अशूरा 2025: इमाम हुसैन की शहादत का दिन और यह इस साल क्यों है चर्चा में?

अशूरा 2025: हर साल इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने ‘मुहर्रम’ की 10वीं तारीख को ‘अशूरा’ (Ashura) मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से शिया और सुन्नी मुसलमानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अशूरा का दिन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि इतिहास, बलिदान और आस्था का प्रतीक है। यह दिन इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों के कर्बला में दिए गए बलिदान को याद करने का दिन होता है।

अशूरा 2025
              अशूरा 2025

वर्ष 2025 में अशूरा एक बार फिर खबरों में है क्योंकि इस दिन को लेकर दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय द्वारा विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। साथ ही, अशूरा के दौरान भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक और अन्य देशों में सुरक्षा और जुलूसों को लेकर प्रशासन विशेष सतर्कता बरत रहा है।

अशूरा क्या है?

‘अशूरा’ शब्द अरबी भाषा के ‘आशरा’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘दस’। यह इस्लामी वर्ष के पहले महीने ‘मुहर्रम’ की 10वीं तारीख को मनाया जाता है। यह दिन इस्लाम के इतिहास में दो मुख्य घटनाओं के लिए महत्वपूर्ण है:

  1. हजरत इमाम हुसैन का बलिदान (शिया मान्यता):
    680 ईस्वी में कर्बला (वर्तमान इराक) में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को यजीद की सेना ने शहीद कर दिया था। इमाम हुसैन ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खड़े होने का संदेश दिया और इस्लाम को भ्रष्ट ताकतों से बचाने के लिए अपने पूरे परिवार और अनुयायियों के साथ बलिदान दिया।

  2. हजरत मूसा का समुद्र पार करना (सुन्नी मान्यता):
    सुन्नी मुस्लिमों के अनुसार यह वही दिन है जब अल्लाह ने हज़रत मूसा और उनके अनुयायियों को फिरऔन से बचाने के लिए समुद्र को चीरकर रास्ता दिया था। इसलिए सुन्नी समुदाय इस दिन रोजा रखते हैं और इबादत करते हैं।

अशूरा 2025

अशूरा कैसे मनाया जाता है?

अशूरा के दिन मुस्लिम समुदाय विशेष रूप से शोक सभा, मातम और मजलिस का आयोजन करते हैं। शिया समुदाय इस दिन इमाम हुसैन की शहादत का स्मरण करते हुए खुद को कष्ट देकर मातम करता है और “या हुसैन” के नारे लगाते हैं।

अशूरा 2025

  • ताज़िये और जुलूस: भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक आदि देशों में ताजिए (इमाम हुसैन की याद में बनाए गए प्रतीकात्मक मकबरे) निकाले जाते हैं और भारी संख्या में लोग जुलूस में भाग लेते हैं।

  • मजलिस और कर्बला की कथा: शिया समुदाय मजलिस का आयोजन करता है जिसमें इमाम हुसैन और उनके परिवार की कर्बला में दी गई कुर्बानी की कहानी सुनाई जाती है।

  • रोजा और दुआ: सुन्नी मुसलमान इस दिन रोजा रखते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं।

अशूरा 2025 में क्यों है खबरों में?

  1. मुहर्रम 2025 की तारीखें घोषित:
    इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है और हर साल इसकी तारीखें बदलती रहती हैं। 2025 में अशूरा की तारीख जुलाई के मध्य में आ रही है, और इसे लेकर विभिन्न देशों में सार्वजनिक छुट्टियों की घोषणा हुई है।

  2. सुरक्षा व्यवस्था कड़ी:
    भारत के कई शहरों में प्रशासन ने अशूरा के जुलूसों के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की है। संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस बल तैनात किया गया है ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोका जा सके।

  3. अंतरराष्ट्रीय घटनाएं:
    इराक के कर्बला में हर साल लाखों श्रद्धालु जमा होते हैं। 2025 में उम्मीद है कि कोविड महामारी के बाद यह सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा होगा, जिससे यह दिन फिर से वैश्विक मीडिया की नजरों में है।

  4. सोशल मीडिया पर जागरूकता:
    इस वर्ष सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अशूरा से जुड़ी कहानियाँ, वीडियोज़, लाइव मजलिस और कर्बला की घटनाओं का प्रसारण व्यापक रूप से हो रहा है। युवाओं में इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक समझ बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं।

भारत में अशूरा का महत्व:

भारत में शिया मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है, खासकर लखनऊ, हैदराबाद, कश्मीर और मुंब्रा जैसे शहरों में। यहाँ अशूरा बहुत धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। लखनऊ की ‘बड़ा इमामबाड़ा’ और ‘हुसैनाबाद’ के आयोजन विशेष प्रसिद्ध हैं।

अशूरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ लड़ने, सच्चाई और ईमानदारी के लिए बलिदान देने की प्रेरणा देने वाला दिन है। इमाम हुसैन की शहादत आज भी दुनिया को यह संदेश देती है कि अत्याचार और जुल्म के सामने झुकना नहीं चाहिए।

वर्ष 2025 में अशूरा इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि यह दिन फिर से दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय की एकता, श्रद्धा और इतिहास को सामने ला रहा है। सुरक्षा, आयोजन और ऐतिहासिक महत्त्व के चलते यह दिन धार्मिक से अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व भी ले चुका है।

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