भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। केरल स्थित कालिकट विश्वविद्यालय (Calicut University) के वैज्ञानिकों ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस विश्वविद्यालय के Nano Science और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Nanoscience and Technology) के शोधकर्ताओं ने गोल्ड-कॉपर मिश्रधातु (Gold-Copper alloy) से अत्याधुनिक नैनो क्लस्टर आधारित एलईडी (NC-LED) विकसित की है जिसकी बाह्य क्वांटम दक्षता (External Quantum Efficiency – EQE) 12.6% है—जो कि इस प्रकार के एलईडी के लिए वैश्विक स्तर पर सबसे ऊंची दक्षताओं में से एक है।
अनुसंधान का नेतृत्व: भारतीय प्रतिभा का वैश्विक प्रदर्शन
इस शोध कार्य का नेतृत्व Dr शिबु सिधार्थ (Dr Shibu Sidharth) और उनके पीएचडी छात्र Dr रिवल जोस (Dr Rival Jose) ने किया। यह शोध कार्य प्रतिष्ठित जर्नल Advanced Materials (Wiley) में प्रकाशित हुआ है, जिसका इम्पैक्ट फैक्टर 27.4 है। यह पहली बार है जब कालिकट यूनिवर्सिटी से किसी शोध को इतनी उच्च रैंकिंग वाले अंतरराष्ट्रीय जर्नल में स्थान मिला है।
Dr शिबु ने अपने बयान में कहा, “यह केवल तकनीकी दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि भारत के राज्य विश्वविद्यालयों से भी विश्व स्तरीय अनुसंधान संभव है।”
नैनोक्लस्टर आधारित LED: तकनीक में क्रांति
Nano Based LED क्या है?
नैनो आधारित LED (Nano-based Light Emitting Diode) एक विशेष प्रकार की प्रकाश उत्सर्जक डिवाइस होती है जो परंपरागत अर्धचालक सामग्रियों के बजाय नैनोमटेरियल्स जैसे कि नैनोक्लस्टर, क्वांटम डॉट्स, या नैनोवायर पर आधारित होती है। इनमें प्रयुक्त सामग्री का आकार नैनोमीटर (1 नैनोमीटर = 10⁻⁹ मीटर) स्तर का होता है, जिससे इसके प्रकाशिक और इलेक्ट्रॉनिक गुण अद्वितीय हो जाते हैं।
इतने छोटे आकार के बावजूद, ये नैनोक्लस्टर उच्च प्रकाश उत्सर्जन (high photoluminescence), थर्मल और ऑप्टिकल स्थिरता, और पर्यावरणीय अनुकूलता जैसे अद्भुत गुण प्रदर्शित करते हैं।
इन एलईडी की विशेषता है कि यह “सैचुरेटेड प्योर रेड” (saturated pure red) प्रकाश उत्सर्जित करती है, जो कि डिस्प्ले और बायोइमेजिंग जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक वांछनीय होता है।
Nano LED के प्रमुख प्रकार:
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क्वांटम डॉट एलईडी (QD-LED):
सेमीकंडक्टर क्वांटम डॉट्स का उपयोग करके बनती हैं, जो अलग-अलग रंगों की रोशनी उत्सर्जित करती हैं। -
नैनोक्लस्टर आधारित एलईडी (NC-LED):
यह कुछ ही धातु परमाणुओं (जैसे गोल्ड, कॉपर, सिल्वर) से बने क्लस्टर होते हैं जो बहुत शुद्ध और सैचुरेटेड रंग की रोशनी देते हैं। (जैसे कि Calicut University का हालिया शोध) -
नैनोवायर एलईडी:
इनमें बेहद पतले और लंबे नैनोवायर (nanowires) होते हैं जो विद्युत प्रवाह पर उच्च दक्षता से रोशनी उत्पन्न करते हैं।
Nano Based LED की खासियतें:
विशेषता | विवरण |
---|---|
सुपीरियर ब्राइटनेस | छोटे आकार में भी उच्च प्रकाश उत्पादन |
ट्यूनेबल कलर | रंग को बदलना आसान – केवल साइज या संरचना बदलने से |
ऊर्जा दक्षता | पारंपरिक एलईडी से अधिक कुशल और कम ऊर्जा में बेहतर आउटपुट |
लचीलापन | फोल्डेबल, ट्रांसपेरेंट और फ्लेक्सिबल डिस्प्ले के लिए आदर्श |
इको-फ्रेंडली विकल्प | विषैले तत्वों से मुक्त, पर्यावरण के अनुकूल |
पर्यावरण-संवेदी और टिकाऊ समाधान
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस नई एलईडी के निर्माण में न तो कोई विषैला रसायन और न ही कोई दुर्लभ या महंगे तत्वों की आवश्यकता होती है। इसके निर्माण में अपनाई गई प्रक्रिया एक “सॉल्यूशन-प्रोसेस्ड” (solution-processed), इको-फ्रेंडली और स्केलेबल तकनीक है, जो इसे औद्योगिक स्तर पर भी उत्पादन योग्य बनाती है।
पारंपरिक LEDs में प्रयुक्त कैडमियम या लेड जैसे विषैले तत्वों की तुलना में, यह तकनीक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए सुरक्षित है।
Nano आधारित LED कहाँ-कहाँ उपयोगी है?
