आलू मूली का ठेचुआ: उत्तराखंड की रसोई केवल स्वाद तक सीमित नहीं है, बल्कि वह एक सांस्कृतिक विरासत भी है। यहां के हर पकवान में पहाड़ी जीवनशैली, मौसम, संसाधनों और परंपरा की छाप देखने को मिलती है। ऐसा ही एक पारंपरिक और लाजवाब व्यंजन है – “आलू मूली का ठेचुआ”। इसे आमतौर पर सर्दियों में खाया जाता है और इसकी खासियत है इसमें डाले जाने वाले भांग के बीज का पानी, जो स्वाद को एक अलग ही गहराई देता है। आइए जानते हैं इस पकवान के बारे में विस्तार से – इसका इतिहास, परंपरा, और इसकी विधि।

🏞️ इतिहास और परंपरा:
उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्र, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। यहां के लोग सदियों से मौसमी सब्ज़ियों और जड़ी-बूटियों का उपयोग अपनी रसोई में करते आए हैं। ठेचुआ शब्द “ठेचना” यानी मसलना या कूटना से आया है। यह एक पारंपरिक तरीका है जिसमें उबली या पकी हुई चीज़ों को सिलबट्टे या पत्थर पर कूटकर चटनीनुमा बनावट दी जाती है।
“आलू मूली का ठेचुआ” मूल रूप से एक देसी सलाद या चटनी की तरह होता है, जिसे ताजे उबले आलू, कच्ची मूली और स्थानीय मसालों से बनाया जाता है।
भांग के बीज का उपयोग भी उत्तराखंड की अनोखी पाक विरासत का हिस्सा है। भांग के बीजों को भूनकर पीसा जाता है और फिर उसका पानी, जिसे भांग का रसा या झोल कहते हैं, ठेचुए में डाला जाता है। इससे ना सिर्फ स्वाद बढ़ता है, बल्कि यह पाचन में भी मदद करता है।
🌿 भांग के बीज: औषधीय महत्व
भांग के बीज (hemp seeds) में ओमेगा-3 फैटी एसिड, प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा में होता है। पहाड़ी इलाकों में यह बीज बहुतायत में पाया जाता है और इसका इस्तेमाल केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य लाभ के लिए भी होता है।
उत्तराखंड में इसे “भंगजीरा” या “भांग का नमक” कहकर भी बुलाया जाता है। गर्मियों में इसे छाछ या रायते में डाला जाता है, जबकि सर्दियों में यह ठेचुए जैसे व्यंजन में उपयोग होता है।
🍽️ आलू मूली का ठेचुआ बनाने की विधि:
📝 सामग्री:
सामग्री | मात्रा |
---|---|
उबले आलू | 2 मध्यम आकार के |
मूली (कद्दूकस की हुई) | 1 मध्यम आकार की |
हरी मिर्च | 2 (स्वाद अनुसार) |
लहसुन की कलियाँ | 3-4 |
भांग के बीज | 2 चम्मच |
नमक | स्वाद अनुसार |
नींबू का रस | 1 चम्मच |
सरसों का तेल | 1 चम्मच (वैकल्पिक) |
धनिया पत्ती | थोड़ा सा बारीक कटा हुआ |
🔥 विधि:
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भांग के बीज तैयार करें
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सबसे पहले भांग के बीज को धीमी आंच पर 2-3 मिनट तक भूनें जब तक हल्की खुशबू आने लगे।
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फिर इन्हें सिलबट्टे या मिक्सी में दरदरा पीस लें।
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पीसे हुए बीज में थोड़ा पानी मिलाकर रसा तैयार कर लें। यह भांग का झोल कहलाता है।
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आलू और मूली तैयार करें
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उबले हुए आलू को छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें।
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मूली को कद्दूकस कर लें और थोड़ा सा निचोड़ लें ताकि उसका पानी निकल जाए।
- या सिलबट्टे में आलू मूली ठेचें अगर आप आलू को उबालना नहीं चाहते तो कड़ाही में आलू मूली को 15 मिनट पकाकर भी बना सकते हैं।
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मसाला कूटना
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सिलबट्टे पर हरी मिर्च, लहसुन, थोड़ा नमक डालकर पीस लें।
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अब इसमें आलू और मूली मिलाकर हल्के हाथ से ठेचें यानी मसलें।
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मिश्रण को एक बड़े बर्तन में निकालें।
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भांग का पानी डालना
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अब तैयार किया हुआ भांग का झोल इस मिश्रण में डालें और अच्छे से मिलाएं।
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अंत में नींबू का रस और थोड़ा सरसों का तेल मिलाएं।
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ऊपर से हरा धनिया डालें।
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🍴 परोसने का तरीका:
यह ठेचुआ उत्तराखंड में बाजरे या मंडुए की रोटी के साथ खाया जाता है। इसे गरम दाल-चावल या कढ़ी-चावल के साथ भी परोसा जा सकता है। यह स्वाद में तीखा, खट्टा और भांग के झोल की वजह से बेहद खास होता है।
🌟 पोषण और स्वास्थ्य लाभ
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पाचन में सहायक: मूली और भांग के बीज पाचन क्रिया को बेहतर करते हैं।
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शरीर को गर्माहट: सर्दियों में यह व्यंजन शरीर को अंदर से गर्म रखता है।
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डिटॉक्सिंग गुण: भांग का झोल लिवर और किडनी के लिए अच्छा माना जाता है।
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ऊर्जा से भरपूर: आलू और मूली की वजह से यह काफी पौष्टिक होता है और लंबे समय तक भूख नहीं लगती।
🏔️ कुमाऊं और गढ़वाल में इसका महत्व:
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में जब भी घर पर कोई पर्व होता है, या खेतों से आलू और मूली की ताज़ी फसल आती है, तो ठेचुआ बनाना लगभग तय होता है। यह व्यंजन ना केवल स्वाद का हिस्सा है, बल्कि सामाजिक मेल-जोल और परिवारिक परंपरा का भी प्रतीक है।
“आलू मूली का ठेचुआ” उत्तराखंड के स्थानीय भोजन की आत्मा है। इसमें पहाड़ की खुशबू, भांग के बीजों की शक्ति, और पारंपरिक पाक-कला का अनोखा मेल देखने को मिलता है। यह न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि शरीर और आत्मा दोनों को संतोष देने वाला व्यंजन है।
अगर आप उत्तराखंडी व्यंजनों से प्रेम करते हैं, तो एक बार “आलू मूली का ठेचुआ” ज़रूर बनाएं और पहाड़ी स्वाद का अनुभव करें।
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