National Handloom Day 2025: ‘शिल्प, संस्कृति और स्वाभिमान’ – बुनकरों को मिला मंत्रियों का साथ, स्वदेशी को अपनाने का संकल्प

National Handloom Day 2025: हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है, जो भारत की समृद्ध शिल्प परंपरा, बुनकरों के कौशल और स्वदेशी आत्मनिर्भरता की भावना को समर्पित होता है। 2025 का राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भी खास रहा, क्योंकि इस अवसर पर देश के शीर्ष नेताओं ने बुनकरों को शुभकामनाएं दीं, उनके योगदान को सराहा और ‘वोकल फॉर लोकल’ तथा ‘स्वदेशी अपनाओ’ जैसे अभियानों को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया।

देश के विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से न केवल बुनकर समुदाय को सम्मानित किया, बल्कि भारत की हथकरघा परंपरा को विश्व मंच पर पहचान दिलाने की अपील भी की।

हथकरघा: सिर्फ कपड़ा नहीं, परंपरा और पहचान का प्रतीक

National Handloom Day 2025

भारत में हथकरघा सिर्फ एक कारीगरी नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह कला सदियों से भारत के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में जीवित है। चाहे बनारसी साड़ी हो या कांथा कढ़ाई, चाहे पाटन पटोला हो या कच्छ का बंधेज – हर हथकरघा उत्पाद में किसी न किसी समुदाय की संस्कृति, धरोहर और जीवनशैली की झलक मिलती है।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025 के मौके पर इस सांस्कृतिक समृद्धि को एक बार फिर केंद्र में लाया गया। बुनकरों के जीवन, उनके योगदान और चुनौतियों को समझने का यह एक खास दिन बन गया।

अमित शाह ने कहा – “हथकरघा है सांस्कृतिक समृद्धि और शिल्प कौशल का प्रतीक”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस अवसर पर बुनकरों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारतीय हथकरघा परंपरा न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि और शिल्प कौशल का भी प्रतीक है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार बुनकरों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।

श्री शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हथकरघा क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जैसे – सूत सब्सिडी, बुनकर मुद्रा योजना, टेक्सटाइल पार्क, उत्पाद प्रमाणन, और विपणन सहायता योजना। इन योजनाओं ने इस उद्योग को नई दिशा और ऊर्जा दी है, और खासतौर पर महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया है।

आत्मनिर्भर भारत की यात्रा में बुनकरों की बड़ी भूमिका

श्री अमित शाह ने आगे कहा कि भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थानों का विस्तार और विश्वकर्मा योजना के तहत कौशल विकास, बुनकरों को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण देने का कार्य कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि इन प्रयासों से न केवल पारंपरिक बुनाई को आधुनिक टेक्नोलॉजी से जोड़ा जा रहा है, बल्कि बुनकरों को एक आत्मनिर्भर और सक्षम भारत के निर्माण में भागीदार भी बनाया जा रहा है।

“हथकरघा है हमारी सांस्कृतिक विरासत”-शिवराज सिंह चौहान

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संदेश में कहा कि हथकरघा भारत की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है। यह सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि एक गांव की, एक कारीगर की और एक परंपरा की कहानी बुनता है।

उन्होंने ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को आत्मसात करने और भारतीय हथकरघा उत्पादों को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अगर हम स्वदेशी को अपनाएं, तो न केवल देश का आर्थिक ढांचा मजबूत होगा, बल्कि बुनकरों को भी सम्मान मिलेगा।

“हथकरघा बुनता है गौरव की कहानियां”-नितिन गडकरी

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस अवसर पर भारतीय बुनकरों की कालातीत कला और शिल्प कौशल की सराहना की।

उन्होंने कहा कि हथकरघा केवल कपड़ा नहीं बुनता, बल्कि गौरव और परंपरा की कहानियों को जीवंत करता है। हर धागा, हर रंग, हर पैटर्न एक संदेश देता है – अपनेपन का, श्रम का और कला का।

“हथकरघा बना है ‘नए भारत’ की विकास यात्रा का हिस्सा”- मनोहर लाल

केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने भी इस दिन को खास बताया। उन्होंने कहा कि हथकरघा अब केवल एक पारंपरिक कला नहीं रही, बल्कि यह ‘नए भारत’ की विकास यात्रा का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।

उन्होंने सभी देशवासियों से आग्रह किया कि वे स्वदेशी उत्पादों को अपनाएं, और ‘लोकल फॉर वोकल’ को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। इससे न केवल बुनकरों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि देश की आर्थिक रीढ़ भी मजबूत होगी।

“बुनकरों का कौशल है देश का स्वाभिमान”- गिरिराज सिंह

केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने संदेश में कहा कि बुनकरों की कला केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि राष्ट्र के स्वाभिमान के रूप में देखी जानी चाहिए।

उन्होंने हथकरघा को भारत की सांस्कृतिक विरासत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बताया और कहा कि इस परंपरा को संरक्षित करना हम सबका दायित्व है।

क्यों जरूरी है हथकरघा को समर्थन?

भारत में हजारों बुनकर परिवार आज भी अपनी पारंपरिक कारीगरी के माध्यम से आजीविका चला रहे हैं। लेकिन मशीनों और बड़े उद्योगों की वजह से यह कला धीरे-धीरे संकट में आ रही है। ऐसे में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि एक सामूहिक जागरूकता का प्रयास है, ताकि हम यह समझ सकें कि हथकरघा को अपनाना सिर्फ फैशन नहीं, एक देशभक्ति का कदम भी है।

जब हम एक खादी की शर्ट, एक हैंडलूम साड़ी या एक लोकल स्टॉल से खरीदा दुपट्टा पहनते हैं, तो हम उस बुनकर के जीवन में रौशनी की एक किरण जोड़ते हैं।

सरकार की योजनाएं और बुनकरों को मिल रहा सहयोग

वर्तमान सरकार ने बुनकरों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। जैसे:

  • बुनकर मुद्रा योजना से उन्हें आसान लोन मिलता है।
  • सूत सब्सिडी योजना से कच्चे माल की लागत कम होती है।
  • हथकरघा टेक्सटाइल पार्क और उत्पाद प्रमाणीकरण से उनके उत्पादों को बाजार में बेहतर जगह मिलती है।
  • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और एक्सपोर्ट प्रमोशन के माध्यम से उनके काम को दुनिया तक पहुंचाया जा रहा है।

इन प्रयासों से बुनकरों की स्थिति में बदलाव आ रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।

हथकरघा का समर्थन है ‘नए भारत’ की आत्मा का समर्थन

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025 न केवल बुनकरों के सम्मान का दिन है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि स्वदेशी अपनाना, हथकरघा का समर्थन करना, और वोकल फॉर लोकल जैसे विचारों को जीवन में उतारना जरूरी है।

हथकरघा में सिर्फ धागे नहीं बुनते, बल्कि देश की आत्मा, परंपरा और गौरव भी बुना जाता है। इसलिए आइए, हम सब मिलकर इस आंदोलन को मजबूत करें। अगली बार जब भी आप शॉपिंग करें, तो एक बार जरूर सोचें – क्या यह स्वदेशी है? क्या यह किसी बुनकर के जीवन को संवार सकता है?

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