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डिस्प्ले टेक्नोलॉजी:
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OLED या QLED टीवी, स्मार्टफोन स्क्रीन, स्मार्ट घड़ियां आदि में सुपर-हाई रेजोल्यूशन और कलर डेप्थ के लिए।
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बायोमेडिकल इमेजिंग:
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बायोइमेजिंग और फ्लोरोसेंस तकनीक में, जहाँ बेहद सटीक और तीव्र रोशनी की आवश्यकता होती है।
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स्मार्ट लाइटिंग:
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ऊर्जा बचत और सेंसर-बेस्ड स्मार्ट होम लाइटिंग सिस्टम।
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फोटोडायनामिक थैरेपी (Photodynamic Therapy):
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कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में प्रकाश आधारित उपचार।
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सोलर एनर्जी (LED to Solar Reverse Mode):
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कुछ नैनोक्लस्टर आधारित डिवाइस photovoltaic भी होती हैं—दोनों काम कर सकती हैं: रोशनी उत्पन्न करना और सूर्य की रोशनी से ऊर्जा बनाना।
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इसकी उच्च दक्षता, स्थायित्व और पर्यावरणीय अनुकूलता इसे भविष्य की रोशनी तकनीक का प्रमुख दावेदार बनाती है। भविष्य में इस शोध को और आगे बढ़ाकर पूरे स्पेक्ट्रम (नीला, हरा, लाल) में नैनोक्लस्टर आधारित एलईडी विकसित किए जाने की योजना है। इससे हाई-डेफिनिशन डिस्प्ले और ऊर्जा-कुशल स्मार्ट डिवाइसेज़ के लिए मार्ग प्रशस्त होगा।
अनुसंधान सहयोग और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी
इस शोध में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। भारत में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बेंगलुरु, IIT मद्रास, CSIR-CECRI जैसे संस्थानों के साथ-साथ टेम्पेयर यूनिवर्सिटी (फिनलैंड) और होक्काइडो यूनिवर्सिटी (जापान) जैसे प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों से सहयोग किया गया।
Dr शिबु ने इससे पहले जापान और फ्रांस में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च किया है और उन्हें SERB द्वारा प्रतिष्ठित “रामानुजन फेलोशिप” से भी नवाज़ा गया है।
तकनीकी उपलब्धियां और आंकड़े
मापदंड | विवरण |
---|---|
तकनीक | गोल्ड-कॉपर नैनोक्लस्टर आधारित एलईडी |
बाह्य क्वांटम दक्षता (EQE) | 12.6% |
प्रकाश उत्सर्जन | सैचुरेटेड प्योर रेड |
निर्माण विधि | सॉल्यूशन-प्रोसेस्ड, इको-फ्रेंडली |
प्रमुख शोधकर्ता | Dr शिबु सिधार्थ |
सहयोगी संस्थान | IISc, IITM, Tampere (Finland), Hokkaido (Japan) |
जर्नल | Advanced Materials (IF: 27.4) |
भारत की भूमिका और भविष्य की राह
भारत सरकार “Make in India” और “National Nano Mission” के तहत इस प्रकार की तकनीकों को बढ़ावा दे रही है। नैनो-एलईडी जैसी टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में आत्मनिर्भर भारत की नींव रख सकती हैं।
भविष्य के लक्ष्य:
- पूर्ण RGB (Red-Green-Blue) रेंज में नैनोक्लस्टर एलईडी का विकास
- मोबाइल और टीवी डिस्प्ले में बड़े स्तर पर उपयोग
- फ्लेक्सिबल और वियरेबल डिवाइसेज़ के लिए लाइटिंग सॉल्यूशन
नैनोक्लस्टर एलईडी बनाम पारंपरिक एलईडी: तुलना
विशेषता | नैनोक्लस्टर एलईडी | पारंपरिक एलईडी |
---|---|---|
सामग्री | गोल्ड-कॉपर नैनोक्लस्टर | इनॉर्गेनिक सेमीकंडक्टर |
दक्षता | अत्यधिक (12.6% EQE) | सामान्यतः कम |
पर्यावरणीय अनुकूलता | उच्च | मध्यम से कम |
निर्माण विधि | सॉल्यूशन आधारित | जटिल |
टॉक्सिक सामग्री | नहीं | हाँ (जैसे कैडमियम) |
भारत की वैज्ञानिक क्षमता का प्रतीक
Dr शिबु की अकादमिक यात्रा—St. Thomas College, Thrissur से लेकर IIT मद्रास में Padma Shri Prof T. Pradeep के अधीन पीएचडी तक—भारत में उपलब्ध प्रतिभा और संसाधनों की गवाही देती है। इस शोध ने यह प्रमाणित कर दिया कि यदि सही दिशा, सहयोग और समर्थन मिले तो भारत के राज्य विश्वविद्यालय भी वैश्विक नवाचारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारत की नैनोक्रांति की ओर एक बड़ा कदम
गोल्ड-कॉपर नैनोक्लस्टर आधारित यह एलईडी तकनीक केवल एक वैज्ञानिक सफलता नहीं, बल्कि भारत के तकनीकी आत्मनिर्भरता और स्थायी विकास के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह अनुसंधान न केवल वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को ऊंचा करता है, बल्कि भविष्य की तकनीकी चुनौतियों के समाधान की दिशा में एक ठोस कदम भी है।
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