Justice Surya Kant: हरियाणा के एक साधारण गांव से भारत के 53वें चीफ जस्टिस तक का सफर

Justice Surya Kant: भारत की न्यायपालिका में एक नई मील का पत्थर तब गड़ा गया, जब जस्टिस सूर्य कांत को २४ नवंबर २०२५ से देश का ५३वां चीफ जस्टिस (CJI) नियुक्त किया गया। उनकी यह यात्रा सफलता, संघर्ष और सिद्धांतों की मिसाल है – एक छोटे हरियाणवी गांव से निकली कहानी जिसने सर्वोच्च न्यायपालिका तक का मुकाम पाया है।

शुरुआती जीवन और शिक्षा:

जस्टिस सूर्य कांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता मदन गोपाल शर्मा, संस्कृत शिक्षक थे। उनके बचपन की परिस्थितियाँ कठिन थीं। गांव में संसाधन सीमित थे – बिजली कम आती थी, और उन्होंने अपने रंग-बिरंगे सपनों के लिए बाल्यकाल में कई चुनौतियों का सामना किया।

पढ़ाई के लिए उन्होंने गुरुग्राम-रुहटकी नहीं, बल्कि हिसार के सरकारी पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज से स्नातक किया (१९८१), और उसके बाद महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक से कानून की डिग्री ली (१९८४)। जब उन्होंने अपनी विधि की पढ़ाई पूरी की, तो यह सुनने वालों के लिए प्रेरणा बन गई कि एक छोटे गांव का लड़का कोर्ट और कानून के गलियारों में बड़ा नाम बनेगा।

वकालत और प्रारंभिक करियर:

Justice Surya Kant

1984 में, सूर्य कांत ने हिसार जिला न्यायालय में वकालत की शुरुआत की। बाद में, 1985 में उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट, चंडीगढ़ में प्रैक्टिस करना शुरू किया। उनकी मेहनत और न्याय के प्रति ईमानदारी उन्हें वहां तक ले गई, जहाँ उन्होंने 2000 में हरियाणा का एडवोकेट जनरल बनने का गौरव हासिल किया, और वे उस समय सबसे कम उम्र के एडवोकेट जनरल बने।

उसके बाद मार्च 2001 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला, जो उनके कानूनी कौशल और प्रतिष्ठा का सबूत था।

जज की भूमिका और उच्च न्यायालय:

९ जनवरी २००४ को जस्टिस सूर्य कांत को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने कई सालों तक हाई कोर्ट में न्याय किया और अपने फैसलों में न्यायिक परिपक्वता और संवैधानिक समझ का परिचय दिया।

५ अक्टूबर २०१८ को, उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। उनकी नेतृत्व क्षमता और न्याय प्रशासन में उनकी दक्षता को वहां सराहा गया।

सुप्रीम कोर्ट और वृहद न्यायिक भूमिका:

२४ मई २०१९ को सूर्य कांत को भारतीय सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए, उन्होंने संवैधानिक मामलों, नागरिक अधिकारों, पर्यावरण, लैंगिक समानता और विविध सामाजिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

वे कई महत्वपूर्ण बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उदाहरण के लिए:

  • उन्होंने अनुच्छेद 370 (जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था) से जुड़े मामलों में फैसला सुनाया।

  • पेगासस जासूसी मामले की सुनवाई में उनकी भूमिका चर्चा में रही, जहाँ उन्होंने निगरानी, निजता और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार किया।

  • इसके अलावा, वे महिलाओं की समानता जैसे सवालों पर भी अपनी संवेदनशीलता दिखा चुके हैं, जैसे कि सेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई।

शिक्षा में निरंतरता और व्यक्तिगत विकास:

अपने जज बनने के बाद भी जस्टिस सूर्य कांत ने शिक्षा को महत्व दिया। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलएम (कानून में पोस्ट ग्रेजुएशन) किया और उसमें प्रथम श्रेणी (First Class First) हासिल की। यह दिखाता है कि उनकी सीखने की भूख और ज्ञान का विस्तार कभी नहीं रुका।

मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में अपॉइंटमेंट:

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने २७ अक्टूबर २०२५ को जस्टिस सूर्य कांत को भारत का अगला चीफ जस्टिस बनने की सिफारिश की। इस नियुक्ति को केंद्र सरकार और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दी, और २४ नवंबर २०२५ को वे ५३वें CJI के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे।

उनका CJI के रूप में कार्यकाल लगभग १५ महीने का होगा, और अनुमानित सेवानिवृत्ति तिथि ९ फरवरी २०२७ है, जब उनकी उम्र ६५ वर्ष पहुंच जाएगी।

न्यायशास्त्र और दर्शन:

जस्टिस सूर्य कांत सिर्फ एक न्यायाधीश नहीं, बल्कि न्याय के प्रति एक गहरा विश्वास रखने वाले विचारक हैं। उनका न्यायशास्त्र (judicial philosophy) निम्नलिखित बिंदुओं में झलकता है:

  1. संवैधानिक सुरक्षा: उन्होंने संवैधानु की महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले दिए हैं – जैसे निजता, अभिव्यक्ति, और संघीय संरचना के सवाल।

  2. समानता और न्याय: महिलाओं के अधिकार, सेना में समानता, और अन्य सामाजिक न्याय संबंधी आयाम उनकी न्यायप्रियता के केंद्र में हैं।

  3. योग्य नेतृत्व: हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता के साथ, उन्होंने न्यायिक प्रशासन और बेंच प्रबंधन में दक्षता दिखाई है।

  4. नैतिक और ईमानदार जीवन: उनके जीवन के शुरुआत के संघर्ष, कड़ी मेहनत और ईमानदारी यह दिखाते हैं कि वे सिद्धांतों पर टिके हैं। उनकी कहानी यह उदाहरण है कि कैसे जमीनी संघर्ष और नैतिक मूल्यों ने उन्हें शीर्ष न्यायिक पद तक पहुंचाया।

विरासत और प्रेरणा:

जस्टिस सूर्य कांत का जीवन और करियर कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। एक छोटे से गांव से आने वाला व्यक्ति अगर धैर्य, मेहनत और ईमानदारी से कार्य करे, तो वह देश के सबसे प्रतिष्ठित पद तक पहुंच सकता है। उनके न्यायिक फैसले देश में संवैधानिक मूल्यों, समानता और नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।

उनकी नियुक्ति न सिर्फ हरियाणा के लिए गर्व की बात है, बल्कि पूरे न्यायशास्त्र के लिए यह संकेत है कि न्यायपालिका में विशेषज्ञता, अनुभव और चरित्र की अहमियत है। एक ऐसे देश में जहाँ कानून का शासन और संवैधानु की रक्षा महत्वपूर्ण है, जस्टिस सूर्य कांत का पदभार संभालना न्याय और नेतृत्व में नई उम्मीद जगाता है।

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