बेसन की सब्जी (गट्टा करी): इतिहास, उत्पत्ति और राजसी प्रेम की कहानी

गट्टा करी: भारतीय व्यंजन संस्कृति में बेसन (चना दाल का आटा) एक ऐसा घटक है, जो न केवल विविधता में राजा है, बल्कि आपातकालीन भोजन का भी आधार बनता है। “बेसन की सब्जी” या जिसे हम “गट्टा करी” के नाम से भी जानते हैं, विशेष रूप से हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अत्यंत लोकप्रिय रही है। यह व्यंजन शुद्ध शाकाहारी होते हुए भी अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक और पेट भरने वाला होता है।

गट्टा करी
गट्टा करी

गट्टा करी का इतिहास और उत्पत्ति:

1. शुष्क प्रदेशों की देन:

गट्टा करी का जन्म मुख्य रूप से राजस्थान और हरियाणा के शुष्क इलाकों में माना जाता है, जहाँ पानी की कमी और सब्जियों की सीमित उपलब्धता के कारण लोगों ने बेसन जैसे सूखे आटे से भोजन बनाने की अनोखी कला विकसित की। राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र और हरियाणा के अर्ध-शुष्क इलाकों में यह व्यंजन घर-घर की रसोई में बनता था।

बेसन, जो कि चने को पीसकर बनाया जाता है, लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है, और यही इसका सबसे बड़ा गुण है। जब हरी सब्जियाँ नहीं होती थीं, तब महिलाएं बेसन से गट्टे बनाकर उन्हें मसालेदार ग्रेवी में डाल देती थीं — और इस तरह जन्म हुआ “गट्टा करी” का।

2. हरियाणवी संस्कृति में स्थान:

हरियाणा में “बेसन की सब्जी” त्यौहारों, विवाहों और विशेष अवसरों पर बनाई जाती थी। जब घर में कोई खास मेहमान आता था, और ताज़ी सब्जियाँ उपलब्ध नहीं होती थीं, तो यही बेसन की सब्जी शाही सत्कार का प्रतीक बन जाती थी।

हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इसे “गट्टे की सब्जी” या “बेसन वड़ी करी” कहा जाता है। यह दही, हल्दी, धनिया, जीरा और गरम मसाले से बनी तीखी और गाढ़ी ग्रेवी में पकाई जाती है।

राजसी इतिहास:

1. बीकानेर रियासत और गट्टे की रसोई:

इतिहासकार मानते हैं कि बीकानेर और जयपुर की रियासतों में, जहाँ गर्मियों में ताज़ी सब्जियाँ आसानी से नहीं मिलती थीं, वहाँ बेसन की गट्टा करी राजाओं को परोसी जाती थी। एक लोक-कथा के अनुसार, बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह (1872–1943) को बेसन के गट्टे अत्यंत प्रिय थे। वे जब भी किसी सैन्य यात्रा पर निकलते, तो उनके रसोईए बेसन साथ लेकर चलते और गट्टे बनाकर राजा को परोसते।

2. हरियाणा के देसी राजा और ग्रामीण भोज:

हरियाणा में राजा करन सिंह (जिनका नाम करनाल से जुड़ा हुआ है), उन्हें लोक कथाओं में बहुत ही सादा और देसी भोजन पसंद करने वाला राजा बताया गया है। कहा जाता है कि उन्होंने कई बार दरबार में दावतों के दौरान ‘बेसन की सब्जी’ को प्रमुख व्यंजन के रूप में परोसा। उनके भोजन में जब मांसाहारी पकवान नहीं होते, तब यही शुद्ध शाकाहारी गट्टा करी उनका पसंदीदा विकल्प बन जाती थी।

बनावट और व्यंजन की विशेषताएं:

1. गट्टे कैसे बनते हैं:

बेसन में नमक, अजवाइन, लाल मिर्च, हल्दी, हींग और थोड़ा सा दही मिलाकर आटा गूंथा जाता है। इस आटे को उबालकर गट्टे (रोल्स) तैयार किए जाते हैं, जिन्हें बाद में टुकड़ों में काटकर ग्रेवी में पकाया जाता है।

2. ग्रेवी की रचना:

