संविधान हत्या दिवस: 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने के 50 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार ने इसे एक महत्वपूर्ण मोड़ मानते हुए इस दिन को आधिकारिक रूप से ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य उस समय संविधान पर जो हमला हुआ, प्रेस‑विरोधी कदम उठाए गए, मौलिक अधिकार निलंबित किए गए, और लोकतंत्र की ताक़त को कुचला गया — उसे याद कर भविष्य में ऐसी घोर सत्ता के दुरुपयोग की पुनरावृत्ति को रोकना है।

टाइमलाइन: 25 जून का ऐतिहासिक महत्व:
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12 जून 1975: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को 6 वर्षों तक किसी भी पद पर बैठने से रोक दिया।
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24 जून 1975: इंदिरा गांधी का सुप्रीम कोर्ट में समय‑सीमा पर फैसला स्वीकार हुआ, लेकिन न्यायपालिका ने उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने दिया ।
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25 जून 1975: राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सलाह पर अनुच्छेद 352 लागू किया, जिससे आपातकाल की घोषणा हुई — लोकतांत्रिक अधिकारों की स्वतंत्रता निलंबित हो गई।
इस मोड़ पर प्रेस सेंसरशिप आई, विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार किया गया (जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी समेत)।
संजय गांधी की संतमुक्त नसबंदी नीति ने मानवाधिकार की सीमा पार कर दी।
🎯 केंद्र सरकार की समझ:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “हमने एक अंधकारमयी अध्याय को इसलिए नाम दिया है क्योंकि हमारा देश डिक्टेटरशिप को कभी स्वीकार नहीं करेगा।” इसके तहत हर वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा ।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर कहा:
“आज हम संविधान और संसद की आवाज़ को दबाए जाने के खिलाफ संघर्ष करने वालों को श्रद्धांजलि देते हैं … 42वें संशोधन और प्रेस सेंसरशिप पर हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए” ।
🌱 राज्यों में प्रतिध्वनि:
✔️ झारखंड, ओडिशा, आंध्र, अरुणाचल – विविध कार्यक्रम:
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ओडिशा: 21 जून को राज्य‑स्तरीय ‘संविधान हत्या दिवस’ आयोजन के लिए कार्ययोजना तैयार की, जिसमें भाषण, निबंध, प्रदर्शनियां और छात्र‑कार्यक्रम शामिल थे।
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अरुणाचल प्रदेश: पुलिस और जन समुदाय ने लोकतंत्र सुरक्षा की भावना व्यक्त करने वाली रैलियाँ आयोजित कीं; नेताओं ने सतर्कता बनाए रखने की अपील की।
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समाजवादी पार्टी (सपा): उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे ‘संविधान रक्षा दिवस’ के रूप में मनाया — उन्होंने शपथ ली कि लोकतंत्र की रक्षा की जाएगी, और काली पट्टी लगाकर विरोध जताया।

⚖️ राजनीतिक विवाद:
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ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल सीएम): उन्होंने इस दिन को “बड़ी साज़िश, धूर्तता, और लोक कांग्रेस की राजनीति” कहा; और बंगाल में इसे मानने से इनकार कर दिया ।
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रविजदास मेहत्रोत्रा (सपा नेता): बोले कि “संविधान और लोकतंत्र की हत्या हुई” और सपा ने इसे संविधान सुरक्षा दिवस के रूप में मनाया।
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संजय राउत (शिवसेना नेता): उनका दावा है कि “इसमें कुछ नया नहीं; संविधान ने आपातकाल को स्वीकृति दी थी।” उन्होंने केंद्र की आलोचना की कि वे लोकतंत्र के साथ मज़ाक कर रहे हैं।
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राज्य नेता फडणवीस, नड्डा: उन्होंने इसे “भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्याय” का दिन कहा।
🚩 क्यों ट्रेंड कर रहा है अभी?
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50वीं वर्षगांठ – एक ऐतिहासिक मील का पत्थर, जो सहज रूप से सोशल मीडिया और राजनीतिक बहस में शीर्ष पर है।
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राजनीतिक ड्रामे – केंद्र-विपक्ष के बीच यह दिन लेकर बहस जोरों पर है, इसे लेकर बयानबाजी तेज है।
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सामाजिक जागरूकता – छात्र संगठनों, बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों ने इस याद को लोकतांत्रिक चेतावनी के रूप में प्रचारित किया।
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मीडिया कवरेज – हिंदी व क्षेत्रीय चैनलों पर इंटरव्यू और डिबेट्स से यह खबर लगातार बनी हुई है।
🧭 इस दिन की सीख:
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लोकतंत्र रक्षक बने: प्रेस, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सभी स्वतंत्र संस्थानों की रक्षा का अहम् संदेश।
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सत्तापतिक हिंसा के खिलाफ निरंतर सतर्कता: किस तरह सत्ता का केंद्रीकरण लोकतंत्र को कमजोर करता है।
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युवा जागृति: इतिहास को याद करना यही सुनिश्चित करता है कि ऐसी घटनाएँ दोबारा ना हों।
‘संविधान हत्या दिवस’ केवल एक स्मृति दिवस नहीं — यह एक चेतावनी, एक प्रतिबद्धता, और लोकतंत्र की रक्षा का प्रण है। यह हमें ये याद दिलाता है कि कमजोर ताक़तों को पहचानना और उनके खिलाफ खड़ा होना ही लोकतंत्र की आत्मा है।
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