London Protest Violence: लंदन में भड़की विद्रोह की आग, ‘Unite the Kingdom’ मार्च में लाखों लोग सड़कों पर, पुलिस और प्रदर्शनकारियों में भीषण झड़प

London Protest Violence: नेपाल और फ्रांस के बाद अब यूनाइटेड किंगडम की राजधानी लंदन में भी विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी है। शनिवार को लंदन की सड़कों पर लाखों लोग उतर आए। यह विशाल प्रदर्शन ब्रिटिश एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में आयोजित “Unite the Kingdom” मार्च था। शुरुआत शांतिपूर्ण रही लेकिन कुछ ही देर में हालात हिंसक हो गए और पुलिस व प्रदर्शनकारियों के बीच भीषण झड़पें शुरू हो गईं।

कब और क्यों हुआ यह प्रदर्शन | London Protest Violence

यह मार्च अवैध प्रवासियों के खिलाफ आयोजित किया गया था। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि अवैध प्रवासियों को देश से बाहर किया जाए और ब्रिटिश नागरिकों की सुरक्षा व अधिकारों को प्राथमिकता दी जाए।
इस साल इंग्लिश चैनल के रास्ते 28,000 से ज़्यादा प्रवासी ब्रिटेन पहुंचे हैं, जिससे आम नागरिकों में नाराज़गी बढ़ी है। हाल ही में एक इथियोपियाई प्रवासी द्वारा 14 साल की एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न की घटना ने इस गुस्से को और भड़का दिया। यही वजह रही कि प्रदर्शन के दौरान भीड़ का जोश हिंसा में तब्दील हो गया।

भीड़ का आकार और माहौल

मार्च में शामिल लोगों की संख्या ने सभी को चौंका दिया। बताया जा रहा है कि करीब एक लाख से डेढ़ लाख लोग इसमें शामिल हुए। लंदन के व्हाइटहॉल और ट्राफलगर स्क्वायर जैसे इलाकों में यह भीड़ पुलिस के लिए सिरदर्द साबित हुई।
वहीं दूसरी तरफ “स्टैंड अप टू रेसिज़्म” नाम से एक अलग विरोध प्रदर्शन भी चल रहा था, जिसमें लगभग 5,000 लोग शामिल थे। जब पुलिस ने इन दोनों गुटों को अलग रखने की कोशिश की, तभी झड़पें शुरू हो गईं।

पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़प

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जैसे-जैसे भीड़ बेकाबू हुई, पुलिस को मजबूरन सख्ती दिखानी पड़ी। लेकिन हालात इस कदर बिगड़े कि 26 पुलिसकर्मी घायल हो गए, जिनमें से कई गंभीर हालत में हैं। घायल पुलिसवालों में किसी का जबड़ा टूटा, किसी के सिर में गहरी चोट आई तो किसी के दांत टूट गए।
हिंसा में शामिल लोगों पर काबू पाने के लिए पुलिस ने अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया है और बाकी दंगाइयों की पहचान की जा रही है।

टॉमी रॉबिन्सन और उनके विचार

मार्च का नेतृत्व कर रहे टॉमी रॉबिन्सन का असली नाम स्टीफन याक्सली-लेनन है। वे इंग्लिश डिफेंस लीग के संस्थापक हैं और ब्रिटेन के सबसे बड़े दक्षिणपंथी नेताओं में गिने जाते हैं। रॉबिन्सन लंबे समय से एंटी-इमिग्रेशन और एंटी-इस्लाम विचारधारा के कारण विवादों में रहते आए हैं।
इस बार उन्होंने जनता से सीधे कहा कि अब वक्त आ गया है कि ब्रिटेन अपनी पहचान और संस्कृति की रक्षा करे और अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकाले।

एलन मस्क का वीडियो संदेश

इस मार्च को और ज्यादा सुर्खियों में ला दिया अरबपति एलन मस्क के वीडियो संदेश ने। मस्क ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिटेन में लोगों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल करने से डर लगता है। उन्होंने इस प्रदर्शन को “ब्रिटेन के राजनीतिक बदलाव की शुरुआत” बताया। मस्क के इस बयान ने ब्रिटिश राजनीति में हलचल मचा दी है और सरकार पर दबाव और बढ़ गया है।

सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया

ब्रिटिश सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लिया है। अधिकारियों ने साफ कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन हिंसा को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
गृह मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि जो लोग कानून तोड़ते पाए जाएंगे उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। पुलिस भीड़ में शामिल हर उस व्यक्ति की पहचान कर रही है जिसने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया या सुरक्षा बलों पर हमला किया।

समाज में बढ़ती खाई

यह घटना ब्रिटेन में गहरी सामाजिक खाई को उजागर करती है। एक ओर लाखों लोग अवैध प्रवासन को देश की सबसे बड़ी समस्या मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ गुट इसे मानवाधिकार और शरणार्थियों की सुरक्षा का मामला बता रहे हैं।
“स्टैंड अप टू रेसिज़्म” जैसे संगठन लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि प्रवासियों को शरण देना ब्रिटेन की ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा है। जबकि दक्षिणपंथी संगठनों का कहना है कि अवैध प्रवासी देश की सुरक्षा और संसाधनों पर भारी बोझ डाल रहे हैं।

आगे क्या होगा?

लंदन में हुआ यह विशाल और हिंसक प्रदर्शन ब्रिटिश राजनीति में बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। यह साफ हो चुका है कि अवैध प्रवासन का मुद्दा आने वाले समय में चुनावों तक असर डालेगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर सरकार ने सख्त कदम नहीं उठाए तो ऐसे प्रदर्शन आगे और बड़े स्तर पर देखने को मिल सकते हैं। वहीं, विपक्षी दल और मानवाधिकार संगठन सरकार पर प्रवासन नीति को लेकर पहले ही दबाव बना रहे हैं।

लंदन का यह प्रदर्शन सिर्फ एक मार्च नहीं था बल्कि ब्रिटेन की राजनीति, समाज और संस्कृति में गहराती खाई का प्रतिबिंब था। लाखों लोगों का सड़कों पर उतरना यह दिखाता है कि प्रवासन का मुद्दा अब सिर्फ राजनीतिक बहस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह आम जनता के गुस्से और असंतोष का सीधा रूप बन चुका है।
अब देखना यह होगा कि सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है और क्या ब्रिटेन एक संतुलन बनाकर आगे बढ़ पाएगा या फिर यह विद्रोह आने वाले दिनों में और भी भड़क जाएगा।

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