Maa Movie Review: हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘Maa’ ने दर्शकों के बीच काफी हलचल मचा दी है। काजोल की इस बहुप्रतीक्षित फिल्म ने सिनेमाघरों में दस्तक देते ही लोगों को चौंका दिया, क्योंकि इसमें मां-बेटी के रिश्ते को एक डरावनी और पौराणिक पृष्ठभूमि में पिरोया गया है।
निर्देशक विशाल फुरिया द्वारा निर्देशित यह फिल्म हॉरर और मिथक का अनोखा मिश्रण है, जिसमें भारतीय संस्कृति, देवी-शक्ति और मातृत्व का भावनात्मक मेल देखने को मिलता है। रिलीज़ से पहले ही फिल्म का ट्रेलर और पोस्टर सोशल मीडिया पर छाए हुए थे, और अब जब फिल्म बड़े पर्दे पर आई है, तो दर्शकों के रिएक्शन्स भी बंटे हुए हैं।
काजोल का अभिनय
काजोल एक मां के रूप में जो अपनी बेटी को बचाने के लिए पौराणिक राक्षसी शक्तियों से टकरा रही हों — ऐसा प्लॉट सुनते ही आपके मन में रोमांच जाग उठता है। Maa Movie भी यही कोशिश करती है, और कहीं-कहीं आपको पकड़ कर रखने में सफल भी होती है। फिल्म की शुरुआत से लेकर क्लाइमैक्स तक, यह एक ऐसे वर्ल्ड में ले जाती है जहां पौराणिकता, मातृत्व और भय का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है।
हालांकि फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है इसकी कहानी, जो पहले से जानी-पहचानी लगती है। यह वही पुराना ट्रैक है – एक आम मां, उसकी बेटी खतरे में, एक रहस्यमयी शापित अतीत, पौराणिक प्राणी और अंत में दिव्य शक्ति की जागृति। इस फिल्म में सस्पेंस या चौंकाने वाले मोड़ की कमी है, जो किसी भी अच्छी हॉरर फिल्म की जान होते हैं।
विज़ुअल्स से भरा है डर और फैंटेसी का संसार
Maa Movie के निर्देशक विशाल फुरिया ने इस बार हॉरर को एक भव्य और ग्राफिक नावेल जैसे लुक में पेश किया है। ‘Maa’ की सबसे बड़ी ताकत इसका विज़ुअल अपील है। फिल्म में जो दृश्य दिखाए गए हैं — जैसे कि बदलती परछाइयां, पौराणिक जीव, और डरावने घर — वो वाकई में डराते हैं और आकर्षित करते हैं।
अगर केवल लुक्स के आधार पर इस फिल्म को रेट किया जाए, तो यह काफी ऊपर होती। लेकिन डरावनी फिल्मों में सिर्फ दिखावे से काम नहीं चलता। कहानी में जान होना बेहद जरूरी होता है।
काजोल: माँ के रूप में एक दमदार प्रतीक
Maa Movie की असली जान हैं काजोल, जिन्होंने एक मां की भूमिका में ऐसा दम दिखाया है कि आप उनकी हर भावना को महसूस कर सकते हैं। जब वह अपनी बेटी के लिए तड़पती हैं, जब वह राक्षसी ताकतों से लड़ती हैं, तब उनकी आंखों में एक सच्चा गुस्सा और दर्द नज़र आता है।
काजोल ने इस रोल में जो ग्रेविटास और इंटेंसिटी लाई है, वही फिल्म को संभालती है। आप उनके लिए रूट करते हैं, उनके संघर्ष में साथ देना चाहते हैं, और यही उनकी सफलता है।
काली माँ का रूप – एक नया आध्यात्मिक एंगल
भारतीय सिनेमा में अब तक दुर्गा माँ को ही मुख्य रूप से दर्शाया जाता रहा है, लेकिन ‘Maa’ में काली माँ की शक्ति को केंद्र में लाया गया है। यह न सिर्फ एक ताज़ा बदलाव है बल्कि भारत की गहरी आध्यात्मिक परंपराओं को एक नई दृष्टि से जोड़ने का प्रयास भी है।
