उत्तराखंड की गढ़वाली रसोई अपने सरल लेकिन पोषणयुक्त व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है। इसी श्रृंखला में एक अनोखा और पारंपरिक व्यंजन है “बाड़ी” (Baadi), जो विशेष रूप से मंडुए के आटे (रागी) से तैयार किया जाता है। यह व्यंजन न सिर्फ पौष्टिकता से भरपूर है, बल्कि इसकी गिनती उत्तराखंड के सांस्कृतिक खजाने में भी की जाती है।

🌿 बाड़ी का इतिहास (History of Baadi):
बाड़ी का इतिहास उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की पुरानी परंपराओं से जुड़ा है। यह व्यंजन विशेष रूप से उन इलाकों में खाया जाता था जहां खेती योग्य ज़मीन कम थी और ठंड अधिक थी। ऐसे मौसम में शरीर को ऊर्जा और गर्मी देने के लिए रागी (मंडुआ) का प्रयोग बढ़ता था।
मंडुआ एक प्रकार का मोटा अनाज है, जो हिमालयी क्षेत्रों में आसानी से उगाया जाता है। यह आटा कैल्शियम, फाइबर, आयरन और प्रोटीन से भरपूर होता है, जिससे बाड़ी ना सिर्फ स्वादिष्ट बल्कि अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है।
यह व्यंजन पहाड़ी कृषकों और श्रमिकों के भोजन का अहम हिस्सा रहा है, क्योंकि यह कम समय में बन जाता है और दिनभर की मेहनत के लिए आवश्यक ऊर्जा देता है।
👑 क्या कोई राजा बाड़ी खाते थे?
गढ़वाल राज्य (आज का गढ़वाल मंडल), एक समय स्वतंत्र रियासत हुआ करती थी। गढ़वाल के शासक महाराज पृथ्वीपति शाह (17वीं शताब्दी) के बारे में दस्तावेज़ी प्रमाणों में उल्लेख है कि वे स्थानीय व्यंजनों और लोकजीवन के बेहद निकट थे। उनके शासन में जनसंवाद और स्थानीय परंपराओं को प्राथमिकता दी जाती थी।
ऐसे समय में जब देशी व्यंजन, खासकर पौष्टिक और स्थानीय अनाज से बने खाद्य, दैनिक जीवन का हिस्सा थे, बाड़ी को राजदरबार के भोजन में भी स्थान मिला। यह माना जाता है कि बाड़ी को खास अवसरों पर, देसी घी और भांग की चटनी के साथ शाही भोज में भी परोसा जाता था।
हालांकि यह आम जनता का व्यंजन था, लेकिन इसकी लोकप्रियता और स्वास्थ्य गुणों के कारण इसे राजाओं ने भी अपनाया।

🍽️ बाड़ी की पारंपरिक रेसिपी (Baadi Recipe):
📝 आवश्यक सामग्री:
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मंडुए का आटा (रागी फ्लोर) – 1 कप
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पानी – 2 कप
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नमक – स्वादानुसार
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घी – परोसने के लिए
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भांग की चटनी या घी में बनी हरी चटनी – साथ खाने के लिए
🔥 विधि (Step-by-step Baadi Recipe):
1. पानी गर्म करें
एक गहरे तले वाले बर्तन (पैन) में 2 कप पानी उबालने रखें।
2. मंडुए का आटा मिलाना
जैसे ही पानी में उबाल आ जाए, आंच धीमी करें। फिर उसमें थोड़ा-थोड़ा करके मंडुए का आटा डालें। एक हाथ से आटा डालें और दूसरे हाथ से लकड़ी के करछुल (या चम्मच) से लगातार चलाते रहें ताकि गांठ न बनें।
3. गाढ़ा होने तक पकाना
लगभग 5-7 मिनट तक इसे चलाते रहें। यह मिश्रण धीरे-धीरे गाढ़ा और चिकना हो जाएगा। इसमें कोई कच्ची गंध नहीं रहनी चाहिए।
4. आकार देना
अब मिश्रण को थोड़ा ठंडा करें और फिर गीले हाथों से इसकी लोई जैसी गोल-गोल टिक्कियाँ बना लें। इन्हें आप सीधे प्लेट में रख सकते हैं या गरम तवे पर थोड़ा सेंक भी सकते हैं।
5. घी और चटनी के साथ परोसना
बाड़ी को देसी घी डालकर और भांग की चटनी या टमाटर-मूली की हरी चटनी के साथ गरमा-गरम परोसें।
🧠 बाड़ी के स्वास्थ्य लाभ (Health Benefits of Baadi):
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कैल्शियम से भरपूर – हड्डियों के लिए उत्तम
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फाइबर रिच – पाचन तंत्र को सुधारता है
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लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स – डायबिटीज के रोगियों के लिए लाभकारी
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वजन घटाने में सहायक – पेट भरता है लेकिन फैट नहीं बढ़ाता
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एनर्जी बूस्टर – पहाड़ी इलाकों में कठिन परिश्रम के लिए आदर्श
📜 सांस्कृतिक महत्व:
बाड़ी सिर्फ एक व्यंजन नहीं है, यह गढ़वाली जीवनशैली का प्रतीक है। आज भी उत्तराखंड के त्यौहारों, खासकर “भिटौली”, “कुंमाऊंनी भोज” और “पहाड़ी शादी समारोहों” में इसे सम्मानपूर्वक परोसा जाता है।
यह व्यंजन दिखाता है कि कैसे एक साधारण अनाज से बना खाना भी स्वाद, स्वास्थ्य और परंपरा – तीनों को एक साथ संजो सकता है।
बाड़ी गढ़वाल की एक ऐसी थाली है, जो न सिर्फ शरीर को पोषण देती है, बल्कि आपको उस मिट्टी की सोंधी सुगंध भी महसूस कराती है, जहाँ यह जन्मी। मंडुए के आटे से बनी यह बाड़ी, स्वास्थ्य, संस्कृति और स्वाद का अद्भुत संगम है।
चाहे आप पहाड़ों के निवासी हों या शहरों में रहने वाले कोई शहरी युवा, यदि आप अपने खानपान में कुछ स्थानीय, पारंपरिक और हेल्दी जोड़ना चाहते हैं, तो बाड़ी जरूर ट्राय करें।
गढ़वाली बाड़ी – स्वाद भी, सेहत भी, संस्कृति भी।
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