धर्मस्थला मामला: धर्मस्थला (उत्तरी कन्नड़, कर्नाटक) में स्थित श्री मंजूनाथस्वामी मंदिर का नाम धार्मिक आस्था से जुड़ा है। परंतु जुलाई 2025 में एक सनसनीखेज खुलासे के बाद यह मंदिर एक भीषण आपराधिक मामला बनकर सामने आया है। एक पूर्व सफाई कर्मचारी — जो 1995 से 2014 तक मंदिर में कार्यरत था — ने आरोप लगाया कि उसे हज़ारों शव दफनाने या जला देने का निर्देश दिया गया था, जिनमें कई स्कूल‑वाली लड़कियाँ और महिलाओं के शव थे, जिन पर बलात्कार और गला घोंटकर हत्या के स्पष्ट संकेत थे।

उनकी शिकायत पुलिस को 3 जुलाई 2025 को दर्ज कराई गई थी। गवाही में उन्होंने बताया कि अचानक नदी के किनारे शव आने लगे — कुछ को आत्महत्या समझा, लेकिन जल्द ही स्पष्ट हुआ कि उन शवों पर बल, खून और यौन अपराध के निशान थे। एक स्कूल यूनीफॉर्म पहने लड़की की लाश, जिसमें गला घोंटने के निशान और उसकी स्कूली बैग सहित दफनाया गया था, अब भी उनकी याद में दहशत पैदा करती है।
आरोपों का विस्तार: क्या था?
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क्षितिज‑पार यौन अपराध और हत्या
कई शवों पर बलात्कार या गला घोंटने के निशान मिले। स्वच्छता कर्मचारी का दावा था कि अधिकांश पीड़ित महिलाएं और लड़कियां थीं, जिनमें कई नाबालिग थीं। -
शवों की सामूहिक दफ़न या जलाना
गवाह के अनुसार, उन्होंने मंदिर प्रशासन के आदेश पर नदी के किनारे या जंगलों में इन शवों को सावधानी से दफनाया या जला दिया। कथित तौर पर यह आदेश प्रतिदिन मिलता था। -
दबाव और धमकी
गवाह ने कहा कि अगर उन्होंने इन आदेशों से मना किया, तो “तुम भी इन्हीं की तरह दफनाए जाओगे, तुम्हारे परिवार को भी मार दिया जाएगा” जैसी धमकी दी जाती थी। -
अन्य संदिग्ध मौतें – सुजाता, सौजन्या, पद्मलता आदि
पिछले वर्षो में दर्ज कई गुमशुदा या अप्राकृतिक मौतों की घटनाएं हैं, जैसे 2012 में 17‑वर्षीय छात्रा सौजन्या की हत्या और 2003 में गायब हुई सुजाता। परिवारों और प्रतिबद्ध मानवाधिकार समूहों ने इन सभी मामलों की सीधे जांच की मांग की है।

सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया: SIT गठित, जांच प्रारंभ:
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FIR दर्ज और इस्तीफा
पुलिस ने 4 जुलाई 2025 को मामला दर्ज कर गवाह को पुलिस सुरक्षा प्रदान की। गवाह की पहचान अब गुप्त रखी गयी है और उसे अदालत में गवाह संरक्षण के अंतर्गत पेश किया गया। -
Special Investigation Team (SIT)
कर्नाटक सरकार ने 19 जुलाई को वरिष्ठ IPS अधिकारी प्रणव मोहंती की अगुवाई में SIT गठित की। इसमें लगभग 20 पुलिस अधिकारी शामिल हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से मुकदमे की स्वतंत्र जांच करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है। -
स्थल निरीक्षण और सबूत सुरक्षित
28 जुलाई 2025 को SIT ने गवाह द्वारा इंगित संभावित दफन क्षेत्रों का निरीक्षण किया। पुलिस, वन विभाग, भूमि अभिलेख अधिकारियों और Forensic Science Laboratory (FSL) की टीम ने स्थल देखने, सुरक्षा कवच लगाकर बाहर आने वाले किसी भी सबूत को संरक्षित करने की तैयारी की है।
मीडिया और प्रेस आज़ादी: अदालत के फ़ैसले:
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निचली अदालत का गग ऑर्डर (Gag Order)
शुक्रवार 18 जुलाई को बेंगलुरू सिटी सिविल कोर्ट ने मंदिर के प्रशासन से जुड़े परिवार के वकील द्वारा दायर मानहानि याचिका पर 390 मीडिया संस्थानों और लगभग 9,000 मीडिया रिपोर्ट्स को हटाने का आदेश दिया। यह मीडिया में आरोपों की रिपोर्टिंग पर तत्काल प्रभाव से रोक था। -
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार
शीर्ष न्यायालय ने इस गग ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई नहीं की और याचिकाकर्ताओं को पहले कर्नाटक हाईकोर्ट जाने की सलाह दी गई। -
मीडिया अधिकारों के लिए यूट्यूब चैनल का हाईकोर्ट में मुक़दमा
एक YouTube चैनल (Third Eye) ने इस गग ऑर्डर को प्रेस आज़ादी पर आघात बताया और कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी है कि यह सार्वजनिक हित को सत्य‑परख के अधीन प्रकाशन से रोकता है। -
समूहों की मांगे: SIT को पूर्ण स्वतन्त्रता मिले
महिलाओं के अधिकारों की संस्था AIDWA ने SIT जांच की पूर्ण स्वतन्त्रता, गवाह की सुरक्षा और अन्य पिछले अप्राकृतिक मौतों की भी जांच मांगने वाले प्रस्ताव पास किए हैं।
आगे की दिशा: संभावनाएं, चुनौतियां और अपेक्षाएं:
विषय | विवरण |
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SIT की प्रक्रियाएँ | स्थल निरीक्षण, exhumation (शव निष्कर्षण), FSL रिपोर्ट और पेंच गवाह की जांच। |
कानूनी चुनौतियां | गवाह संरक्षण, सबूतों की वैधता, मुकदमेबाज़ी और विलंब। |
राजनीतिक एवं सामाजिक दबाव | मंदिर की प्रतिष्ठा, जन–विश्वास और स्थानीय प्रभाव। |
मीडिया का रोल | विवेकपूर्ण रिपोर्टिंग बनाम मानहानि और न्यायिक अवमानना। |
न्याय की उम्मीदें | पीड़ित परिवारों को न्याय, पुराने मामलों में निष्पक्ष जांच की अपेक्षा। |
यह दुर्भाग्यपूर्ण मामला उस धार्मिक नगर में सामने आया जहाँ आस्था और सद्भावना का बोलबाला होता था। अब आरोप हैं कि मंदिर प्रशासन या उससे जुड़े लोग संभवतः इतने गम्भीर अपराधों को छिपाने में जुटे रहे — जिसमें हजारों शवों के साथ यौन हिंसा और हत्या की कथित घटनाएं शामिल थीं। एक गवाह की बहादुरी, जांच दल की कार्रवाई और मीडिया की सतर्कता ने इस केस को सार्वजनिक बना दिया है।
सात दिनों के भीतर SIT ने प्रारंभिक सत्यापन शुरू कर दिया है। अब सबका सवाल यह है— क्या धर्मस्थला की पवित्रता और उसकी प्रतिष्ठा न्याय व सत्य की कसौटी पर खरी उतर सकेगी? क्या पीड़ितों को न्याय मिलेगा, और मंदिर के प्रशासन से जुड़े प्रासंगिक आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी?
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