गौतम गंभीर: भारतीय क्रिकेट इतिहास के कई नाम चमके, लेकिन गौतम गंभीर जैसा जुनूनी और आक्रामक खिलाड़ी विरले ही होता है। उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी से भारत को कई अहम मौकों पर जीत दिलाई और मैदान पर अपने रवैये से यह दिखा दिया कि क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि जज़्बातों की लड़ाई भी है। उनकी ज़िंदगी की यात्रा और उनका आक्रामक स्वभाव भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहा है।

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Toggleशुरुआती जीवन:
गौतम गंभीर का जन्म 14 अक्टूबर 1981 को दिल्ली में हुआ था। वह एक व्यापारिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बचपन से ही क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी कुछ अलग थी। उन्होंने मात्र 10 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया। दिल्ली की गलियों से लेकर इंटरनेशनल पिच तक का उनका सफर आसान नहीं था। गंभीर ने अपनी स्कूली शिक्षा मॉडर्न स्कूल, बाराखंभा रोड से पूरी की और फिर हिन्दू कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक किया।
उनके कोच संजय भारद्वाज और रणजी कोच आर. पी. सिंह ने उन्हें एक अनुशासित खिलाड़ी बनाने में अहम भूमिका निभाई। 2003 में बांग्लादेश के खिलाफ उन्होंने वनडे डेब्यू किया और 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट डेब्यू।
क्रिकेट करियर की ऊंचाइयां:
गंभीर का क्रिकेट करियर उतार-चढ़ावों से भरा रहा, लेकिन जब जब उन्हें मौका मिला, उन्होंने खुद को साबित किया। 2007 के टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ उनकी 75 रनों की पारी आज भी याद की जाती है। इसके बाद 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में श्रीलंका के खिलाफ 97 रन की साहसिक पारी ने उन्हें ‘हीरो’ बना दिया।
उनकी ओपनिंग पार्टनरशिप वीरेंद्र सहवाग और बाद में सचिन तेंदुलकर के साथ कमाल की रही। वह टेस्ट में लगातार पांच शतकों का रिकॉर्ड रखने वाले गिने-चुने खिलाड़ियों में से एक हैं।
गौतम गंभीर का आक्रामक स्वभाव:
गंभीर का स्वभाव हमेशा से आक्रामक और स्पष्टवादी रहा है। वह मैदान पर विपक्षी खिलाड़ियों से उलझने से कभी नहीं कतराए। चाहे वह पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी से विवाद हो या ऑस्ट्रेलिया के शेन वॉटसन से तीखी बहस — गंभीर ने हमेशा अपने स्वाभिमान और टीम के सम्मान को प्राथमिकता दी।
उनका मानना था कि क्रिकेट एक जंग है, और हर जंग जीतने के लिए जुनून जरूरी है। वे मैदान पर आक्रामक दिखते थे, लेकिन उनका उद्देश्य कभी व्यक्तिगत नहीं होता था — वह टीम के लिए लड़ते थे।
यहाँ हम उनके क्रिकेट करियर की कुछ सबसे चर्चित “मैदान पर लड़ाई” और विवादों पर नज़र डालते हैं:
1. शाहिद अफरीदी से भिड़ंत (2007):
भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हमेशा ही गर्म माहौल में खेले जाते हैं, और उसमें गंभीर जैसे खिलाड़ी हों तो टकराव तय है।
2007 में एक वनडे मैच के दौरान गंभीर ने रन बनाते हुए अफरीदी से टकरा जाने के बाद उन पर कुछ शब्द कह दिए। अफरीदी ने पलट कर जवाब दिया और फिर दोनों खिलाड़ियों में तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। अंपायर को बीच-बचाव करना पड़ा और मैच के बाद ICC ने दोनों पर जुर्माना भी लगाया।
2. कमाल का ‘वॉटसन-वॉर’ (2008):
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत के मैचों में अक्सर भावनाएं उफान पर होती हैं।
2008 में दिल्ली टेस्ट के दौरान शेन वॉटसन को गंभीर ने रन लेते हुए कोहनी मार दी। यह जानबूझकर किया गया प्रतीत हुआ और बाद में वीडियो में यह स्पष्ट भी हुआ। वॉटसन ने इसका विरोध किया, लेकिन गंभीर ने पलटकर उनकी स्लेजिंग का जवाब दिया।
ICC ने गंभीर पर एक टेस्ट मैच का बैन लगाया। गंभीर ने कहा, “मैंने गलती की, लेकिन मैंने चुप रहकर खेलने का अभ्यास कभी नहीं किया।”
3. विराट कोहली से नोकझोंक (2013 – IPL):