पौराणिक कहानियों को भावनात्मक ड्रामा के साथ मिलाकर निर्देशक ने एक अनोखा पृष्ठ तैयार किया है। यह फिल्म मातृत्व और स्त्री शक्ति की एक अनकही कहानी भी कहती है।
निर्देशक विशाल फुरिया की शैली अब दोहराव का शिकार
‘Chhorii’ और ‘Chhorii 2’ के बाद विशाल फुरिया की हॉरर शैली अब कुछ हद तक रिपिटेटिव लगने लगी है। ‘Maa’ में भी वही पुराने टेम्पलेट्स, वही कर्स, वही मिस्टिक प्राणी और लगभग वही टोन दोहराई गई है। इससे फिल्म की मौलिकता पर असर पड़ता है।
निर्देशक को अब एक बार पीछे हटकर अपनी क्रिएटिव सोच पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है। हॉरर एक ऐसा जॉनर है जिसमें नयापन और सस्पेंस सबसे जरूरी होते हैं, और ‘Maa’ में वो बात कम नज़र आती है।
भाषा और बंगाली पृष्ठभूमि में प्रामाणिकता की कमी
फिल्म बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित है, लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण कई बार सोशल मीडिया मीम जैसा लगता है। पात्रों की भाषा और उच्चारण इतने ओवर-द-टॉप हैं कि असल बंगाली संस्कृति से उनका कोई वास्ता नहीं लगता।
रॉनित रॉय जैसे प्रतिभाशाली अभिनेता भी बंगाली लहजे के साथ न्याय नहीं कर पाए और उनका हर डायलॉग भाषा का मज़ाक बनाता है। इसके विपरीत इंद्रनील सेनगुप्ता ने कम समय में भी प्रभावी प्रदर्शन किया, जो यह सोचने पर मजबूर करता है कि उन्हें और बड़े रोल क्यों नहीं दिए जाते।
माँ-बेटी के रिश्ते को जोड़ता एक संगीत का जादू
फिल्म के अंत में जो सबसे भावुक पल आते हैं, उन्हें और खास बना देता है जुबिन नौटियाल का गाना ‘हुमनवा मेरे’। इस गीत का उपयोग माँ-बेटी के संबंध को और गहराई देता है और फिल्म की भावनात्मक धड़कन बन जाता है।
इसके अलावा एक बेहद खूबसूरत और दिल छू लेने वाला इशारा था, जब क्रेडिट्स में हर कलाकार और क्रू मेंबर के नाम के साथ उनकी मां के नाम को भी जोड़ा गया। यह फिल्म के मैसेज के साथ बहुत सटीक बैठता है और एक भावनात्मक जुड़ाव भी बनाता है।
अच्छी कास्टिंग, लेकिन कुछ किरदार बर्बाद
काजोल, इंद्रनील सेनगुप्ता और बाल कलाकारों के अभिनय की तारीफ करनी होगी, लेकिन वहीं दूसरी ओर जितिन गुलाटी जैसे टैलेंटेड एक्टर को लगभग बर्बाद कर दिया गया। फिल्म में उनकी भूमिका ना के बराबर है, जिससे निराशा होती है।
खेरिन शर्मा और रुपकथा चक्रवर्ती जैसी युवा कलाकारों ने उम्मीदें जगाई हैं और शायद आगे चलकर वे इंडस्ट्री में बड़ा नाम बन सकती हैं।
काजोल ने बचा ली फिल्म, पर पूरी तरह नहीं
‘Maa’ फिल्म का विचार अच्छा था – एक मां की महाशक्ति, उसका त्याग, और भारतीय पौराणिकता से जुड़ी एक डरावनी कहानी। लेकिन कमजोर कहानी, दोहराव भरी डायरेक्शन और कुछ गलत क्रिएटिव चॉइस ने फिल्म को साधारण बना दिया।
फिर भी काजोल की परफॉर्मेंस इतनी दमदार है कि फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है। अगर आप भारतीय हॉरर में कुछ नया देखने के इच्छुक हैं और भावनाओं से भरी मां की कहानी देखना चाहते हैं, तो ‘Maa’ आपके लिए है।
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