गर्मियों में जब सूरज आग उगलता है और शरीर थकावट से चूर हो जाता है, तब एक चीज़ है जो शरीर को ठंडक और ताजगी देती है – छाछ (Buttermilk)। यह केवल एक पेय नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति में इसका स्थान औषधीय और पारंपरिक दोनों रूपों में है। छाछ को अलग-अलग राज्यों में मट्ठा, तखर, मोर, चास और करस भी कहा जाता है।
छाछ का इतिहास:
छाछ का इतिहास हजारों साल पुराना है। वेदों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख “तक्र” नाम से मिलता है। आयुर्वेद में तक्र को वात, पित्त और कफ – तीनों दोषों को संतुलित करने वाला बताया गया है। माना जाता है कि ऋषि-मुनि वनों में तपस्या के समय छाछ का सेवन करते थे, क्योंकि यह हल्की, सुपाच्य और शीतल होती थी।
एक लोककथा के अनुसार, एक बार राजा भोज के दरबार में गर्मियों के मौसम में सभी दरबारी गर्मी से बेहाल थे। राजा ने पूछा, “कोई ऐसा पेय बताओ जो प्यास भी बुझाए, स्वास्थ्य भी दे और पेट भी हल्का रखे।” तब एक वृद्ध वैद्य ने छाछ की सलाह दी। अगले ही दिन राजमहल में बड़े-बड़े मटकों में छाछ बनाई गई और सभी को परोसी गई। परिणामस्वरूप सभी दरबारी प्रसन्न और ऊर्जा से भरपूर हो गए।
छाछ बनाने की विधि:
आवश्यक सामग्री (4 लोगों के लिए):
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दही – 1 कप (गाढ़ा)
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ठंडा पानी – 2 कप
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भुना जीरा पाउडर – 1/2 चम्मच
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काला नमक – 1/2 चम्मच (स्वादानुसार)
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साधारण नमक – 1/4 चम्मच
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हरा धनिया – 1 चम्मच (बारीक कटा हुआ)
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पुदीना – 4-5 पत्तियाँ (वैकल्पिक)
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हींग – 1 चुटकी
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अदरक – 1/2 चम्मच (कद्दूकस किया हुआ, वैकल्पिक)
बनाने की विधि:
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दही को मथना
सबसे पहले एक बड़े बर्तन में गाढ़ा दही लें। उसे अच्छे से मथ लें जब तक वह एकसार और क्रीमी ना हो जाए। आप मथने के लिए मथनी या हैंड ब्लेंडर का प्रयोग कर सकते हैं। -
पानी मिलाना
अब इसमें धीरे-धीरे ठंडा पानी मिलाएं और मथते रहें। छाछ बहुत पतली या बहुत गाढ़ी नहीं होनी चाहिए। आप स्वादानुसार पानी की मात्रा घटा-बढ़ा सकते हैं। -
मसाले मिलाना
अब इसमें भुना हुआ जीरा पाउडर, काला नमक, सामान्य नमक, हींग और कद्दूकस किया अदरक डालें। इन्हें अच्छे से मिलाएं। -
फ्लेवर बढ़ाना
अब ऊपर से बारीक कटा हुआ हरा धनिया और पुदीने की पत्तियाँ डालें। पुदीना छाछ को ठंडक और एक अलग ताजगी देता है। -
ठंडा परोसें
छाछ को गिलास में डालें और ऊपर से थोड़ा जीरा पाउडर छिड़कें। चाहें तो बर्फ के टुकड़े डालें और तुरंत परोसें।
छाछ के स्वास्थ्य लाभ:
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पाचन में सहायक – इसमें प्रोबायोटिक्स होते हैं जो पाचनतंत्र को सुधारते हैं।
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गर्मी से राहत – यह शरीर की गर्मी को शांत करती है और डिहाइड्रेशन से बचाती है।
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वजन नियंत्रण – छाछ कम कैलोरी वाला होता है और लंबे समय तक पेट भरा रखता है।
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त्वचा के लिए लाभकारी – त्वचा को ठंडक और नमी प्रदान करता है।
विभिन्न राज्यों में छाछ:
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गुजरात – यहाँ इसे “छास” कहते हैं और दिन के हर भोजन के साथ परोसी जाती है।
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पंजाब – “मसाला छाछ” में तड़का लगाकर इसे खास बनाया जाता है।
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तमिलनाडु – इसे “मोर” कहा जाता है और चावल के साथ खाया जाता है।
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राजस्थान – वहाँ गर्मियों में लोग दही की तुलना में ज्यादा छाछ का सेवन करते हैं।
एक दिलचस्प बात:
पुराने समय में छाछ बनाने के बाद जो मक्खन निकलता था, उसे घर की स्त्रियाँ भगवान को भोग लगाती थीं और बचा हुआ छाछ गरीबों और पशुओं को पिलाया जाता था। यह भारतीय समाज में दान और सेवा का प्रतीक भी माना जाता था।
छाछ एक पारंपरिक पेय होते हुए भी आज के युग में भी अपनी उपयोगिता और स्वाद से सबका दिल जीत रही है। यह सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि हमारी जड़ों, संस्कृति और सेहत से जुड़ा हुआ पेय है। तो इस गर्मी में कोल्ड ड्रिंक नहीं, दादी माँ की छाछ को अपनाइए – सेहत भी सुधरेगी और स्वाद भी मिलेगा।
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