर खर्च घटाएगी। जब बीमारी समय रहते पकड़ में आ जाए, तो इलाज सस्ता और जल्दी हो जाता है।

समय रहते निदान = जान की रक्षा

राघव चड्ढा ने एक लैंसेट जर्नल का हवाला देते हुए कहा कि भारत में 55% दिल के दौरे से मौतें इसलिए होती हैं क्योंकि समय रहते डायग्नोसिस नहीं हो पाता। अगर समय रहते बीमारी का पता लग जाए, तो जान बचाना मुमकिन होता है।

उन्होंने एक बेहद असरदार पंक्ति के साथ अपनी बात खत्म की –
“जान है, तो जांच है। लेकिन जांच होगी, तभी तो जान बचेगी।”

क्या कहती है जनता?

आज आम आदमी बढ़ती महंगाई और स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतों के बीच पिस रहा है। प्राइवेट अस्पतालों में जांच कराना हर किसी के बस की बात नहीं है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएँ सीमित हैं, और वहां भी जांच के लिए लंबी लाइनें, समय की कमी और संसाधनों का अभाव है।

अगर यह मांग कानून का रूप ले लेती है और हर नागरिक को नियमित जांच की सुविधा मुफ्त या बेहद कम कीमत पर मिलने लगे, तो इससे न सिर्फ बीमारियों की पहचान जल्दी होगी, बल्कि देश की उत्पादकता और स्वस्थ जीवन स्तर में भी सुधार आएगा।

सरकार को क्या करना चाहिए?

राघव चड्ढा की इस पहल को सिर्फ एक राजनैतिक बयान मानकर छोड़ देना उचित नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि वह इस सुझाव पर गंभीरता से विचार करे और एक ऐसी नीति बनाए जिसमें –

  • हर राज्य में जिला और ब्लॉक स्तर पर नियमित चेकअप कैंप लगाए जाएं

  • मोबाइल हेल्थ यूनिट्स ग्रामीण क्षेत्रों में जाएं

  • महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए विशेष स्वास्थ्य अभियान चलाए जाएं

  • कैंसर, डायबिटीज़, हृदय रोग और मानसिक स्वास्थ्य जैसी गंभीर बीमारियों की नियमित स्क्रीनिंग हो

  • एक डिजिटल हेल्थ कार्ड प्रणाली बने, जिसमें सभी नागरिकों का हेल्थ रिकॉर्ड सुरक्षित हो

अब वक्त है कि स्वास्थ्य को मिले प्राथमिकता

भारत एक युवा देश है, लेकिन यदि उसकी युवा आबादी ही बीमार पड़ने लगे, तो विकास का सपना अधूरा रह जाएगा। राघव चड्ढा ने जो बात कही है, वह न सिर्फ तर्कसंगत है बल्कि पूरी तरह व्यावहारिक भी है।

प्रिवेंटिव हेल्थकेयर को केंद्र में लाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। स्वास्थ्य नीतियाँ सिर्फ इलाज तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि बीमारी से पहले ही उसे रोकने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।

हर नागरिक को यह जानने का हक है कि वह स्वस्थ है या नहीं – और यह हक, एक कानूनी अधिकार बनना चाहिए।

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