Bihar SIR News: बिहार में इस समय चुनावी चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा मतदाता सूची है। विधानसभा चुनाव करीब हैं, लेकिन 65 लाख मतदाता ऐसे हैं जिनके नाम अब तक वोटर लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए हैं।
यह कोई सामान्य संख्या नहीं है, बल्कि बिहार के कुल मतदाताओं का लगभग 8% हिस्सा इस स्थिति से प्रभावित है। ऐसे में यह सवाल सभी के ज़ेहन में है — क्या ये लोग वोट नहीं डाल पाएंगे?
इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। विपक्ष संसद से लेकर सड़क तक इस मुद्दे को उठा रहा है और चुनाव आयोग पर लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी का आरोप लगा रहा है।
क्या है SIR? क्यों चर्चा में है यह प्रक्रिया?
SIR यानी Special Intensive Revision दरअसल एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए वोटर लिस्ट को अपडेट किया जाता है। इसमें नए नाम जोड़े जाते हैं, पुराने हटाए जाते हैं और गलतियों को ठीक किया जाता है।
बिहार में यह प्रक्रिया इस बार विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि हर पात्र नागरिक का नाम वोटर लिस्ट में होगा।
लेकिन पहले चरण की रिपोर्ट ने सभी को चौंका दिया — करीब 65 लाख लोगों के नाम अब तक सूची में शामिल नहीं हुए हैं। यह एक गंभीर मामला बन गया है, जो अब राजनीतिक और संवैधानिक बहस का विषय बन चुका है।
विपक्ष का हंगामा: संसद से लेकर बिहार विधानसभा तक विरोध
जब SIR रिपोर्ट सामने आई, तो राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई।
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, और कई अन्य विपक्षी नेताओं ने इसे जनमत का गला घोंटना करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है और यह पूरे राज्य की लोकतांत्रिक ताकत को कमजोर कर सकती है।
बिहार विधानसभा में भी इस मुद्दे पर जोरदार हंगामा हुआ। विपक्ष ने सदन में वर्कआउट किया और सरकार से जवाब मांगा कि इन 65 लाख लोगों का भविष्य क्या होगा।
चुनाव आयोग पर उठे सवाल
भारत में चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था माना जाता है। लेकिन बिहार में चल रहे घटनाक्रम को देखते हुए उस पर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं।
विपक्ष का कहना है कि आयोग की ओर से सूचना देने की प्रक्रिया धीमी रही और लोगों को अपने नाम जुड़वाने के लिए पर्याप्त समय और संसाधन नहीं मिले।
कुछ जगहों पर यह भी शिकायतें आई हैं कि ऑनलाइन पोर्टल काम नहीं कर रहे थे, फॉर्म जमा नहीं हो पा रहे थे और बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की सक्रियता भी कम थी।
क्या सच में वोट नहीं डाल पाएंगे 65 लाख लोग?
अब सवाल यह है कि क्या ये सभी 65 लाख लोग चुनाव से बाहर रह जाएंगे? जवाब इतना सरल नहीं है, लेकिन कुछ बातें साफ हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक, अभी SIR प्रक्रिया का अगला चरण बाकी है, जिसमें नाम जुड़वाने का मौका फिर मिलेगा। यानी अभी भी नाम दर्ज करवाने का अवसर मौजूद है।
लेकिन इसके लिए लोगों को खुद आगे आना होगा, फॉर्म भरना होगा, जरूरी दस्तावेज देने होंगे और यह देखना होगा कि उनका नाम समय रहते सूची में आ जाए।
कितनी बड़ी है ये संख्या?
अगर हम आंकड़ों की बात करें तो बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 8 करोड़ है। ऐसे में 65 लाख नामों का गायब होना कोई छोटी बात नहीं है।
यह संख्या कई छोटे राज्यों की पूरी आबादी से भी ज्यादा है। इसका मतलब यह है कि अगर यह गलती सुधारी नहीं गई, तो बिहार के विधानसभा चुनाव में लोकतांत्रिक भागीदारी का बहुत बड़ा हिस्सा वंचित रह सकता है।
क्या है सरकार का पक्ष?
सरकार की ओर से अब तक कोई आक्रामक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन मुख्य चुनाव अधिकारी ने बयान दिया है कि SIR की प्रक्रिया अभी अधूरी है और कोई भी योग्य मतदाता चुनाव से वंचित नहीं रहेगा।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि दूसरे चरण में और तेजी लाई जाएगी और कोशिश होगी कि कोई भी योग्य नागरिक मतदान से वंचित न हो।
क्या इस मुद्दे का फायदा किसी को मिलेगा?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर इतने बड़े स्तर पर मतदाता वंचित रह जाते हैं, तो यह चुनाव के नतीजों को भी प्रभावित कर सकता है।
यह देखा गया है कि शहरी इलाकों, युवा वर्ग और प्रवासी मजदूरों का बड़ा हिस्सा इस सूची से बाहर है, जो आमतौर पर सरकार विरोधी रुझान रखते हैं।
ऐसे में यह मुद्दा सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ-हानि का सवाल भी बन गया है।
क्या कर सकते हैं आम नागरिक?
अगर आप बिहार के निवासी हैं और आपका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है, तो घबराने की ज़रूरत नहीं है।
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आप नेशनल वोटर्स सर्विस पोर्टल (NVSP) पर जाकर चेक कर सकते हैं कि आपका नाम है या नहीं।
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अगर नहीं है, तो फॉर्म 6 भरकर नाम जुड़वाने की प्रक्रिया कर सकते हैं।
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इसके अलावा BLO से संपर्क करके भी आप अपनी स्थिति की जानकारी ले सकते हैं।
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि हर नागरिक को समय मिलेगा और कोई भी पात्र मतदाता वोट से वंचित नहीं रहेगा, बशर्ते वह प्रक्रिया में भाग ले।
आने वाले चुनाव पर असर
बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बार चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं।
ऐसे में अगर 65 लाख वोटर चुनाव से बाहर हो जाते हैं, तो यह एक लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा झटका होगा।
यह ना सिर्फ चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाएगा, बल्कि जनता के मन में यह विश्वास भी डगमगाएगा कि उनकी आवाज़ सुनी जा रही है या नहीं।
सतर्क नागरिक ही सशक्त लोकतंत्र की नींव
SIR विवाद ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में निष्क्रिय रहना अब विकल्प नहीं रह गया है।
अगर हम चाहते हैं कि हर वोट की अहमियत बनी रहे, तो हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। वोटर लिस्ट में नाम है या नहीं — यह जांचना, फॉर्म भरना, दस्तावेज देना — ये सब अब जरूरी हैं।
साथ ही, सरकार और चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वो जमीनी स्तर पर पारदर्शिता और जागरूकता सुनिश्चित करें, ताकि किसी भी नागरिक का मतदान का अधिकार न छीना जाए।
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