Jivitputrika Vrat 2025: सनातन धर्म में हर व्रत और पर्व का अपना विशेष महत्व है। कुछ व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, तो कुछ सामाजिक और पारिवारिक जीवन में गहरा असर डालते हैं। इन्हीं व्रतों में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे कई जगहों पर जिउतिया भी कहा जाता है। यह व्रत खासतौर पर माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
हर साल जितिया व्रत के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और संतान की मंगलकामना के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। 2025 में यह व्रत कब होगा – 13 या 14 सितंबर – इसे लेकर लोगों में असमंजस है। आइए जानते हैं इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि, इसकी परंपरा और व्रत कथा।
जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि 2025 में | Jivitputrika Vrat 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत का आरंभ नहाय-खाय से होता है। इस साल 2025 में नहाय-खाय 13 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान-ध्यान कर सात्विक भोजन करती हैं और अगले दिन निर्जला उपवास की तैयारी करती हैं।
पंचांग के मुताबिक, सप्तमी तिथि 14 सितंबर 2025 को सुबह 08 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। इसके बाद अष्टमी तिथि शुरू होगी। इसी कारण जीवित्पुत्रिका व्रत का मुख्य दिन 14 सितंबर, रविवार को रखा गया है।
व्रत का पारण 15 सितंबर 2025, सोमवार को सुबह 6 बजकर 15 मिनट के बाद अष्टमी तिथि समाप्ति और नवमी तिथि के सूर्योदय के बाद किया जाएगा।
व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं के लिए बेहद खास माना जाता है। यह व्रत मातृत्व की शक्ति, त्याग और संतान के प्रति प्रेम का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं पूरी निष्ठा से व्रत रखती हैं और अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को पूरे नियम, संयम और श्रद्धा से करने पर संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और उसे दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
व्रत की परंपराएँ और विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत को बेहद कठोर व्रत माना जाता है। इस दिन माताएं निर्जला उपवास करती हैं, यानी न तो अन्न खाती हैं और न ही जल ग्रहण करती हैं।
व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। महिलाएं एक दिन पहले स्नान कर सात्विक भोजन करती हैं। व्रत के दिन वे श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और पूरे दिन व्रत रखकर पूजा करती हैं। संध्या के समय विशेष रूप से पूजा-अर्चना होती है और माता अपनी संतान की मंगलकामना करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
इस व्रत की कथा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसे सुनना अनिवार्य माना जाता है।
एक बार की बात है, चील (गरुड़ पक्षी) और सियारिन (लोमड़ी) दोनों ने जितिया व्रत रखने का संकल्प लिया। दोनों ने व्रत आरंभ किया लेकिन व्रत की कठिनाई को सियारिन सहन नहीं कर सकी। भूख से व्याकुल होकर उसने मांस खा लिया और अपना व्रत तोड़ दिया।
दूसरी ओर, चील ने पूरे नियम और संयम का पालन करते हुए बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत को पूर्ण किया। जब व्रत समाप्त हुआ तो धर्मराज प्रकट हुए और दोनों को उनके आचरण के आधार पर फल सुनाया।
धर्मराज ने कहा कि चील ने नियमपूर्वक व्रत पूरा किया है इसलिए उसकी संतान दीर्घायु और सुखी जीवन पाएगी। जबकि सियारिन ने व्रत तोड़ दिया, इसलिए उसकी संतान अल्पायु और कष्टमय जीवन जीएगी।
इस कथा से यही शिक्षा मिलती है कि व्रत केवल औपचारिकता नहीं बल्कि श्रद्धा और संयम का प्रतीक है। जो व्रत पूरी निष्ठा और नियम से करता है उसे अवश्य ही फल की प्राप्ति होती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का सांस्कृतिक महत्व
यह व्रत खासतौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। गाँव-गाँव की महिलाएं सामूहिक रूप से व्रत रखती हैं और एक साथ बैठकर व्रत कथा सुनती हैं।
इस दौरान घरों में धार्मिक वातावरण बना रहता है और महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं। ग्रामीण अंचलों में इस व्रत का विशेष उत्साह देखने को मिलता है और यह मातृ-शक्ति के उत्सव का प्रतीक बन जाता है।
2025 में क्यों है असमंजस?
इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि को लेकर भ्रम इसलिए है क्योंकि सप्तमी और अष्टमी तिथि के बीच संक्रमण का समय पड़ रहा है। कुछ पंचांग इसे 13 सितंबर को मानते हैं तो कुछ 14 सितंबर को।
हालाँकि विद्वानों की सहमति और प्रमुख पंचांगों के अनुसार, मुख्य व्रत 14 सितंबर 2025 को ही होगा। 13 तारीख को नहाय-खाय और 15 को पारण का समय रहेगा।
माताओं के लिए विशेष महत्व
कहा जाता है कि इस व्रत का पालन करने वाली माताओं की संतान कभी अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होती। जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, संतान का जीवन सुरक्षित और दीर्घायु होता है।
इस व्रत को रखने वाली महिलाएं अपनी संतान के लिए अपने सुख-सुविधाओं का त्याग करती हैं और यह त्याग ही इसे सबसे पवित्र व्रतों में से एक बनाता है।
Jivitputrika Vrat 2025 का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि भावनात्मक भी है। यह व्रत माँ और संतान के बीच अटूट रिश्ते का प्रतीक है। इस साल यह व्रत 13 सितंबर को नहाय-खाय से शुरू होकर 14 सितंबर को रखा जाएगा और 15 सितंबर को पारण होगा।
इस व्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि श्रद्धा और संयम से किया गया व्रत ही सच्चा फल देता है। माताओं के इस व्रत से संतान पर आने वाले संकट टलते हैं और उसे दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
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