आंखों की गुस्ताखियां: बॉलीवुड में एक नया चेहरा – शनाया कपूर – फिल्म “आंखों की गुस्ताखियां” के साथ दर्शकों के सामने आई हैं। यह फिल्म एक रोमांटिक ड्रामा है, जो भावनाओं, खामोश नज़रों और अधूरे इश्क की कहानी कहती है। निर्देशक ने एक शांत, सौम्य और पुराने ज़माने की याद दिलाने वाली लव स्टोरी को आज के दौर में प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
हालांकि फिल्म को लेकर दर्शकों में उत्सुकता थी, लेकिन इसका पहले दिन का बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन निराशाजनक रहा। आइए जानें कि फिल्म की कहानी, अभिनय, निर्देशन और संगीत कितने असरदार हैं।

कहानी का सार:
फिल्म की कहानी सायरा (शनाया कपूर) और विवान (विक्रांत मैसी) की है। सायरा एक छोटे शहर की पढ़ी-लिखी, परंपराओं में यकीन रखने वाली लड़की है, जो कला में रुचि रखती है। वहीं विवान एक फोटोग्राफर है, जो हर चीज़ को अपने कैमरे की नज़र से देखता है और जज़्बातों को पकड़ने की कोशिश करता है।
दोनों की मुलाकात एक आर्ट एग्ज़ीबिशन में होती है और पहली ही नज़र में एक जुड़ाव महसूस होता है। पर उनकी बातचीत ज्यादा नहीं होती, बस आंखों से इशारे, मुस्कानें और खामोश जज़्बात। दोनों एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं लेकिन बोल नहीं पाते। फिल्म का टाइटल “आंखों की गुस्ताखियां” इसी खामोश मोहब्बत का प्रतीक है।
कहानी में कुछ मोड़ आते हैं – सायरा की शादी तय हो जाती है, विवान शहर छोड़ देता है, और दोनों की किस्मत अलग-अलग रास्ते लेती है। पर क्या ये मोहब्बत मुकम्मल होगी? यही फिल्म की आत्मा है।
अभिनय (Performance):
👉 शनाया कपूर (सायरा के रोल में):
शनाया का यह डेब्यू है और उन्होंने अपने किरदार को काफी सौम्यता से निभाया है। हालांकि कहीं-कहीं उनकी एक्टिंग थोड़ी नाटकीय लगती है और इमोशनल सीन में अनुभव की कमी दिखती है, लेकिन कैमरे के सामने उनकी उपस्थिति आकर्षक है। विशेष रूप से उनकी आंखें भावों को बखूबी दर्शाती हैं, जो फिल्म की थीम से मेल खाती हैं।
👉 विक्रांत मैसी (विवान):
विक्रांत हमेशा की तरह सधा हुआ, सहज और सजीव अभिनय करते हैं। उनकी आंखों में गहराई है और साइलेंस को भी अर्थ देने की कला उन्हें आती है। उनके साथ हर सीन में ईमानदारी दिखती है।
👉 सहायक कलाकार:
सायरा के माता-पिता के रोल में शेफाली शाह और कुनाल खेमू ने अपनी भूमिकाएं अच्छे से निभाई हैं। विवान के दोस्त के रूप में अपरशक्ति खुराना हल्का-फुल्का हास्य लेकर आते हैं।
निर्देशन और पटकथा (Direction & Screenplay):
फिल्म का निर्देशन किया है सुदीप घोष ने। उन्होंने एक धीमी और क्लासिक रोमांटिक टोन को बनाए रखने की पूरी कोशिश की है, लेकिन कहानी कई जगहों पर खिंचती हुई लगती है। खासकर सेकंड हाफ में फिल्म की रफ्तार कम हो जाती है और दर्शक थोड़ा ऊब सकते हैं।
पटकथा में कुछ नयापन नहीं है, यह एक पुरानी टाइप की प्रेमकथा है जिसमें एक-दूसरे से बिछड़ने, मिलने और फिर अधूरे प्यार के दर्द को दिखाया गया है। हालांकि भावनाओं की प्रस्तुति अच्छी है।
संगीत और तकनीकी पक्ष:
फिल्म का म्यूजिक इसकी जान है। “आंखों की गुस्ताखियां माफ हों…” टाइटल ट्रैक बेहद खूबसूरत बना है और इसे अरिजीत सिंह की आवाज़ ने और दिल में उतरने लायक बना दिया है।
बाकी गाने भी मेलोडी और इमोशंस से भरे हुए हैं – खासकर “तेरा इंतजार” और “ख्वाबों की बुनाई”। बैकग्राउंड स्कोर हल्का और कहानी के साथ मेल खाता है।
छायांकन (Cinematography) शानदार है। छोटे शहर की गलियां, बारिश की बूंदें, और कैमरे की क्लोज़-अप शॉट्स बहुत खूबसूरत हैं। खासकर जब सिर्फ आंखें संवाद करती हैं, वो सीन ध्यान खींचते हैं।

कमज़ोर पक्ष:
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कहानी में नयापन नहीं है।
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फिल्म की गति बहुत धीमी है, जिससे युवा दर्शक जुड़ नहीं पाते।
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डायलॉग्स कुछ जगहों पर कमजोर और पुराने लगते हैं।
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शनाया की एक्टिंग में अभी भी सुधार की गुंजाइश है, खासकर गहरे इमोशनल सीन्स में।
Aankhon Ki Gustaakhiyan का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन दिन 1 पर:
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शुरुआती ट्रेड रिपोर्ट्स के अनुसार, फिल्म ने ₹35 लाख नेट कमाए।
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कुछ मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स में कलेक्शन ₹50 लाख तक बताया गया, हालांकि यह आंकड़ा अधिकतर ट्रेड विश्लेषकों द्वारा नहीं माना गया ।
इस बीच ₹35 लाख का आंकड़ा ज़्यादातर स्रोतों द्वारा पुष्ट किए गए तथ्य के रूप में सामने आया। उदाहरण के लिए, Free Press Journal ने भी यही शुरुआती कलेक्शन रिपोर्ट की है ।
बॉक्स ऑफिस तुलना – प्रतियोगी फिल्मों के साथ:
फिल्म | Day 1 कलेक्शन |
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Aankhon Ki Gustaakhiyan | ₹0.35 करोड़ |
Maalik (Rajkummar Rao की फिल्म) | ₹3.35 करोड़ |
Superman (David Corenswet) | ~₹7 करोड़ |
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि Aankhon Ki Gustaakhiyan की शुरुआत अपेक्षाकृत कमजोर रही, खासकर उसके प्रतिद्वंद्वी फिल्मों की तुलना में।
निष्कर्ष (Conclusion):
“आंखों की गुस्ताखियां” एक ऐसी फिल्म है जो उन दर्शकों को पसंद आ सकती है जो शांत, भावुक और क्लासिक रोमांस को पसंद करते हैं। यह फिल्म उन आंखों की बात करती है जो लफ्ज़ों से परे होती है।
शनाया कपूर ने एक ठीक-ठाक शुरुआत की है। हालांकि उनकी अभिनय क्षमता को अभी और निखारने की जरूरत है, लेकिन इस फिल्म ने उन्हें एक अच्छी लॉन्चिंग पैड दी है।
अगर आप रोमांस के पुराने अंदाज़ के दीवाने हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है – लेकिन तेज़-तर्रार, मसाला फिल्मों की उम्मीद से बिल्कुल न जाएं।
रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)
“खामोश मोहब्बत की एक साधारण लेकिन खूबसूरत पेशकश।”
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