नेपाल की पारंपरिक रसोई में एक बेहद खास और स्वास्थ्यवर्धक व्यंजन है – नेपाली डिश ढिँडो। यह व्यंजन स्वाद, पोषण और परंपरा का ऐसा मेल है, जिसे सदियों से नेपाल के ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में खाया जाता रहा है। आज यह न केवल नेपाल में बल्कि भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय हो चुका है। आइए जानें नेपाली डिश ढिँडो का इतिहास, बनाने की विधि और इसके स्वास्थ्य लाभ।

नेपाली डिश ढिँडो का इतिहास:
नेपाली डिश ढिँडो का इतिहास बहुत पुराना है। यह व्यंजन खासकर नेपाल के पहाड़ी और हिमालयी क्षेत्रों में भोजन के मुख्य रूप में खाया जाता था। चावल की अनुपलब्धता, ठंडा मौसम और मेहनतकश जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए ढिँडो को पोषण और ऊर्जा का स्त्रोत माना गया। परंपरागत रूप से यह बाजरा, कोदो (फिंगर मिलेट), जौं या मक्के के आटे से बनाया जाता था।
राजा पृथ्वी नारायण शाह के काल में भी नेपाली डिश ढिँडो को किसान और सैनिकों की ऊर्जा का मुख्य स्रोत माना जाता था। इसका निर्माण जल्दी हो जाने वाला, पेट भरने वाला और लंबे समय तक ऊर्जा देने वाला भोजन रहा है। पहले इसे हाथों से खाया जाता था, और इसे स्थानीय सब्जियों, अचार या छाछ के साथ परोसा जाता था।
🍲 नेपाली डिश ढिँडो बनाने की विधि:
सामग्री:
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बाजरे का आटा / मक्के का आटा / कोदो का आटा – 1 कप
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पानी – 3 कप
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देशी घी – 1 बड़ा चम्मच (वैकल्पिक)
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नमक – स्वादानुसार
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छाछ या दाल – परोसने के लिए
विधि:
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सबसे पहले एक भारी तले वाले बर्तन (अल्यूमिनियम या लोहे की कढ़ाही) में 3 कप पानी उबालने रखें।
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पानी में थोड़ा सा नमक डाल दें।
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जब पानी अच्छी तरह से उबलने लगे, तब उसमें धीरे-धीरे बाजरे का आटा डालते जाएं और लगातार लकड़ी के चमचे से चलाते रहें।
(ध्यान रखें कि आटा डालते समय एक साथ न डालें वरना गांठें पड़ सकती हैं।) -
आटे को अच्छी तरह चलाते रहें ताकि वह नीचे न चिपके। धीमी आंच पर लगभग 8-10 मिनट तक पकाएं।
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जब मिश्रण गाढ़ा होकर कढ़ाही छोड़ने लगे और उसका रंग थोड़ा गहरा हो जाए, तो समझिए कि नेपाली डिश ढिँडो तैयार है।
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परोसने से पहले ऊपर से थोड़ा देशी घी डालें और इसे छाछ, मसूर की दाल, आलू की सब्जी या अचार के साथ परोसें।
🧠 स्वास्थ्यवर्धक गुण:
नेपाली डिश ढिँडो केवल एक पारंपरिक व्यंजन नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण पौष्टिक आहार है। इसमें फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और आवश्यक अमीनो एसिड प्रचुर मात्रा में होते हैं। जो लोग शुगर (डायबिटीज़) से पीड़ित हैं, उनके लिए ढिँडो एक बेहतरीन विकल्प है क्योंकि इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है।
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पाचन शक्ति बढ़ाता है: ढिँडो में रेशेदार तत्व (फाइबर) अधिक होता है, जो पाचन क्रिया को सुचारू बनाता है।
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ऊर्जा का स्रोत: विशेष रूप से मजदूरी करने वालों और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के लिए यह भोजन लंबे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है।
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ग्लूटेन-फ्री: बाजरा, कोदो और मक्का ग्लूटेन-फ्री होते हैं, इसलिए नेपाली डिश ढिँडो एलर्जी पीड़ितों के लिए भी सुरक्षित है।
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वजन नियंत्रण में सहायक: यह भूख को नियंत्रित करता है और जल्दी पचने की बजाय धीरे-धीरे ऊर्जा देता है।
ढिँडो की आधुनिक लोकप्रियता:
अब नेपाली डिश ढिँडो केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। नेपाल के शहरी होटलों और रेस्टोरेंट्स में यह व्यंजन पारंपरिक अंदाज़ में परोसा जा रहा है। बहुत से हेल्थ कॉन्शियस लोग आज चावल या गेहूं की जगह ढिँडो को चुन रहे हैं। भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम में भी यह व्यंजन खूब पसंद किया जा रहा है।
नेपाल सरकार ने भी इसे अपने सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है। विदेशों में रहने वाले नेपाली नागरिक भी इसे अपने दैनिक भोजन में शामिल करते हैं।
ढिँडो खाने का पारंपरिक तरीका:
नेपाली डिश ढिँडो को पारंपरिक रूप से हाथ से खाया जाता है। इसे अँगुलियों से थोड़ा-थोड़ा लेकर गोल बनाकर दही या छाछ में डुबोकर खाया जाता है। इसका स्वाद जितना सरल है, उतना ही आत्मीय भी।
नेपाली डिश ढिँडो एक ऐसा व्यंजन है जो न केवल पारंपरिक संस्कृति से जुड़ा है, बल्कि आज के स्वास्थ्य जागरूक युग में भी इसकी उपयोगिता बनी हुई है। यह एक आदर्श भोजन है जो शरीर को पोषण, ऊर्जा और संतुलन प्रदान करता है। अगर आप स्वस्थ और पारंपरिक व्यंजनों के शौकीन हैं, तो एक बार नेपाली डिश ढिँडो ज़रूर बनाएं और खाएं। यह आपके भोजन में एक नया, पौष्टिक और स्वादिष्ट अध्याय जोड़ेगा।

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