Kathal Movie: भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2025 की घोषणा 1 अगस्त को की गई, और इस बार हिंदी फिल्म श्रेणी में एक खास फिल्म ने सबका दिल जीत लिया। सान्या मल्होत्रा अभिनीत और यशोवर्धन मिश्रा द्वारा निर्देशित ‘कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला है। यह खबर ना सिर्फ हिंदी सिनेमा के लिए, बल्कि उन फिल्मों के लिए भी बड़ी उपलब्धि है जो सामाजिक मुद्दों को मनोरंजन के लहजे में पेश करती हैं।
क्या है ‘कटहल’ की कहानी?
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई यह फिल्म एक छोटे से कस्बे ‘मोबा’ में घटित होती है, जहाँ एक स्थानीय विधायक (MLA) के बगीचे से दो कटहल चोरी हो जाते हैं। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब इस मामूली सी चोरी की जांच के लिए पूरी पुलिस फोर्स सक्रिय हो जाती है। इंस्पेक्टर महिमा बासोर, जिसका किरदार सान्या मल्होत्रा ने निभाया है, इस केस की जांच करती है। लेकिन इस मामूली दिखने वाले केस की तह में जाने पर जो निकलता है, वह भारतीय समाज की जड़ में छिपी समस्याओं को उजागर करता है — जैसे जातीय भेदभाव, पुलिस की लापरवाही, और मानव तस्करी।
क्यों खास है यह फिल्म?
‘कटहल’ एक सॉफ्ट सटायर है — यानी एक हल्के-फुल्के अंदाज में तीखी सच्चाई पेश करने वाली फिल्म। यह दिखाती है कि कैसे भारत में असली मुद्दे हाशिये पर रहते हैं जबकि ताकतवर लोगों की छोटी बातों को प्राथमिकता दी जाती है।
फिल्म में ह्यूमर का बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है, जिससे यह गंभीर मुद्दों को भी देखने में सहज और समझने में आसान बनाती है। यह फिल्म दर्शकों को हंसाते-हंसाते झकझोर देती है और सोचने पर मजबूर करती है कि हमारी व्यवस्था कैसे काम करती है।
सान्या मल्होत्रा का अब तक का सबसे दमदार किरदार
सान्या मल्होत्रा, जिन्होंने ‘दंगल’, ‘बधाई हो’ और ‘लूडो’ जैसी फिल्मों से अपनी एक खास पहचान बनाई है, इस फिल्म में उन्होंने पूरी तरह से एक जिम्मेदार, ईमानदार और जुझारू महिला पुलिस अफसर का किरदार निभाया है। उन्होंने एक दलित महिला अफसर के संघर्ष को बेहद प्राकृतिक और प्रभावशाली तरीके से दिखाया है। आलोचकों और दर्शकों दोनों ने उनकी परफॉर्मेंस की जमकर तारीफ की है।
उनका किरदार न सिर्फ सशक्त है, बल्कि वह सिस्टम से लड़ते हुए एक आम इंसान की संवेदनशीलता भी दिखाती हैं — वह भी एक ऐसे समाज में जहाँ उसकी जाति और जेंडर उसके रास्ते में दीवार बन जाते हैं।
निर्देशक यशोवर्धन मिश्रा की पहली ही फिल्म में छा जाने वाली प्रस्तुति
‘कटहल’ यशोवर्धन मिश्रा की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है, लेकिन उनकी निर्देशन शैली और कहानी कहने का तरीका किसी अनुभवी फिल्ममेकर से कम नहीं लगता। उन्होंने सामाजिक यथार्थ, हास्य और व्यंग्य का ऐसा संगम किया है, जो दर्शकों को हंसाता भी है और सोचने पर भी मजबूर करता है।
उनकी इस फिल्म ने यह भी साबित कर दिया है कि नई सोच वाले युवा डायरेक्टर्स भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दे रहे हैं — जहाँ मनोरंजन के साथ-साथ सोशल अवेयरनेस भी जुड़ी होती है।
समाज को दिखाया आईना
‘कटहल’ महज एक कॉमेडी फिल्म नहीं है। यह हमारे समाज को एक आईना दिखाती है — जहाँ एक तरफ किसी VIP के कटहल चोरी होने पर पुलिस व्यवस्था हिल जाती है, वहीं दूसरी ओर गायब लड़कियों, शोषण और मानव तस्करी जैसे मामलों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।
फिल्म यह सवाल भी उठाती है कि हमारी प्राथमिकताएँ क्या हैं? क्या एक विधायक के कटहल ज्यादा महत्वपूर्ण हैं या एक आम इंसान की सुरक्षा?
