कॉकपिट में कैमरे क्यों नहीं होते: हाल ही में एयर इंडिया के एक बोइंग 787 विमान की दुर्घटना में “फ्यूल-स्विच” को लेकर सामने आई रिपोर्ट ने विमान दुर्घटना जांच की प्रक्रिया को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। खास तौर पर, यह मांग उठी है कि कॉकपिट में वीडियो रिकॉर्डर भी होने चाहिए, ताकि जांचकर्ताओं को पायलट की गतिविधियों और कॉकपिट के भीतर की परिस्थितियों की बेहतर समझ मिल सके।
जबकि कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) वर्षों से विमानों में मौजूद हैं, फिर भी अब तक कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर (CVR – कैमरा संस्करण) को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सवाल उठता है – कॉकपिट में कैमरे क्यों नहीं लगाए जाते?

कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और वीडियो रिकॉर्डर में अंतर:
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) पायलटों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) के बीच हुई बातचीत, अलार्म साउंड और कॉकपिट में किसी भी अन्य आवाज़ को रिकॉर्ड करता है। वहीं, कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर का उद्देश्य कॉकपिट के भीतर दृश्य जानकारी रिकॉर्ड करना है – जैसे पायलट के हावभाव, इंस्ट्रूमेंट पैनल की स्थिति, हाथों की गति, और दुर्घटना के वक्त कॉकपिट का वातावरण।
अमेरिका का NTSB क्यों कर रहा है वीडियो रिकॉर्डर की मांग?
अमेरिका का नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड (NTSB) लंबे समय से इस बात की वकालत कर रहा है कि कॉकपिट में कैमरे लगाए जाएं। उनका मानना है कि कई बार केवल ऑडियो रिकॉर्डिंग से यह पता नहीं चल पाता कि दुर्घटना के समय वास्तव में क्या हुआ। वीडियो फुटेज के जरिए जांचकर्ता पायलट की हरकतों, उपकरणों की स्थिति और तकनीकी खामियों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इससे न केवल जांच को गति मिलेगी, बल्कि भविष्य की दुर्घटनाओं को रोकने में भी मदद मिलेगी।
फिर कॉकपिट में कैमरे क्यों नहीं लगाए जाते?
1. प्राइवेसी की चिंता:
पायलट यूनियन और कई विमानन विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कॉकपिट में कैमरे लगाने से पायलटों की निजता का हनन होगा। उन्हें डर है कि वीडियो फुटेज का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।
2. मानव त्रुटियों पर अतिरिक्त दबाव:
अगर पायलट जानते हैं कि उनकी हर गतिविधि रिकॉर्ड की जा रही है, तो वे मानसिक रूप से अधिक दबाव में रह सकते हैं, जिससे प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
3. तकनीकी और लागत संबंधी चुनौतियाँ:
पुराने विमानों में कैमरे इंस्टॉल करना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इसमें अतिरिक्त लागत भी आती है। खासकर छोटे या क्षेत्रीय विमानों के लिए यह महंगा साबित हो सकता है।
4. डेटा की सुरक्षा और दुरुपयोग का खतरा:
अगर वीडियो डेटा लीक हो जाए, तो यह पायलटों और विमानन कंपनियों दोनों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है। इसलिए डेटा सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है।
एयर इंडिया हादसे ने क्यों बढ़ाई मांग?
हाल की एयर इंडिया दुर्घटना में जब यह सामने आया कि पायलट ने ईंधन टैंक को सही समय पर स्विच नहीं किया, तो कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाया कि अगर कॉकपिट में कैमरा होता, तो यह आसानी से पता चल सकता था कि पायलट ने गलती से क्या किया। NTSB ने भी इस घटना के बाद कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर की आवश्यकता को दोहराया।

क्या कहता है ICAO और DGCA?
अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO) ने सिफारिश की है कि नए विमानों में कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डिंग सिस्टम लगाया जाए, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं किया गया है। भारत का DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) भी इस मुद्दे पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश सामने नहीं आए हैं।
समाधान क्या हो सकता है?
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सख्त गोपनीयता नियम: डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाए जा सकते हैं कि वीडियो केवल दुर्घटना जांच के लिए ही उपयोग में लाया जाए।
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एन्क्रिप्शन तकनीक का इस्तेमाल: वीडियो को एन्क्रिप्टेड फॉर्मेट में संग्रहित किया जाए, ताकि कोई भी अनधिकृत व्यक्ति उसे देख न सके।
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ट्रायल के तौर पर शुरुआत: नए विमानों में पहले चरण में कैमरे लगाए जा सकते हैं और उसके प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है।
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पायलट यूनियनों से संवाद: पायलटों की चिंताओं को समझते हुए उनके साथ संवाद स्थापित कर समाधान निकाला जा सकता है।
एयर इंडिया की हालिया दुर्घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या केवल वॉयस रिकॉर्डिंग पर्याप्त है? आधुनिक तकनीक के इस युग में, जब हर मोबाइल कैमरे से लैस है, तो कॉकपिट जैसी संवेदनशील जगह पर कैमरे क्यों नहीं? हालांकि निजता और तकनीकी चुनौतियाँ एक बड़ा मुद्दा हैं, लेकिन सुरक्षा के लिहाज़ से कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।
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