गुन्द्रुक को झोल (Gundruk ko Jhol) की रेसिपी, इतिहास और महत्व

गुन्द्रुक को झोल नेपाल का एक पारंपरिक और लोकप्रिय व्यंजन है, जिसे खासकर सर्दियों के मौसम में बड़े चाव से खाया जाता है। “गुन्द्रुक” स्वयं में एक विशेष प्रकार का किण्वित (फर्मेंटेड) साग होता है जो मुख्यतः सरसों, मूली और चौलाई जैसी पत्तेदार सब्जियों से तैयार किया जाता है। जब गुन्द्रुक को पानी, टमाटर, मसालों और अन्य सामग्रियों के साथ पकाया जाता है, तब जो खट्टा-चटपटा झोल बनता है, उसे “गुन्द्रुक को झोल” कहा जाता है।

गुन्द्रुक को झोल
                                 गुन्द्रुक को झोल

इतिहास और परंपरा:

गुन्द्रुक की परंपरा नेपाली ग्रामीण जीवन में सदियों से चली आ रही है। यह विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों में बनाया जाता है जहाँ सर्दियों के मौसम में ताज़ी सब्ज़ियाँ उपलब्ध नहीं होतीं। इसलिए, लोगों ने सब्ज़ियों को किण्वित कर स्टोर करने की यह विधि विकसित की।

गुन्द्रुक सिर्फ स्वाद का नहीं, बल्कि संरक्षण (preservation) का भी एक बेजोड़ उदाहरण है। इसे नेपाल के पहाड़ी समुदायों, विशेषकर गुरुङ, तामाङ और राई जातियों में प्रमुखता से तैयार किया जाता है।

इतिहासकारों के अनुसार, गुन्द्रुक का ज़िक्र 17वीं सदी के स्थानीय काठमांडू राजदरबार में भी मिलता है, जहाँ इसे स्थानीय व्यंजनों में शामिल किया गया था। इसका खट्टापन और स्वास्थ्यवर्धक गुण इसे राजसी भोजनों में एक खास स्थान दिलाते थे।

गुन्द्रुक के स्वास्थ्य लाभ:

  1. प्रोबायोटिक गुण – चूँकि यह किण्वित होता है, गुन्द्रुक में प्राकृतिक प्रोबायोटिक्स पाए जाते हैं, जो पाचन तंत्र के लिए लाभकारी होते हैं।

  2. विटामिन्स और फाइबर – इसमें विटामिन C, आयरन और फाइबर की मात्रा अच्छी होती है, जिससे यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

  3. कम वसा और कैलोरी – यह डाइट करने वालों के लिए भी उपयुक्त है क्योंकि इसमें फैट और कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है।

गुन्द्रुक कैसे बनता है? (संक्षिप्त विधि):

गुन्द्रुक स्वयं बनाना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है। इसे बनाने के लिए सरसों, मूली या चौलाई के पत्तों को 2-3 दिन तक धूप में मुरझाया जाता है। फिर इन्हें किण्वन के लिए मटकी या गड्ढे में दबा दिया जाता है, जहाँ वे प्राकृतिक रूप से खट्टे हो जाते हैं। करीब 7-10 दिन बाद, इन्हें निकालकर फिर से धूप में सुखाया जाता है। अब यह लंबे समय तक उपयोग योग्य होता है।

गुन्द्रुक को झोल की रेसिपी (Gundruk ko Jhol Recipe in Hindi):

सामग्री (4 लोगों के लिए):

  • गुन्द्रुक – 1 कप (सूखा)

  • टमाटर – 2 (बारीक कटे)

  • लहसुन – 6-7 कलियाँ (कुचली हुई)

  • अदरक – 1 इंच टुकड़ा (कद्दूकस किया हुआ)

  • हरी मिर्च – 2 (चीरकर)

  • प्याज़ – 1 (बारीक कटा) (वैकल्पिक)

  • राई (सरसों) – 1/2 चम्मच

  • हल्दी पाउडर – 1/2 चम्मच

  • लाल मिर्च पाउडर – 1/2 चम्मच

  • नमक – स्वाद अनुसार

  • सरसों का तेल – 2 चम्मच

  • पानी – 3-4 कप

  • धनिया पत्ता – सजावट के लिए

बनाने की विधि:

1. गुन्द्रुक को भिगोना:
सबसे पहले सूखे गुन्द्रुक को हल्के गर्म पानी में 15-20 मिनट के लिए भिगो दें ताकि वह थोड़ा नरम हो जाए।

2. तड़का लगाना:
कढ़ाही या गहरे पैन में सरसों का तेल गरम करें। तेल गरम हो जाने पर उसमें राई डालें और चटकने दें। फिर अदरक, लहसुन और हरी मिर्च डालकर भूनें जब तक लहसुन हल्का सुनहरा न हो जाए।

3. प्याज़ और टमाटर डालना:
अब प्याज़ डालें (यदि उपयोग कर रहे हैं) और हल्का सुनहरा होने तक भूनें। फिर टमाटर, हल्दी, लाल मिर्च और नमक डालें। टमाटर के नरम होने तक अच्छे से पकाएं।

4. गुन्द्रुक डालें:
अब भीगा हुआ गुन्द्रुक डालें और 2-3 मिनट तक मसालों के साथ भूनें ताकि इसका खट्टापन मसालों के साथ घुल जाए।

5. पानी डालें और पकाएं:
अब 3-4 कप पानी डालें और धीमी आंच पर 10-12 मिनट तक उबालें। जितना अधिक पकाएँगे, झोल उतना स्वादिष्ट बनेगा।

6. परोसना:
गैस बंद करें, हरा धनिया छिड़कें और गरमा गरम झोल को चावल के साथ परोसें।

सेविंग सुझाव:

  • गुन्द्रुक को झोल को गरम चावल, घी और अचार के साथ परोसा जाता है।

  • यह दाल की जगह खाया जाता है और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ सब्ज़ियों की कमी होती है।

संस्कृति में महत्व:

गुन्द्रुक को केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि नेपाली संस्कृति की आत्मा माना जाता है। पर्व-त्योहारों में, खेतों में काम करते समय और दूरस्थ इलाकों में जहाँ संसाधन कम होते हैं – वहाँ यह भोजन पोषण, ऊर्जा और संस्कृति तीनों का प्रतीक है।

नेपाल में तो इसे इतना प्रिय माना जाता है कि प्रवासी नेपाली भी जब विदेशों में बसते हैं, तो सबसे पहले अपने साथ गुन्द्रुक जरूर ले जाते हैं या मंगवाते हैं।

गुन्द्रुक को झोल एक साधारण लेकिन बेहद समृद्ध व्यंजन है, जो स्वाद, पोषण और परंपरा – तीनों को समेटे हुए है। यह बताता है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी एक समुदाय अपनी रसोई को स्वादिष्ट, टिकाऊ और स्वास्थ्यवर्धक बना सकता है।

आज के दौर में जब प्रोबायोटिक सप्लीमेंट्स का प्रचलन बढ़ गया है, गुन्द्रुक जैसे पारंपरिक भोजन हमें याद दिलाते हैं कि हमारी जड़ों में ही असली स्वास्थ्य छिपा है।

ऐसे और भी लेखों के लिए हमारे साथ जुड़े रहें! Khabari bandhu पर पढ़ें देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरें — बिज़नेस, एजुकेशन, मनोरंजन, धर्म, क्रिकेट, राशिफल और भी बहुत कुछ।

गढ़वाली मिठाई: अरसू (Arsa) की रेसिपी, इतिहास और राजसी जुड़ाव

Leave a Comment

Exit mobile version