दही आधारित ग्रेवी बनाई जाती है जिसमें जीरा, हींग, मेथी दाना, हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और गरम मसाले का प्रयोग होता है। कभी-कभी प्याज-लहसुन का तड़का भी लगाया जाता है, लेकिन पारंपरिक हरियाणवी और राजस्थानी शैली में बिना लहसुन-प्याज भी यह व्यंजन बेहद स्वादिष्ट बनता है।

गट्टा करी
गट्टा करी

हरियाणवी बेसन की गट्टा करी रेसिपी (200 शब्दों में)

सामग्री (4 लोगों के लिए):

  • बेसन – 1 कप

  • दही – 1 कप (फेंटा हुआ)

  • हींग – 1 चुटकी

  • अजवाइन – ½ चम्मच

  • नमक – स्वादानुसार

  • हल्दी – ½ चम्मच

  • लाल मिर्च पाउडर – 1 चम्मच

  • धनिया पाउडर – 1 चम्मच

  • जीरा – 1 चम्मच

  • गरम मसाला – ½ चम्मच

  • तेल – 2-3 बड़े चम्मच

  • पानी – आवश्यकतानुसार

विधि:
बेसन में नमक, अजवाइन, हल्दी और थोड़ा सा तेल डालकर सख्त आटा गूंथ लें। इससे पतले रोल (गट्टे) बना लें और उबलते पानी में 10-15 मिनट पकाएं। पकने के बाद निकालकर टुकड़ों में काटें।

अब कढ़ाई में तेल गरम करें, उसमें जीरा और हींग का तड़का लगाएँ। फिर दही में हल्दी, लाल मिर्च, धनिया पाउडर मिलाकर कढ़ाई में डालें और धीमी आंच पर पकाएं। जब मसाला तेल छोड़ने लगे, तो उसमें उबले हुए गट्टे डालें। थोड़ा पानी डालकर 5-7 मिनट मध्यम आंच पर पकाएं।

ऊपर से गरम मसाला डालें और धनिया पत्ती से सजाएं।

परोसने का तरीका:
बाजरे या गेहूं की रोटी, या जीरे वाले चावल के साथ गरमागरम परोसें।

सांस्कृतिक महत्व:

1. ग्रामीण विवाह भोज में गट्टा करी:

हरियाणा और राजस्थान के कई ग्रामीण अंचलों में आज भी शादी-ब्याह के भोज में गट्टा करी को “प्योर शाकाहारी शाही डिश” माना जाता है। यह व्यंजन मुख्य रूप से बाजरे या गेहूं की रोटी के साथ खाया जाता है।

2. व्रत और त्योहार:

यह सब्जी व्रत वाले दिनों में भी बनती है, खासकर जब प्याज-लहसुन का उपयोग नहीं किया जा सकता। गट्टा करी को प्रसाद के रूप में भी तैयार किया जाता है, खासकर नवमी और पूर्णिमा जैसे अवसरों पर।

स्वास्थ्य लाभ:

  • प्रोटीन युक्त: चने के बेसन में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है।

  • फाइबर से भरपूर: गट्टा करी पेट को साफ रखने और पाचन क्रिया में सहायता करता है।

  • कम फैट, हाई एनर्जी: यह व्यंजन कम तेल में भी बन सकता है और फिर भी ऊर्जा से भरपूर होता है।

अन्य भाषाई व क्षेत्रीय नाम:

क्षेत्र नाम
हरियाणा बेसन की सब्जी, गट्टा करी
राजस्थान गट्टे की सब्जी
यूपी (बुंदेलखंड) बेसन वड़ी करी
गुजरात बेसन वलु शाक

“बेसन की सब्जी” या “गट्टा करी” केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है। यह उन लोगों की रचनात्मकता और जीवटता की मिसाल है, जिन्होंने सीमित संसाधनों में भी स्वाद और पोषण का ऐसा अद्भुत समन्वय किया। चाहे वह बीकानेर के महाराजा हों, या हरियाणा के देसी राजाओं की थाली — इस व्यंजन ने सभी का दिल जीता है।

आज भी जब रसोई में सब्जियाँ कम पड़ जाएँ, तो गट्टा करी हमारी रसोई को राजसी स्वाद से भर देती है। यही इसकी सच्ची पहचान है — सादा, शुद्ध, परिपूर्ण।

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लौकी के कोफ्ते की रेसिपी, इतिहास और स्वास्थ्यवर्धक राज

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