Gaza Hunger Crisis | ग़ाज़ा में रोटी के लिए कतार: सैटेलाइट तस्वीरों ने दुनिया को झकझोरा

Gaza Hunger Crisis: ग़ाज़ा की ज़मीन इस समय इतिहास की सबसे दर्दनाक मानवीय त्रासदियों में से एक का गवाह बन चुकी है। जहां कभी बच्चे खेला करते थे, वहां अब भूख से बिलबिलाते मासूमों की चीखें गूंज रही हैं। सैटेलाइट से ली गई एक ताजा तस्वीर ने दुनिया को वो दिखाया है जिसे अब तक सिर्फ आंकड़ों और खबरों में पढ़ा जाता था — भूख, बेबसी और मौत की कतार।

यह फोटो अमेरिकी जियोस्पेशल फर्म Planet Labs ने ली है, जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि ग़ाज़ा के मोराग कॉरिडोर के उत्तर में स्थित क्षेत्र में सैकड़ों लोग मदद पाने के लिए aid ट्रकों की ओर दौड़ते नजर आ रहे हैं। यह वही जगह है जो खान यूनुस और रफ़ा को अलग करती है।

जब भोजन के लिए भीड़ लगती है और मिलती है मौत

पिछले कुछ हफ्तों में ग़ाज़ा में खाने की तलाश में निकले लोगों पर गोलियां चली हैं, भीड़ में भगदड़ मची है, और सैकड़ों मासूमों की मौत हो चुकी है। इसमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े सभी शामिल हैं।

ग़ाज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 600 से ज़्यादा फिलिस्तीनियों की मौत केवल इस वजह से हो चुकी है कि वे सहायता पाने aid distribution साइट्स पर मौजूद थे।

इन साइट्स को Gaza Humanitarian Foundation (GHF) नामक संस्था द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिसे अमेरिका और इज़राइल का समर्थन प्राप्त है।

भूख को बनाया गया है हथियार: Doctors Without Borders की चेतावनी

Doctors Without Borders (Médecins Sans Frontières) नाम की मानवता से जुड़ी संस्था ने चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा में हालात अब मानवजनित अकाल (man-made famine) जैसे हो चुके हैं।

उनका कहना है कि इज़राइल भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। ग़ाज़ा में हर 4 में से 1 बच्चा और गर्भवती महिला कुपोषण से जूझ रही है।

एक UNICEF अधिकारी ने बताया कि बच्चे अब कचरे के ढेरों में खाना ढूंढते फिर रहे हैं।

“हड्डियों का ढांचा बन चुके हैं बच्चे”: ग़ाज़ा की माँ की करुण पुकार

ग़ाज़ा की एक मां, अमल अबू अस्सी, ने Reuters को बताया:

“बच्चे मर रहे हैं, पीले पड़ चुके हैं, हड्डियों का ढांचा बन चुके हैं। वो अंडे, मांस और फल भूल चुके हैं। पुरुषों के पास कोई काम नहीं है। खाना पकाने के लिए ईंधन तक नहीं है। जीवन जैसे खत्म हो गया हो।”

वो बताती हैं कि लोग aid पाने के लिए कई किलोमीटर तक दौड़ते हैं, और जब लौटते हैं तो जख्मी, अपमानित और थके हुए होते हैं

आसमान से गिरती राहत भी नहीं दे रही राहत

भूख से मरते लोगों तक राहत पहुंचाने के लिए कई देशों ने ग़ाज़ा में पैराशूट से राहत सामग्री गिराई है। लेकिन वहां के लोगों का कहना है कि यह तरीका बिलकुल असुरक्षित और अव्यवस्थित है।

एक निवासी मोहम्मद अबूल ऐनीद ने बताया कि एक बार एक राहत पैकेज एक घर की छत पर गिरा।

“लोग उस घर पर टूट पड़े। यह कोई तरीका नहीं है मदद पहुंचाने का। लोगों ने एक पैकेट के लिए हमला कर दिया। लोग भूखे हैं,” उन्होंने कहा।

एक टुकड़ा रोटी के लिए चलती हैं गोलियां

इसी महीने Sky News UK ने अपनी जांच में पाया कि GHF की ओर से मदद दी जाने वाले दिन ग़ाज़ा में मौतों की संख्या अचानक बढ़ जाती है

इसका कारण यह भी है कि GHF सिर्फ 30 मिनट पहले नोटिस देती है कि सहायता कहां बांटी जाएगी। इससे अचानक भीड़ उमड़ पड़ती है, जो फिर अव्यवस्था, भगदड़ और हिंसा में बदल जाती है।

ऐसे में लोगों को रोटी तो नहीं, गोलियां और अपमान मिल रहा है।

सैटेलाइट तस्वीरें: ग़ाज़ा के जख्मों की चुप गवाही

gaza hunger crisis

इन घटनाओं को देखकर या सुनकर जितना दुःख होता है, उससे कहीं ज़्यादा असर डालती हैं वो तस्वीरें जो आकाश से ली गई हैं

सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में aid ट्रकों के चारों ओर उमड़ी भीड़ किसी मानवीय त्रासदी से कम नहीं लगती। एक के पीछे एक लोगों की कतारें, जिनकी मंज़िल एक मुट्ठी आटा या एक थैला चावल होता है।

यह दृश्य हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है कि यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, इंसानों द्वारा पैदा की गई त्रासदी है।

इज़राइल की नीतियों पर दुनिया में बढ़ता आक्रोश

ग़ाज़ा में भूख, बेरोजगारी और बुनियादी ज़रूरतों की कमी के लिए इज़राइल की कड़ी आलोचना हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र, UNICEF और Doctors Without Borders जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं लगातार कह रही हैं कि ग़ाज़ा में खाद्य आपूर्ति को जानबूझ कर रोका जा रहा है, जिससे वहां के लोगों को दबाया और डराया जा सके।

यह मानवीय अधिकारों का घोर उल्लंघन है, और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत युद्ध अपराध भी माना जा सकता है।

इस मानवीय संकट पर दुनिया कितनी जागरूक है?

जहां एक तरफ सोशल मीडिया पर ग़ाज़ा की ये तस्वीरें वायरल हो रही हैं, वहीं दुनिया के कई हिस्सों में इस पर राजनीतिक चुप्पी भी देखी जा रही है।

भारत सहित कई देशों में इस मुद्दे पर जनता में संवेदना है, लेकिन सरकारें अपने राजनयिक रिश्तों और रणनीतिक हितों के कारण बयान देने से कतराती हैं।

अब समय आ गया है कि मानवीय मूल्यों को राजनीति से ऊपर रखा जाए।

यह समय है आंखें खोलने का

ग़ाज़ा की मौजूदा स्थिति सिर्फ एक भूखमरी नहीं है, यह इंसानियत की हार है।

  • जब बच्चे कचरे में खाना ढूंढते हैं
  • जब मां को बच्चों के लिए पानी उबालने का भी ईंधन नहीं मिलता
  • जब मदद लेने वाले aid साइट पर मारे जाते हैं

तो सवाल उठता है — क्या हम वाकई 21वीं सदी में जी रहे हैं?

ग़ाज़ा की यह भूखमरी एक चेतावनी है। अगर आज हमने आंखें मूंद लीं, तो कल यही त्रासदी कहीं और होगी।

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