निसार सैटेलाइट: भारत-अमेरिका की ऐतिहासिक साझेदारी

निसार सैटेलाइट: भारत और अमेरिका की संयुक्त अंतरिक्ष परियोजना निसार (NISAR Satellite) इस समय पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित कर रही है। यह सैटेलाइट केवल तकनीकी उपलब्धि ही नहीं है, बल्कि धरती के बदलते पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला है। इस लेख में हम निसार सैटेलाइट के बारे में विस्तार से जानेंगे — इसके उद्देश्य, विशेषताएँ, लॉन्चिंग, और भारत के लिए इसके महत्व पर चर्चा करेंगे।

निसार सैटेलाइट
                    निसार सैटेलाइट

निसार सैटेलाइट क्या है?

निसार (NISAR) का पूरा नाम है NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar। यह दुनिया का पहला ऐसा सैटेलाइट है जिसमें डुअल-फ्रिक्वेंसी रडार (L-बैंड और S-बैंड) का इस्तेमाल किया गया है। इसे संयुक्त रूप से नासा (NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया जा रहा है।

  • नासा ने L-बैंड रडार और अन्य तकनीकी उपकरण प्रदान किए हैं।

  • इसरो ने S-बैंड रडार, लॉन्च व्हीकल (GSLV Mk-II) और ग्राउंड सिस्टम की जिम्मेदारी संभाली है।

निसार का मुख्य उद्देश्य:

निसार का सबसे बड़ा लक्ष्य है धरती पर हो रहे पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक परिवर्तनों का सटीक अध्ययन

इसके प्रमुख उद्देश्य हैं:

  1. हिमनदों और बर्फ की चादरों का अध्ययन

    • ग्लेशियरों के पिघलने की गति और जलवायु परिवर्तन पर उनके प्रभाव को समझना।

  2. वन और जैव विविधता की निगरानी

    • जंगलों में हो रहे बदलावों और पेड़ों की कटाई का पता लगाना।

  3. भूकंप और ज्वालामुखी की भविष्यवाणी

    • पृथ्वी की सतह में होने वाली हलचल को रिकॉर्ड करना।

  4. कृषि क्षेत्र का विश्लेषण

    • फसलों की स्थिति, नमी और उपज क्षमता की जानकारी देना।

  5. समुद्र स्तर और तटीय क्षेत्रों की निगरानी

    • समुद्री लहरों और बाढ़ की स्थिति का आकलन करना।

तकनीकी विशेषताएँ:

निसार की कुछ प्रमुख तकनीकी खूबियाँ इस प्रकार हैं:

  • डुअल-फ्रिक्वेंसी रडार:

    • L-बैंड (नासा द्वारा)

    • S-बैंड (इसरो द्वारा)

  • उच्च रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग:

    • यह 5 से 10 मीटर तक की बारीक तस्वीरें ले सकता है।

  • 24×7 मॉनिटरिंग:

    • बादलों और अंधेरे में भी तस्वीरें लेने की क्षमता।

  • वजन: लगभग 2,800 किलोग्राम

  • कक्षा (Orbit):

    • पृथ्वी से लगभग 747 किलोमीटर ऊंचाई पर स्थापित होगा।

लॉन्चिंग और तैनाती:

निसार सैटेलाइट को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा। इसरो का GSLV Mk-II रॉकेट इस मिशन के लिए इस्तेमाल होगा।

  • अनुमान है कि लॉन्चिंग के बाद यह सैटेलाइट कम से कम 3 से 5 वर्षों तक सक्रिय रहेगा।

  • इसकी कक्षा इस प्रकार निर्धारित की गई है कि यह हर 12 दिन में पूरे ग्लोब का कवरेज दे सके।

निसार (NISAR) सैटेलाइट को 30 जुलाई 2025 को भारत‑समयानुसार शाम 5:40 बजे (IST) श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC‑SHAR) से GSLV‑F16 रॉकेट द्वारा सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया

यह मिशन नासा और इसरो के बीच पहला संयुक्त सैटेलाइट मिशन था। निसार एक सन‑सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में स्थापित हुई है, जिसकी ऊँचाई लगभग 743 किलोमीटर और झुकाव (inclination) 98.4° है। लॉन्च अमेरिकी (EDT) समयानुसार सुबह 8:10 बजे हुआ था, जो भारतीय समयानुसार शाम 5:40 तक था

लॉन्च का सारांश:

विषय विवरण
लॉन्च तिथि 30 जुलाई 2025
समय (IST)    शाम 5:40 बजे
रॉकेट GSLV‑F16 (GSLV Mk‑II)
लॉन्च केंद्र Satish Dhawan Space Centre, Sriharikota
ऑर्बिट Sun‑synchronous polar orbit (~743 km, 98.4°)

यह मिशन GSLV‑F16 की 18वीं उड़ान थी और इसका उद्देश्य था निसार सैटेलाइट को उच्च‑निशांत ऑर्बिट में स्थापित करना

आगे की योजना और ऑपरेशन:

लॉन्च के बाद, अगले लगभग 90 दिनों का In-Orbit Checkout (IOC) फेज़ चलेगा, जिसमें सैटेलाइट के सभी सिस्टम की पूरी जाँच और कैलिब्रेशन किया जाएगा। इस अवधि के बाद ही “साइंस फेज़” में प्रवेश होगा, जिसके अंतर्गत व्यावसायिक डेटा संग्रहण शुरू किया जाएगा।

भारत के लिए महत्व:

निसार सैटेलाइट भारत के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

  1. कृषि क्षेत्र में लाभ

    • किसानों को फसलों की स्थिति और मिट्टी की नमी की जानकारी मिलेगी।

  2. आपदा प्रबंधन में मदद

    • बाढ़, भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं की समय रहते जानकारी उपलब्ध होगी।

  3. जलवायु परिवर्तन से निपटना

    • हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने और नदी तंत्र में हो रहे बदलावों पर नज़र रखी जा सकेगी।

  4. राष्ट्रीय सुरक्षा

    • सीमावर्ती क्षेत्रों की भौगोलिक निगरानी और आपदा के समय त्वरित निर्णय लेने में मदद।

नासा-इसरो सहयोग का महत्व:

यह पहली बार है जब नासा और इसरो ने किसी बड़े सैटेलाइट मिशन पर साथ काम किया है

  • इससे भारत की तकनीकी क्षमता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान मिली है।

  • अमेरिका को एशियाई भू-भाग और महासागरों पर विस्तृत डेटा मिलेगा।

  • दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी रिश्ते और भी मजबूत होंगे।

भविष्य की संभावनाएँ:

निसार सैटेलाइट के माध्यम से मिलने वाले आंकड़े केवल वैज्ञानिक शोध तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि:

  • नीतिगत निर्णय (जैसे पर्यावरण संरक्षण और शहरी योजना)

  • कृषि सुधार

  • आपदा से निपटने की रणनीतियाँ

  • जल संसाधन प्रबंधन
    में भी उपयोगी होंगे।

निसार सैटेलाइट धरती के बदलते स्वरूप को समझने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। भारत और अमेरिका का यह संयुक्त मिशन न केवल विज्ञान और तकनीक की दुनिया में नया अध्याय जोड़ेगा, बल्कि मानवता को जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में भी मदद करेगा। आने वाले वर्षों में निसार के जरिए जुटाई गई जानकारी हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों को सुरक्षित बनाने में मील का पत्थर साबित होगी।

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