मठ्ठे वाले आलू: भारतीय रसोई में दही या मठ्ठा आधारित सब्जियों का अपना अलग ही स्थान है। उत्तर भारत खासकर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में बनने वाली एक खास सब्जी है — मठ्ठे वाले आलू। यह एक पारंपरिक व्यंजन है जो न केवल स्वाद में लाजवाब होता है बल्कि पचने में भी हल्का होता है। इस व्यंजन की खासियत यह है कि यह बिना प्याज-लहसुन के भी बेहद स्वादिष्ट बनता है, इसलिए यह व्रत या पूजा के दिनों में भी बनाया जाता है।

इतिहास और उत्पत्ति:
मठ्ठे वाले आलू का इतिहास मुख्यतः उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुड़ा हुआ है। विशेष रूप से यह व्यंजन हरिद्वार, रुड़की, सहारनपुर और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यंत लोकप्रिय है। पहाड़ों में दही या मठ्ठा (छाछ) का प्रयोग अक्सर खाना हल्का और सुपाच्य बनाने के लिए किया जाता है। चूंकि पहाड़ों में पहले सब्जियों की उपलब्धता सीमित होती थी, इसलिए आलू को अनेक तरीकों से बनाया जाता था। उसी में से एक प्रयोग था – मठ्ठे में आलू पकाना।
पुराने समय में लोग दही से मठ्ठा बनाकर बची हुई छाछ का सदुपयोग सब्जी में करते थे। इसी से जन्म हुआ मठ्ठे वाले आलू का। बाद में यह व्यंजन धार्मिक आयोजनों, भोजों और पर्वों का हिस्सा बन गया।
कहाँ लोकप्रिय है यह व्यंजन?
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उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्रों में मठ्ठे वाले आलू खासतौर पर त्योहारों या उपवास के बाद बनाए जाते हैं।
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हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थलों पर यह व्यंजन कई आश्रमों और धर्मशालाओं में प्रसाद स्वरूप भी दिया जाता है।
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, और सहारनपुर में यह खासकर गर्मियों में मठ्ठे की ठंडी तासीर के कारण बहुत खाया जाता है।
मठ्ठे वाले आलू की विशेषताएँ:
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बिना प्याज लहसुन के बनता है
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ठंडे मौसम में गर्मागर्म खाने पर शरीर को आराम देता है
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गर्मियों में छाछ की ठंडी तासीर से पाचन में मदद करता है
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व्रत या पूजा में उपयुक्त
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सादा चावल, पूरी, रोटी या कुट्टू की रोटी के साथ सर्व किया जाता है
सामग्री (4 लोगों के लिए)
सामग्री | मात्रा |
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उबले हुए आलू | 4 मध्यम आकार के |
मठ्ठा (छाछ) | 2 कप |
बेसन | 1 बड़ा चम्मच |
हींग | 1 चुटकी |
जीरा | 1/2 छोटा चम्मच |
हल्दी | 1/4 छोटा चम्मच |
हरी मिर्च (बारीक कटी हुई) | 1-2 |
अदरक (कद्दूकस की हुई) | 1 छोटा चम्मच |
सरसों का तेल या घी | 1 बड़ा चम्मच |
धनिया पत्ती (गार्निश के लिए) | 2 बड़े चम्मच |
नमक | स्वाद अनुसार |
बनाने की विधि:
चरण 1: आलू तैयार करना
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आलुओं को उबालकर छील लें।
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उन्हें हाथ से हल्के से तोड़ लें। छोटे-छोटे टुकड़ों में करें, बहुत महीन न करें।
चरण 2: मठ्ठा बेस तैयार करना
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एक कटोरे में मठ्ठा लें और उसमें बेसन मिलाएं।
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किसी व्हिस्क या चमच से अच्छी तरह फेंट लें ताकि गुठलियाँ न रहें।
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इसमें हल्दी और नमक भी मिला लें। आप चाहें तो थोड़ा लाल मिर्च भी डाल सकते हैं।
चरण 3: तड़का लगाना
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एक कढ़ाही में सरसों का तेल या घी गरम करें।
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तेल गरम होने पर उसमें हींग और जीरा डालें।
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जीरा चटकने लगे तो उसमें हरी मिर्च और अदरक डालें।
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कुछ सेकंड भूनें ताकि खुशबू आने लगे।
चरण 4: बेस मठ्ठा डालना
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अब धीरे-धीरे मठ्ठा-बेसन का मिश्रण डालें।
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गैस को मीडियम फ्लेम पर रखें और लगातार चलाते रहें ताकि दही फट न जाए।
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जब मिश्रण उबलने लगे तो उसमें उबले और तोड़े हुए आलू डालें।
चरण 5: पकाना और गाढ़ा करना
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8-10 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं।
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जब सब्जी हल्की गाढ़ी हो जाए और आलू उसमें अच्छी तरह मिक्स हो जाएं तो गैस बंद करें।
चरण 6: परोसना
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ऊपर से कटी हुई हरी धनिया पत्ती डालें।
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गरमागरम मठ्ठे वाले आलू को रोटी, पूरी या चावल के साथ परोसें।
टिप्स और सुझाव:
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अगर मठ्ठा खट्टा हो तो स्वाद और बेहतर आएगा।
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बेसन की मात्रा ज़्यादा न करें, वरना स्वाद भारी हो सकता है।
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छाछ बहुत पतली हो तो थोड़ा दही भी मिला सकते हैं।
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व्रत में सेंधा नमक का प्रयोग करें।
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सरसों का तेल विशेष स्वाद देता है, घी में भी बना सकते हैं।
पोषण और स्वास्थ्य लाभ:
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मठ्ठा पेट को ठंडक देता है और पाचन में मदद करता है।
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बेसन में प्रोटीन होता है।
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यह बिना भारी मसालों के बना होने के कारण सभी आयु वर्ग के लिए उपयुक्त है।
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व्रत के बाद हल्का और पौष्टिक भोजन है।
मठ्ठे वाले आलू न केवल स्वाद में अनूठे हैं, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक और पारंपरिक खानपान का एक अहम हिस्सा भी हैं। यह व्यंजन दिखाता है कि कैसे सीमित संसाधनों और साधारण सामग्रियों से भी स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन बनाया जा सकता है। आज भी उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जब कोई पूजा-पाठ या धार्मिक आयोजन होता है, तो मठ्ठे वाले आलू अक्सर प्रसाद या भोजन का हिस्सा होते हैं।

यदि आपने इसे कभी नहीं चखा है, तो अगली बार ज़रूर ट्राई करें — मठ्ठे वाले आलू, उत्तर भारत की विरासत का एक अनमोल स्वाद!
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