आषाढ़ी एकादशी 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है, और उनमें भी आषाढ़ी एकादशी को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत के लिए समर्पित होता है। वर्ष 2025 में आषाढ़ी एकादशी 7 जुलाई 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। इसे देवशयनी एकादशी, हरि शयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है।

यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी छिपा हुआ है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे आषाढ़ी एकादशी 2025 का महत्व, व्रत विधि, पौराणिक कथा, और इसका सामाजिक पक्ष।
आषाढ़ी एकादशी 2025 की तिथि और मुहूर्त:
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तिथि: 7 जुलाई 2025, सोमवार
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एकादशी तिथि आरंभ: 6 जुलाई 2025 को रात 09:35 बजे
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एकादशी तिथि समाप्त: 7 जुलाई 2025 को रात 10:55 बजे
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पारण का समय: 8 जुलाई को प्रातः 06:00 बजे से पूर्वाह्न 08:30 बजे तक
आषाढ़ी एकादशी का धार्मिक महत्व:
आषाढ़ी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह चार महीने की चातुर्मास अवधि की शुरुआत मानी जाती है, जिसमें भगवान विश्राम करते हैं और इस दौरान विवाह, शुभ कार्य आदि वर्जित माने जाते हैं।
इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु का पूजन करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्त इस दिन विशेष रूप से ‘ओम् नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हैं।
आषाढ़ी एकादशी 2025 की व्रत विधि:
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पूर्व रात्रि से उपवास शुरू करें या फलाहार पर रहें।
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प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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घर में या मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराकर पीले वस्त्र पहनाएँ।
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तुलसी पत्र अर्पित करें। भगवान विष्णु को विशेषतः पीले पुष्प, पंचामृत और भोग लगाएं।
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व्रत कथा पढ़ें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
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दिनभर व्रत रखें और रात्रि में जागरण कर कीर्तन करें।
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द्वादशी के दिन पारण (व्रत खोलना) उचित मुहूर्त में फलाहार से करें।
आषाढ़ी एकादशी की पौराणिक कथा:
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार राजा मंधाता को अपने राज्य में भारी अकाल का सामना करना पड़ा। उन्होंने अनेक उपाय किए, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। अंततः वे महर्षि अंगिरा के पास गए। ऋषि ने उन्हें आषाढ़ी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।
राजा ने पूरे श्रद्धा भाव से व्रत किया और राज्य में वर्षा हुई, जिससे सभी को राहत मिली। तभी से इस व्रत को संकट निवारण और पुण्य प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

महाराष्ट्र में आषाढ़ी एकादशी की विशेषता:
आषाढ़ी एकादशी को महाराष्ट्र में पंढरपुर वारी यात्रा के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लाखों की संख्या में भक्त संत तुकाराम, नामदेव और अन्य संतों की पालकी लेकर पंढरपुर (विठोबा मंदिर) पहुँचते हैं। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं।
इस दिन विठोबा (भगवान विष्णु के स्वरूप) की विशेष पूजा होती है, और पूरे राज्य में भक्ति की एक अलौकिक लहर दौड़ती है।
आषाढ़ी एकादशी का वैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष:
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यह व्रत मानसिक और शारीरिक शुद्धि का माध्यम है।
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वर्षा ऋतु में उपवास और हल्का आहार पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है।
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जागरण और भजन-कीर्तन मानसिक एकाग्रता को बढ़ाता है।
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सामाजिक रूप से यह दिन एकता, सहयोग और सेवा का प्रतीक बन चुका है।
आषाढ़ी एकादशी 2025 केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह भक्ति, सेवा, अनुशासन और आत्म-शुद्धि का पर्व है। जो व्यक्ति सच्चे मन से व्रत करता है, उसे न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन भी आता है।
भगवान विष्णु की कृपा से यह दिन आपके लिए सुख, समृद्धि और शांति लेकर आए।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।”
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