फिल्म के बाकी कलाकार और उनकी भूमिका
इस फिल्म में सान्या के अलावा कई और कलाकारों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है:
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अनंत जोशी ने महिमा के सहयोगी का किरदार निभाया है, जो फिल्म में कॉमिक टच लाता है और कहानी को बैलेंस करता है।
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विजय राज और नीलू कोहली जैसे सीनियर कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों में जान डाल दी है।
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सभी किरदार इतने प्राकृतिक और जमीन से जुड़े हैं कि दर्शक खुद को उस छोटे शहर का हिस्सा महसूस करने लगते हैं।
कहां देख सकते हैं यह फिल्म?
‘कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री’ को आप Netflix पर देख सकते हैं। यह फिल्म लगभग 2 घंटे की है और इसकी कहानी कहीं भी कृत्रिम या खींची हुई नहीं लगती। यही इसकी बड़ी खूबी है — एक क्रिस्प स्क्रिप्ट और तेज गति वाली कहानी, जो दर्शक को बाँध कर रखती है।
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में जीत के मायने
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सरकारी सम्मान है, जिसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा हर साल दिया जाता है। 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए 2023 की फिल्मों को नामांकित किया गया था। इस बार के पुरस्कारों की घोषणा केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की उपस्थिति में हुई, जिनके साथ राज्य मंत्री डॉ. एल मुरुगन और I&B सचिव संजय जाजू भी उपस्थित थे।
फिल्म ‘कटहल’ का यह सम्मान यह दर्शाता है कि अब भारतीय सिनेमा सिर्फ बड़े बजट और बड़े नामों तक सीमित नहीं है, बल्कि कंटेंट-ड्रिवन फिल्मों की भी सराहना हो रही है।
आम जनता की प्रतिक्रिया
जब यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर आई थी, तब इसे मुख्यधारा की मीडिया में ज्यादा प्रमोशन नहीं मिला, लेकिन वर्ड ऑफ माउथ और सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ होती रही। खासकर छोटे शहरों और गांवों के दर्शकों ने इस फिल्म को खूब सराहा, क्योंकि यह उनकी हकीकत और जमीनी सच्चाई को बखूबी दिखाती है।
एक नया ट्रेंड सेट करने वाली फिल्म
‘कटहल’ उन फिल्मों में से एक है जिसने यह साबित कर दिया है कि कॉमेडी और समाजिक संदेश एक साथ चल सकते हैं। यह फिल्म न सिर्फ एक मजेदार अनुभव देती है, बल्कि दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर भी करती है। यह आज के युवाओं के लिए एक उदाहरण है कि सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ जागरूकता फैलाने का भी माध्यम बन सकता है।
‘कटहल’ है कटिंग एज सिनेमा की मिसाल
फिल्म ‘कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री’ ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर यह साबित कर दिया है कि अगर कहानी में दम है, अभिनय प्रभावशाली है और प्रस्तुतिकरण साफ है, तो फिल्म सफल होती ही है। सान्या मल्होत्रा की यह फिल्म आने वाले समय में भी एक प्रेरणास्रोत और उदाहरण बनी रहेगी।
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