पार्किंसन रोग: पार्किंसन रोग एक गंभीर और धीमी गति से बढ़ने वाला तंत्रिका तंत्र का विकार (Neurological Disorder) है, जो मुख्य रूप से शरीर की गति और संतुलन को प्रभावित करता है। यह रोग उम्र के साथ बढ़ता है और आमतौर पर 60 वर्ष की उम्र के बाद देखा जाता है, हालांकि कुछ मामलों में यह जल्दी भी हो सकता है। इस रोग का सबसे प्रमुख कारण मस्तिष्क में डोपामिन नामक रसायन की कमी है, जो मांसपेशियों की गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।

पार्किंसन रोग क्या है?
पार्किंसन एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क के एक भाग “सब्सटेंशिया नाइग्रा” (Substantia Nigra) की डोपामिन पैदा करने वाली कोशिकाएँ धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। डोपामिन की कमी के कारण व्यक्ति को चलने, बोलने, संतुलन बनाए रखने और अन्य सामान्य गतिविधियों में कठिनाई होती है।
यह रोग समय के साथ बढ़ता है और इसके लक्षण धीरे-धीरे गंभीर होते जाते हैं। हालांकि यह रोग जानलेवा नहीं होता, लेकिन जीवन की गुणवत्ता को बहुत प्रभावित कर सकता है।
पार्किंसन रोग के कारण:
इस बीमारी के सटीक कारणों का अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन कुछ प्रमुख कारण और जोखिम कारक (Risk Factors) निम्नलिखित हैं:
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आनुवांशिकता (Genetics): कुछ मामलों में यह रोग वंशानुगत हो सकता है, विशेषकर यदि परिवार में पहले किसी को यह रोग रहा हो।
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पर्यावरणीय कारक: कीटनाशकों, भारी धातुओं, और रसायनों के लंबे समय तक संपर्क से पार्किंसन का खतरा बढ़ सकता है।
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उम्र: यह रोग 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में अधिक देखा जाता है।
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लिंग: पुरुषों में इसका खतरा महिलाओं की तुलना में अधिक होता है।
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सिर पर चोट: सिर पर लगी बार-बार की चोटें भी इस रोग के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
पार्किंसन रोग के लक्षण:
पार्किंसन रोग के लक्षण धीरे-धीरे शुरू होते हैं और समय के साथ बढ़ते हैं। इन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. मोटर लक्षण (Motor Symptoms):
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कंपन (Tremor): हाथ, पैर या चेहरे पर अनियंत्रित हलचल, जो आराम की स्थिति में अधिक होती है।
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धीमी गति (Bradykinesia): चलने और बोलने में धीमापन आ जाता है।
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मांसपेशियों में अकड़न (Rigidity): शरीर के किसी हिस्से में जकड़न और कठोरता।
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संतुलन की समस्या (Postural Instability): खड़े होने और चलने में अस्थिरता, जिससे गिरने का खतरा बढ़ता है।
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शफल चाल (Shuffling Gait): पैरों को घसीटते हुए चलना, जिसकी गति धीमी और असमान होती है।
2. गैर-मोटर लक्षण (Non-Motor Symptoms):
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नींद में परेशानी
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डिप्रेशन और चिंता
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स्मृति कमजोर होना
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कब्ज
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सूंघने की शक्ति का कम होना
रोग की पहचान (Diagnosis):
पार्किंसन रोग की कोई एक निश्चित जाँच नहीं है। इसका पता डॉक्टर रोगी के लक्षणों, चिकित्सा इतिहास और न्यूरोलॉजिकल परीक्षण के आधार पर लगाते हैं। MRI या PET स्कैन जैसे टेस्ट किए जा सकते हैं ताकि अन्य बीमारियों को बाहर किया जा सके।
पार्किंसन रोग के चरण (Stages):
पार्किंसन रोग को सामान्यतः 5 चरणों में बांटा जाता है:
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प्रारंभिक चरण: हल्के लक्षण, केवल शरीर के एक भाग में।
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दूसरा चरण: लक्षण दोनों पक्षों में लेकिन संतुलन सामान्य।
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तीसरा चरण: संतुलन गड़बड़ाता है, गिरने का खतरा।
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चौथा चरण: चलने में कठिनाई, सहारे की ज़रूरत।
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पाँचवाँ चरण: व्हीलचेयर या बिस्तर पर निर्भरता।

इलाज के विकल्प (Treatment Options):
पार्किंसन का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय मौजूद हैं:
1. दवाएं:
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लेवोडोपा (Levodopa): सबसे प्रभावी दवा जो मस्तिष्क में डोपामिन को बढ़ाने में मदद करती है।
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डोपामिन एगोनिस्ट: डोपामिन के प्रभाव की नकल करती हैं।
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MAO-B इनहिबिटर: डोपामिन को नष्ट होने से रोकती हैं।
2. सर्जरी:
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डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन (DBS): मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड्स लगाकर लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है।
3. जीवनशैली में बदलाव:
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नियमित व्यायाम और योग
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संतुलित आहार और पर्याप्त नींद
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फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी
पार्किंसन रोग के साथ जीवन:
पार्किंसन रोग के साथ जीना मुश्किल हो सकता है, लेकिन सही इलाज, नियमित व्यायाम, डॉक्टर की सलाह और परिवार के सहयोग से व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है। रोगी को सामाजिक रूप से सक्रिय रहना और सकारात्मक मानसिकता बनाए रखना बेहद ज़रूरी है।
नवीनतम शोध और उम्मीद:
वैज्ञानिक पार्किंसन के इलाज और रोकथाम के लिए निरंतर शोध कर रहे हैं। स्टेम सेल थेरेपी, जीन थेरेपी और नई दवाएं आने वाले समय में रोगियों के लिए उम्मीद की किरण बन सकती हैं।
पार्किंसन रोग एक दीर्घकालिक लेकिन प्रबंधनीय बीमारी है। यदि समय रहते इसका पता लग जाए और इलाज शुरू हो जाए, तो रोगी लंबे समय तक सक्रिय और आत्मनिर्भर जीवन जी सकता है। समाज, परिवार और चिकित्सा विशेषज्ञों का सहयोग इस रोग से लड़ने में अहम भूमिका निभाता है।
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