IPL 2013 में कोलकाता नाइट राइडर्स (KKR) बनाम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) के मैच में विराट कोहली आउट होने के बाद जब पवेलियन लौट रहे थे, तब गंभीर ने उन्हें कुछ कहा। कोहली पलटे और दोनों आमने-सामने आ गए। मामला इतना बढ़ा कि बीच में राजत भाटिया को आकर दोनों को अलग करना पड़ा।
यह झगड़ा इसलिए ज्यादा चर्चित रहा क्योंकि कोहली और गंभीर दोनों दिल्ली के खिलाड़ी हैं, और लोगों को उम्मीद थी कि उनके बीच गहरा रिश्ता होगा। हालाँकि, समय के साथ दोनों के संबंधों में सुधार हुआ।

4. कामरान अकमल से बहस (2010 – एशिया कप):
2010 के एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के मैच के दौरान गंभीर और पाकिस्तानी विकेटकीपर कामरान अकमल के बीच तीखी बहस हुई।
अंपायर बिली बोव्डन को दोनों को अलग करना पड़ा। महेंद्र सिंह धोनी को भी बीच में आकर मामले को शांत करना पड़ा। गंभीर मैच के बाद बोले:
“जब देश के लिए खेलते हैं, तो भावनाएं उफान पर होती हैं। मेरा इरादा लड़ाई का नहीं था, पर अपशब्द बर्दाश्त नहीं करता।”
5. रविचंद्रन अश्विन से बहस (IPL 2019):
IPL 2019 में गंभीर कमेंट्री कर रहे थे, और अश्विन द्वारा जोस बटलर को ‘Mankading’ आउट करने के फैसले की उन्होंने कड़ी आलोचना की।
बात यहीं तक नहीं रुकी — ट्विटर पर भी गंभीर ने अश्विन के खेल भावना पर सवाल उठाए, जिसके जवाब में अश्विन ने भी पलटवार किया।
गंभीर की सोच: क्यों थे वो इतने आक्रामक?
गंभीर हमेशा कहते रहे हैं —
“मैं मैदान में मुस्कुराने नहीं, देश के लिए लड़ने जाता हूँ।”
उनका मानना था कि क्रिकेट सिर्फ टेक्निक का खेल नहीं, बल्कि मानसिक मज़बूती का खेल है। आक्रामक रवैया उन्हें प्रेरणा देता था कि वह विरोधी टीम को दबाव में ला सकें।
राजनीतिक सफर
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद गंभीर ने राजनीति की ओर रुख किया। 2019 में वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हुए और पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीते। उनकी छवि एक सख्त, ईमानदार और स्पष्ट बोलने वाले नेता की बनी है। वे दिल्ली में स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर कई योजनाएं चला रहे हैं।
सामाजिक योगदान
गंभीर एक समाजसेवी भी हैं। उन्होंने “गौतम गंभीर फाउंडेशन” की स्थापना की, जो शहीद सैनिकों के परिवारों, भूखमरी और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है। कोरोना काल में उन्होंने हजारों लोगों को मुफ्त खाना और मास्क उपलब्ध कराए।
व्यक्तिगत जीवन
गंभीर ने 2011 में नताशा जैन से विवाह किया। वे दो बेटियों के पिता हैं और परिवार को जीवन का अहम हिस्सा मानते हैं। उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स अक्सर उनके पारिवारिक जीवन की झलक देते हैं, जिससे पता चलता है कि मैदान पर भले ही वह कितने आक्रामक हों, लेकिन निजी जीवन में वे उतने ही संवेदनशील और भावनात्मक हैं।
गंभीर का योगदान और विरासत
गौतम गंभीर ने ना सिर्फ बल्ले से बल्कि अपने व्यक्तित्व से भी लाखों युवाओं को प्रेरित किया है। उनकी पारीयों ने भारत को कई बार जीत दिलाई, लेकिन उनकी सोच, संघर्ष और नेतृत्व क्षमता उन्हें खास बनाती है। उन्होंने यह साबित किया कि अगर इरादा मजबूत हो और दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून हो, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं।
गौतम गंभीर की कहानी सिर्फ एक क्रिकेटर की नहीं है, बल्कि एक योद्धा की है जिसने अपने जुनून, आक्रामकता और मेहनत से भारत को गौरवान्वित किया। उन्होंने यह दिखाया कि आक्रामकता अगर सही दिशा में इस्तेमाल हो तो वह सफलता की कुंजी बन सकती है। मैदान पर उनका जोश और मैदान के बाहर उनका सेवा भाव – दोनों उन्हें एक सच्चे भारतीय नायक के रूप में स्थापित करते हैं।
“गंभीर” नाम भले ही शांत प्रतीत होता हो, लेकिन जब यह मैदान पर उतरता है, तो सिर्फ जीत की आवाज़ गूंजती है।
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