PM Modi Maldives Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा 2025 के सबसे अहम दौरों में से एक मानी जा रही है। ब्रिटेन के सफल दो दिवसीय दौरे के बाद शुक्रवार को जब पीएम मोदी मालदीव की राजधानी माले पहुंचे, तो वहां का नज़ारा बेहद खास था। खुद राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने हवाई अड्डे पर गले लगाकर पीएम मोदी का स्वागत किया। इसके साथ ही मालदीव के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और गृह सुरक्षा मंत्री भी इस भव्य स्वागत समारोह में मौजूद रहे।
भारत और मालदीव के बीच हाल के महीनों में तनाव की स्थिति बनी हुई थी। लेकिन मोदी को मालदीव के स्वतंत्रता दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाना इस बात का संकेत है कि दोनों देश फिर से अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
क्यों है यह यात्रा इतनी अहम?
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध दक्षिण एशिया की राजनीति और भारत की रणनीतिक स्थिति से है। मालदीव हिंद महासागर में भारत का सबसे करीबी समुद्री पड़ोसी है। पिछले कुछ समय से मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भारत चिंतित रहा है। ऐसे में यह दौरा साफ संदेश देता है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मजबूत और स्थायी संबंध बनाए रखने के लिए पूरी तरह तैयार है।
माले में दिखा मोदी प्रेम
जब पीएम मोदी माले पहुंचे तो सड़कों पर भारत के तिरंगे लहराते हुए नजर आए। लोगों ने हाथों में तिरंगे थामे मोदी का स्वागत किया। कई बच्चों ने अपने हाथों में मोदी की तस्वीरें पकड़ी थीं और “वेलकम मोदी” जैसे नारों से वातावरण को जीवंत बना दिया। माले की गलियों में मोदी के स्वागत और बधाई वाले पोस्टरों की भरमार थी। हर पोस्टर इस बात का प्रतीक था कि भारत और मालदीव के रिश्ते एक बार फिर से गर्मजोशी के दौर में पहुंच रहे हैं।
मालदीव ने क्यों बुलाया मोदी को?
मालदीव की राजनीति में बीते कुछ समय से भारत विरोधी सुर सुनाई देते रहे हैं। राष्ट्रपति मुइज्जू की सरकार के शुरुआती फैसलों में भारतीय सैनिकों को वापस भेजने की मांग भी शामिल थी। लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को स्वतंत्रता दिवस पर मुख्य अतिथि बनाना यह दर्शाता है कि मालदीव अब रिश्तों में स्थायित्व और संतुलन चाहता है।
यह फैसला इस बात का भी संकेत है कि भारत की संयमित और रणनीतिक विदेश नीति ने काम किया है। भारत ने टकराव की राह नहीं अपनाई बल्कि सकारात्मक संवाद और सहयोग की नीति पर विश्वास बनाए रखा।
भारत क्यों नहीं चाहता टकराव?
भारत के लिए मालदीव केवल एक पड़ोसी देश नहीं है, बल्कि यह देश हिंद महासागर में उसकी सामरिक नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। मालदीव की भौगोलिक स्थिति भारत को समुद्री सुरक्षा और व्यापार के लिहाज से खास बनाती है।
अगर भारत मालदीव से टकराव करता है तो इससे चीन को खुला मैदान मिल सकता है, जो पहले से ही मालदीव में निवेश और निर्माण के जरिए अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। भारत की “पड़ोसी पहले” नीति में मालदीव हमेशा प्राथमिकता पर रहा है, और इसी नीति के चलते भारत ने कभी भी कटुता का रास्ता नहीं अपनाया।
चीन को मिला बड़ा संदेश
पीएम मोदी की इस यात्रा ने चीन को स्पष्ट संकेत दिया है कि दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका निर्णायक और प्रभावशाली है। मालदीव के स्वतंत्रता दिवस पर चीफ गेस्ट के तौर पर पीएम मोदी की मौजूदगी इस बात का प्रतीक है कि भारत को क्षेत्रीय कूटनीति में अब भी प्राथमिकता दी जाती है।
यह कूटनीतिक संदेश चीन की उस नीति को सीधी चुनौती देता है, जिसमें वह छोटे द्वीपीय देशों में निवेश और सहायता के माध्यम से अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है।
भारत ने कैसे बदला समीकरण?
भारत ने पिछले साल 2024 में मालदीव को 400 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता दी थी। इसके अलावा भारत ने नौसैनिक उपकरण, प्रशिक्षण, और विमान सेवा जैसे रक्षा सहयोग भी बरकरार रखे। मालदीव में भारत की मदद से कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे हुए हैं, जैसे पुल, सड़कों और बिजली संयंत्रों का निर्माण।
जनवरी और मई 2025 में नई दिल्ली और माले में हुई उच्च स्तरीय बैठकों ने दोनों देशों के बीच भरोसे की दीवार को और मजबूत किया। इस तरह की बातचीतों और साझेदारियों से रिश्तों में जो तल्खी थी, वह धीरे-धीरे खत्म होने लगी है।
मोदी-मुइज्जू की मुलाकात: नया अध्याय शुरू
पीएम मोदी और राष्ट्रपति मुइज्जू की इस मुलाकात ने यह साफ कर दिया है कि कूटनीति में संवाद और धैर्य कितना जरूरी होता है। भारत ने अपनी नीतियों में जहां एक ओर दृढ़ता दिखाई, वहीं दूसरी ओर कूटनीतिक समझदारी भी बरती। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने पर चर्चा की।
इस मुलाकात ने ना सिर्फ दोनों देशों के संबंधों को नई दिशा दी, बल्कि पूरे क्षेत्र में एक स्थायित्व का माहौल बनाया।
रिश्तों में बहार, पर सतर्कता जरूरी
पीएम मोदी की मालदीव यात्रा केवल एक राजनयिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की “नर्म लेकिन असरदार” कूटनीति की जीत है। यह यात्रा उन सभी आलोचनाओं को भी जवाब देती है जो मानते थे कि भारत मालदीव को खो देगा।
हालांकि, इस रिश्ते को और मजबूत बनाए रखने के लिए भारत को मालदीव में राजनीतिक बदलावों पर नजर रखनी होगी और चीन की चालों को भी समझना होगा।
लेकिन एक बात तय है — भारत और मालदीव के रिश्तों में अब एक नई सुबह की शुरुआत हो चुकी है।
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