भारत के नए उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन की जीत और राजनीतिक महत्व

भारत के नए उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन : भारत का उपराष्ट्रपति पद संवैधानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह न केवल देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में भी उपराष्ट्रपति की भूमिका अहम होती है। हाल ही में हुए चुनाव में एनडीए उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन ने जीत हासिल की और वे भारत के 15वें उपराष्ट्रपति बने। यह चुनाव राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इससे न केवल सत्ता पक्ष की मजबूती झलकी, बल्कि विपक्ष की एकता पर भी सवाल उठे।

भारत के नए उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन
   भारत के नए उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन

चुनाव की पृष्ठभूमि:

जुलाई 2025 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद यह पद रिक्त हो गया और नया चुनाव आवश्यक हो गया। 9 सितम्बर 2025 को हुए इस चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए ने सी. पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया, जबकि विपक्ष ने बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा। चुनाव में कुल 781 सांसदों को मतदान का अधिकार था, जिनमें से 767 सांसदों ने वोट डाला।

परिणामों में राधाकृष्णन को 452 मत मिले, जबकि विपक्षी उम्मीदवार को केवल 300 मत प्राप्त हुए। इस प्रकार 152 मतों के अंतर से राधाकृष्णन विजयी रहे। उनकी यह जीत न केवल स्पष्ट बहुमत का संकेत देती है बल्कि विपक्षी खेमे में क्रॉस-वोटिंग की आशंका को भी उजागर करती है।

सी. पी. राधाकृष्णन का जीवन परिचय:

सी. पी. राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले में हुआ। वे लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे और संगठनात्मक स्तर पर उनकी छवि एक गंभीर, अनुशासित और समर्पित नेता की रही है।

उनका राजनीतिक सफर 1998 से शुरू होता है जब वे कोयम्बटूर से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1999 में भी उन्होंने जीत हासिल की। संसद में उनकी सक्रियता और नीतिगत स्पष्टता की सराहना की गई। वे तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे।

सांसदीय राजनीति के अलावा राधाकृष्णन ने संवैधानिक पदों पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया। वे झारखंड, तेलंगाना और महाराष्ट्र के राज्यपाल रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने पुडुचेरी के उपराज्यपाल के रूप में भी जिम्मेदारी निभाई।

राजनीतिक छवि और विचारधारा:

राधाकृष्णन की पहचान एक सौम्य, सुलझे हुए और संवादप्रिय नेता के रूप में है। वे भारतीय जनसंघ और आरएसएस की विचारधारा से गहराई से जुड़े हुए हैं। लेकिन उनकी कार्यशैली टकराव से अधिक संवाद और सहमति बनाने पर आधारित रही है। यही कारण है कि उपराष्ट्रपति जैसे पद पर उनकी नियुक्ति को सकारात्मक माना जा रहा है।

उन्होंने अपनी जीत को “राष्ट्रवादी विचारधारा की विजय” बताया और संकल्प लिया कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए वे अपनी भूमिका निभाएंगे।

उपराष्ट्रपति पद की संवैधानिक भूमिका:

भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। वे राज्यसभा के सभापति होते हैं और सदन के सुचारु संचालन की जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती है। इसके अतिरिक्त, यदि राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व भी निभाते हैं।

इसके अलावा, उपराष्ट्रपति कई विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) के अध्यक्ष भी होते हैं। इसलिए उनका दायित्व केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि शैक्षिक और प्रशासनिक स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण है।

चुनाव का राजनीतिक महत्व:

यह चुनाव कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा।

  1. सत्ता पक्ष की मजबूती – राधाकृष्णन की बड़ी जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि एनडीए के पास संसद में स्थिर बहुमत है।

  2. विपक्ष की कमजोरी – चुनाव में हुई क्रॉस-वोटिंग ने विपक्षी एकता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।

  3. दक्षिण भारत से नेतृत्व – राधाकृष्णन की पृष्ठभूमि दक्षिण भारत से है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा अब दक्षिण भारत में भी अपने प्रभाव को बढ़ाने की रणनीति अपना रही है।

आने वाली चुनौतियाँ:

सी. पी. राधाकृष्णन के सामने कई चुनौतियाँ होंगी:

  • राज्यसभा में विभिन्न दलों के बीच सामंजस्य बनाए रखना।

  • विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच संवाद और संतुलन कायम करना।

  • संसद की गरिमा को बनाए रखना और बहसों को रचनात्मक दिशा देना।

  • युवाओं और शिक्षा जगत से जुड़े मुद्दों पर सकारात्मक पहल करना।

भारत के नए उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन का चुनाव केवल संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में नए युग की शुरुआत है। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव, सौम्य व्यक्तित्व और संगठनात्मक पृष्ठभूमि उन्हें इस पद के लिए योग्य बनाते हैं। आने वाले वर्षों में उनकी भूमिका संसद की कार्यवाही को संतुलित, सार्थक और गरिमामय बनाए रखने में अहम साबित होगी।

भारत के लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति का चुनाव जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, लेकिन उसका संदेश पूरे देश तक पहुँचता है। राधाकृष्णन की जीत एक ओर जहाँ सत्ता पक्ष की ताकत को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर यह संकेत भी देती है कि भारतीय राजनीति अब और अधिक दक्षिण भारत के नेताओं को राष्ट्रीय पटल पर स्थान दे रही है।

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