गढ़वाली रोटा: उत्तराखंड की गढ़वाली रसोई में कई ऐसे पारंपरिक व्यंजन हैं जो आज भी गांवों में शुद्ध देसी अंदाज़ में बनाए जाते हैं। इन्हीं व्यंजनों में से एक है “गढ़वाली रोटा”। यह कोई साधारण रोटी नहीं, बल्कि एक मीठा, मोटा, और देसी स्वाद से भरपूर परंपरागत ब्रेड है जिसे खास अवसरों, त्यौहारों और पूजा-पाठ के समय बनाया जाता है। यह गेहूं के आटे, गुड़ या शक्कर और देशी घी से बनाया जाता है, और इसकी खुशबू और स्वाद सीधे बचपन की यादें ताज़ा कर देता है।
इतिहास:
गढ़वाली रोटा का इतिहास उत्तराखंड के पौराणिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से जुड़ा हुआ है। प्राचीन समय में जब संसाधन सीमित थे, तब पर्व-त्योहारों या विशेष पूजा जैसे “भिटोली”, “मेला”, “क्वींठ”, “पितृ तर्पण”, आदि पर घरों में रोटा बनाया जाता था।
पहाड़ों में गुड़ और गेहूं आसानी से उपलब्ध होते थे और घी तो हर घर की भैंस या गाय से आता था। ऐसे में रोटा बनाना आसान, सस्ता और तृप्त करने वाला व्यंजन था। इसे खासतौर पर काले तवे या मिट्टी की अंगीठी पर धीमी आंच में सेंका जाता था, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता था।
मां अपने बच्चों को विदा करते समय भिटोली में रोटा बनाकर देती थीं। यह केवल खाना नहीं, प्रेम, आशीर्वाद और भावनाओं का प्रतीक बन जाता था।
गढ़वाली रोटा बनाने की विधि:
सामग्री:
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गेहूं का आटा – 2 कप
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गुड़ – 1 कप (कद्दूकस किया हुआ या छोटे टुकड़ों में)
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पानी – 1/2 कप (गुड़ घोलने के लिए)
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देशी घी – 2 टेबलस्पून (आटे में मिलाने के लिए) + सेंकने के लिए
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सौंफ – 1 चम्मच (वैकल्पिक)
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इलायची पाउडर – 1/2 चम्मच (स्वाद अनुसार)
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चुटकी भर नमक
बनाने की विधि:
1. गुड़ का घोल बनाना:
सबसे पहले एक पैन में आधा कप पानी गर्म करें और उसमें कद्दूकस किया हुआ गुड़ डालें। जब गुड़ पूरी तरह घुल जाए, तो गैस बंद कर दें और घोल को छान लें ताकि कोई गंदगी या अशुद्धि न रह जाए। घोल को थोड़ा ठंडा होने दें।
2. आटा गूंथना:
अब एक परात में गेहूं का आटा लें। उसमें देशी घी, सौंफ, इलायची पाउडर और चुटकी भर नमक डालें। अब इसमें थोड़ा-थोड़ा करके गुड़ का घोल डालें और सख्त लेकिन चिकना आटा गूंथें। आटा ज्यादा नरम न हो, क्योंकि रोटा मोटा बनाया जाता है।
गूंथने के बाद आटे को ढककर 10-15 मिनट के लिए रख दें।
3. रोटा बनाना:
अब आटे से एक बड़ा गोला लें और उसे बेलन से मोटी रोटी के रूप में बेलें। सामान्य रोटी से यह मोटी होती है, लगभग 1 सेंटीमीटर मोटाई में। आप चाहें तो हाथ से भी थपथपा कर गोल आकार दे सकते हैं।
4. सेंकना:
तवा गरम करें और उस पर हल्का घी लगाएं। अब रोटा को मध्यम आंच पर दोनों तरफ से सेंकें। जब तक वह सुनहरा भूरा न हो जाए और उसमें घी से हल्की करारी परत न बन जाए, तब तक सेकते रहें। चाहें तो सेंकने के दौरान ऊपर से भी थोड़ा घी लगा सकते हैं।
5. परोसने का तरीका:
रोटा को गरमा गरम परोसें। इसे ऐसे ही खाया जा सकता है या फिर दही, माखन या गर्म दूध के साथ। त्योहारों में इसे भोग के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
गढ़वाली रोटा के विशेष उपयोग:
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पितृ पक्ष में रोटा बना कर पितरों को अर्पण किया जाता है।
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किसी सदस्य की यात्रा या विदाई के समय भी रोटा देने की परंपरा रही है।
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भिटोली या भुली की शादी में मां के हाथ का बना रोटा बेटी को दिया जाता है, जो प्रेम का प्रतीक होता है।
स्वास्थ्य लाभ:
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गुड़ में आयरन होता है, जो शरीर में खून की कमी को पूरा करता है।
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घी से शरीर को ऊर्जा मिलती है और पाचन सुधरता है।
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सौंफ और इलायची पाचन में सहायक होती हैं।
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यह सर्दियों में शरीर को गर्म रखने में भी मदद करता है।
गढ़वाली रोटा केवल एक भोजन नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा और भावनाओं का संगम है। यह उत्तराखंड के हर घर की कहानी का हिस्सा रहा है। बदलते समय में भले ही फास्ट फूड और पैकेज्ड खाने ने जगह ले ली हो, लेकिन जब भी रोटा बनता है, घर की रसोई में एक माँ की ममता, दादी की कहानी और पहाड़ की सादगी फिर से जीवित हो जाती है।
तो अगली बार कुछ मीठा, देसी और खास बनाना हो — तो गढ़वाली रोटा ज़रूर ट्राय करें!
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