जैन धर्म का संदेश: जैन धर्म एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जो सत्य, अहिंसा और आत्म-साक्षात्कार पर आधारित है। यह धर्म केवल पूजा-पाठ या मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि हर आम इंसान की दिनचर्या, सोच और व्यवहार में गहराई से उतारा जा सकता है। आज के अशांत, हिंसक और भौतिकता-प्रधान युग में जैन धर्म का संदेश सभी के लिए अत्यंत प्रासंगिक और उपयोगी है।

अहिंसा: जीवन का मूल मंत्र
जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है अहिंसा – अर्थात किसी भी जीव को किसी भी प्रकार से नुकसान न पहुँचाना। यह हिंसा सिर्फ शारीरिक रूप से मारने या चोट पहुँचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि विचारों, शब्दों और भावनाओं में भी हिंसा से बचने का आग्रह करता है।
आम जनजीवन में इसका प्रयोग कैसे करें?
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दूसरों के बारे में बुरा न सोचें, बुरा न कहें।
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जानवरों को मारने या पीड़ित करने वाले कार्यों में भाग न लें।
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शाकाहारी भोजन को अपनाकर हिंसा से दूर रहें।
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पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कार्यों से बचें।
सत्य: सच्चाई के पथ पर चलना
जैन धर्म में सत्य को आत्मा की स्वाभाविक विशेषता माना गया है। जीवन में सत्य बोलना, सत्य से जीना और अपनी अंतरात्मा के प्रति ईमानदार रहना जैन दर्शन का अभिन्न अंग है।
आम जन इसका पालन कैसे कर सकते हैं?
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झूठ बोलने से बचें, भले ही परिस्थिति कठिन हो।
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वादों और ज़िम्मेदारियों को निभाएं।
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अपने व्यवसाय और व्यवहार में ईमानदारी रखें।
अपरिग्रह: आवश्यकता के अनुसार जीवन
जैन धर्म में अपरिग्रह यानी ‘अत्यधिक संग्रह से बचना’ बहुत महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ है कि हम जितना ज़रूरत हो उतना ही लें, और लालच, संग्रह या भोग की भावना से दूर रहें।
आज के उपभोक्तावादी युग में यह संदेश और भी आवश्यक है।
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अनावश्यक वस्तुएँ न खरीदें।
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दूसरों की चीजों पर नज़र न रखें।
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जीवन को सादा और संतुलित बनाएँ।
क्षमा और करुणा: दिल से बड़ा बनें
क्षमावाणी और करुणा जैन धर्म की आत्मा हैं। हर साल जैन अनुयायी क्षमावाणी पर्व मनाते हैं और एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं। यह परंपरा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन की दिशा है।
हर इंसान से यह अपेक्षित है कि:
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दूसरों की गलतियों को माफ करें।
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किसी के व्यवहार से चोट पहुँचने पर द्वेष न पालें।
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ज़रूरतमंदों की मदद करें, चाहे वे इंसान हों या जानवर।
आत्मा की शुद्धि और स्व-अनुशासन:
जैन धर्म मानता है कि हर आत्मा में मुक्ति की क्षमता है। लेकिन इसके लिए आत्म-अनुशासन आवश्यक है। आम इंसान भी अगर थोड़े से नियम अपनाए, तो उसका जीवन शुद्ध, शांत और सफल बन सकता है।
उदाहरण के लिए:
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नियमित रूप से ध्यान करें।
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अपने गुस्से, लालच, मोह और अहंकार पर नियंत्रण रखें।
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कम बोलें, लेकिन सोच-समझकर बोलें।
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समय का मूल्य समझें और आलस्य से दूर रहें।
सभी प्राणियों के प्रति समभाव:
जैन धर्म मानता है कि हर जीव में आत्मा है, चाहे वह सूक्ष्म जीव हो या बड़ा। इसलिए किसी भी प्राणी के प्रति घृणा, भेदभाव या क्रूरता नहीं होनी चाहिए।
आज की दुनिया में यह विशेष आवश्यक है, जब जाति, धर्म, नस्ल और वर्ग के नाम पर इंसान-इंसान से लड़ रहा है।
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सभी से सम्मान से पेश आएँ।
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किसी के धर्म, भाषा या पहनावे पर टिप्पणी न करें।
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भिन्नता में एकता देखें।
शिक्षा और विचार की स्वतंत्रता:
जैन धर्म तर्क और विचार पर आधारित है। यह अंधविश्वास से दूर रहकर ज्ञान, विवेक और साधना पर ज़ोर देता है। यही कारण है कि जैन समाज में शिक्षा को अत्यंत महत्व दिया जाता है।
हर व्यक्ति को चाहिए कि:
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पढ़ाई और ज्ञान के प्रति समर्पित रहे।
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अंधविश्वासों और झूठे प्रचार से दूर रहे।
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हर बात पर विचार करें और फिर विश्वास करें।
जैन धर्म का संदेश किसी विशेष जाति, भाषा या वर्ग तक सीमित नहीं है। यह एक सार्वभौमिक दर्शन है, जो हर मानव को शांति, प्रेम, और सच्चाई से जीने की प्रेरणा देता है। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, क्षमा और आत्म-शुद्धि जैसे सिद्धांत आज के हर आम इंसान के लिए उतने ही उपयोगी हैं, जितने हजारों साल पहले थे।
यदि हम जैन धर्म की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें — चाहे हम जैन हों या न हों — तो समाज में हिंसा, द्वेष, लालच और छल का अंत हो सकता है। एक शांतिपूर्ण, सहिष्णु और समरसता से भरी दुनिया की ओर यह एक सशक्त कदम होगा।
“जियो और जीने दो” — यही है जैन धर्म का सार।
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