आड़ू का जाम: आड़ू यानी पीच (Peach), एक रसीला और मीठा फल जो गर्मियों में खासा पसंद किया जाता है। इसकी मुलायम त्वचा और खट्टा-मीठा स्वाद इसे न केवल खाने में स्वादिष्ट बनाता है, बल्कि जाम, जैली, मिठाइयों और डेज़र्ट में भी लोकप्रिय बनाता है। खासतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में आड़ू की खेती बड़े पैमाने पर होती है। उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर के बागानों में उगने वाले आड़ू से बनने वाला जाम वहां के लोगों के लिए एक पारंपरिक मिठास भी है।

इतिहास और कहानी:
आड़ू की उत्पत्ति चीन से मानी जाती है और यह माना जाता है कि चीन के शाही दरबार में यह “अमरता का फल” कहा जाता था। फिर यह मध्य एशिया होते हुए यूरोप और भारत पहुंचा। भारत में विशेषकर उत्तर भारत के ठंडे क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है।
पहाड़ों में जब लोग गर्मियों में आड़ू का मौसम देखते थे, तो एक बार में बहुत सारे फल पक जाते थे। ताजे फल तो खा लिए जाते, लेकिन बचे हुए फलों को लंबे समय तक संरक्षित करने के लिए महिलाओं ने जाम और चटनी बनाना शुरू किया। इस तरह आड़ू का जाम पारंपरिक घरेलू विधियों से बनने लगा।
आड़ू का जाम बनाने की विधि:
सामग्री (4-5 जार के लिए):
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पके हुए आड़ू – 1 किलो
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चीनी – 750 ग्राम से 1 किलो (स्वादानुसार)
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नींबू का रस – 2 बड़े चम्मच
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दालचीनी (वैकल्पिक) – 1 टुकड़ा
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इलायची पाउडर (वैकल्पिक) – ½ चम्मच
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पानी – ½ कप
चरण 1: आड़ू की तैयारी
सबसे पहले पके हुए आड़ू को अच्छी तरह धो लें। चाहें तो छिलका हटा सकते हैं, लेकिन पहाड़ों में इसे छिलके समेत ही पकाया जाता है क्योंकि छिलके में भी बहुत फाइबर होता है।
अब आड़ू को बीच से काटकर गुठली निकाल लें और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें।

चरण 2: पकाने की प्रक्रिया
एक भारी तले वाला पैन लें। उसमें कटे हुए आड़ू और ½ कप पानी डालें। गैस धीमी आंच पर चालू करें और लगभग 15 मिनट तक आड़ू को पकाएं ताकि वो नरम हो जाएं। अब गैस बंद करें और ठंडा होने दें।
चरण 3: मैश करना
पके हुए आड़ू को मैशर या मिक्सी से हल्का पीस लें। यदि आप स्मूद जाम पसंद करते हैं तो अच्छी तरह पीसें, और अगर आपको थोड़े टुकड़े पसंद हैं तो मोटा-मोटा रहने दें।
चरण 4: चीनी और नींबू का रस डालना
अब पिसे हुए आड़ू को फिर से उसी पैन में डालें। उसमें चीनी और नींबू का रस मिला दें। नींबू का रस जाम को लम्बे समय तक खराब होने से बचाता है और गाढ़ापन लाने में भी मदद करता है।
चरण 5: जाम को पकाना
अब इस मिश्रण को धीमी आंच पर पकाएं। बीच-बीच में चलाते रहें ताकि नीचे से ना जले। इसे लगभग 30-40 मिनट तक पकाएं जब तक जाम गाढ़ा ना हो जाए।
यदि आप दालचीनी या इलायची का स्वाद देना चाहते हैं तो इसे इसी समय डालें।
जाम के गाढ़ा होने की पहचान: एक प्लेट में थोड़ा जाम गिराकर देखें, अगर वह बहता नहीं है और सतह पर स्थिर रहता है तो आपका जाम तैयार है।
चरण 6: बोतल में भरना
गैस बंद करें और जाम को थोड़ा ठंडा होने दें। फिर इसे साफ और सूखी कांच की बोतलों या जार में भरें। जार को अच्छी तरह बंद करके ठंडी और सूखी जगह पर रखें।
सेल्फ-लाइफ बढ़ाने के सुझाव:
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नींबू का रस मिलाना अनिवार्य है।
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यदि संभव हो तो उबले हुए जार में जाम भरें।
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एक बार खोलने के बाद फ्रिज में रखें और साफ चम्मच से ही निकालें।
आड़ू का जाम बनाना जितना आसान है, उतना ही स्वादिष्ट भी होता है। जब सर्दियों में गर्म टोस्ट पर गर्म जाम लगाकर खाया जाए, तो वह स्वाद सीधे गर्मियों की पहाड़ी बग़ीचों की याद दिलाता है। यह सिर्फ एक रेसिपी नहीं, बल्कि एक परंपरा है जिसे हर घर में अपनाया जाना चाहिए।
एक लोककथा जैसी कहानी:
उत्तराखंड के एक छोटे से गांव “पेपलसारी” में एक बुज़ुर्ग दादी रहती थीं – सब उन्हें दादी सोंझी कहते थे। उनके बगीचे में आड़ू के इतने पेड़ थे कि गर्मियों में पूरा गांव वहां आ जाता था। बच्चे पेड़ों से आड़ू तोड़ते, महिलाएं टोकरी भरतीं, और दादी सोंझी उन्हें आंगन में बैठाकर कहानियां सुनातीं।
एक बार बहुत ज़्यादा आड़ू एक साथ पक गए। गांव के लोग परेशान हो गए कि इतने सारे आड़ू जल्दी खराब हो जाएंगे। तभी दादी सोंझी ने अपना लकड़ी का पुराना बक्सा खोला, जिसमें पुरानी रेसिपियों का खजाना था। उन्होंने सबको कहा:
“अब आड़ू को सिर्फ खाओ मत, उसे बोतल में बंद कर लो – जैसे पहाड़ की यादें बंद होती हैं दिल में।”
फिर क्या था, उन्होंने गांव की महिलाओं को आड़ू का जाम बनाना सिखाया। बड़े तामझाम से नहीं – चूल्हे पर, मिट्टी के बर्तन में, लकड़ी की आग पर धीरे-धीरे पकता आड़ू, और उसमें दालचीनी की खुशबू।
जब जाम तैयार हुआ, तो पूरे गांव में उसकी खुशबू फैल गई। बच्चों ने रोटी में लगाकर खाया, बुज़ुर्गों ने चाय के साथ। और दादी सोंझी ने मुस्कुराते हुए कहा –
“ये आड़ू नहीं, ये पहाड़ की मिठास है। इसे बचाकर रखना, जैसे अपनी जड़ों को रखते हैं।”
आज भी जब पेपलसारी गांव में कोई आड़ू का जाम बनाता है, तो सबसे पहले दादी सोंझी की वही रेसिपी खोली जाती है – और कहा जाता है,
“पहाड़ की मिठास बोतल में बंद, दादी सोंझी का जादू अब हर घर के अंदर।”
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