आड़ू की चटनी: आड़ू यानी ‘पीच’ एक रसीला और सुगंधित फल है जो गर्मियों में खूब आता है। आमतौर पर इसे फल की तरह खाया जाता है या फिर जैम, जूस, आइसक्रीम में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आज हम बात कर रहे हैं आड़ू से बनने वाली एक अनोखी चटनी की, जो स्वाद में ज़रा हटके है। यह चटनी उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर के कुछ हिस्सों में पारंपरिक रूप से बनाई जाती है। खास बात ये है कि इस चटनी में फल का मीठापन, मसालों का तीखापन और नींबू या इमली का खट्टापन—तीनों का मेल होता है।
इतिहास और कहानी:
आड़ू की उत्पत्ति चीन से मानी जाती है। वहाँ इसे “अमरता का फल” कहा जाता था। चीनी दंतकथाओं में आड़ू को देवताओं का प्रिय फल बताया गया है जो अमरत्व देता था। एक पौराणिक कथा में आता है कि हर 3,000 साल में एक बार ‘आड़ू का वृक्ष’ फल देता था और जो कोई उसे खा लेता था, वह अमर हो जाता।
भारत में आड़ू की खेती पहली बार मुगलों के ज़माने में शुरू हुई। खासकर कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल में इसकी पैदावार बढ़ी। वहीं, पहाड़ी इलाकों में खाने-पीने में मौसमी फलों का बड़ा योगदान रहा है। स्थानीय लोगों ने प्रयोग करते हुए आड़ू को चटनी का रूप दिया जो बाद में खास मौकों या त्योहारों में बनने लगी।
आड़ू की चटनी बनाने की विधि:
सामग्री:
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पके हुए आड़ू – 4 मध्यम आकार के
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हरी मिर्च – 2 (स्वादानुसार)
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लहसुन – 4-5 कलियां
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भुना जीरा – 1 चम्मच
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काला नमक – 1/2 चम्मच
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साधारण नमक – स्वादानुसार
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नींबू का रस या इमली का पेस्ट – 1 चम्मच
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पुदीना या धनिया पत्ती – 1 मुट्ठी
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गुड़ या शक्कर – 1 चम्मच (यदि आड़ू ज्यादा खट्टे हों)
वैकल्पिक:
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थोड़ा सा भुना हुआ तिल
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अदरक – 1 छोटा टुकड़ा
बनाने की विधि:
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आड़ू की तैयारी: सबसे पहले आड़ू को अच्छी तरह धो लें। चाहें तो छिलका निकाल सकते हैं, लेकिन अगर छिलके मुलायम हों तो रहने दें—छिलका भी स्वाद और पोषण में योगदान देता है।
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बीज निकालना: आड़ू को काटें और उसका गूदा निकाल लें। बीज फेंक दें।
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मिक्सिंग: अब एक मिक्सर में आड़ू का गूदा, हरी मिर्च, लहसुन, अदरक, धनिया पत्ती, जीरा, काला नमक, सामान्य नमक, और नींबू रस डालें।
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पिसाई: सबको एक साथ पीसें। अगर जरूरत हो तो थोड़ा पानी मिला सकते हैं। पेस्ट ज़्यादा पतला न हो।
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स्वाद अनुसार संतुलन: अब स्वाद चखें। अगर आपको ज्यादा खट्टा लगे तो गुड़ डालें और फिर से पीस लें।
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परोसना: तैयार चटनी को एक कटोरी में निकालें और ऊपर से थोड़ा सा भुना तिल छिड़क दें।
कैसे परोसें:
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इसे गरमा-गरम पराठों के साथ खाइए।
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दाल-चावल या खिचड़ी के साथ इसका स्वाद अनोखा लगता है।
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कुछ लोग इसे समोसे या कचौरी के साथ भी परोसते हैं।
पोषण की बात:
आड़ू में फाइबर, विटामिन C, A और एंटीऑक्सिडेंट भरपूर होते हैं। जब इसे लहसुन, धनिया, और मिर्च के साथ मिलाया जाता है तो यह एक डिटॉक्स चटनी बन जाती है—स्वाद के साथ सेहत का मेल।
चटनी से जुड़ी एक पहाड़ी मान्यता:
उत्तराखंड के पुराने गांवों में कहा जाता है कि “जो आड़ू की चटनी खाए, उसे गर्मियों की लू परेशान नहीं करती।” इसलिए इसे खासतौर पर मई-जून के मौसम में बनाया जाता है। कुछ पुराने घरों में इसे मिट्टी की हांडी में रखकर 1-2 दिन ढककर रखने की परंपरा है जिससे उसमें हल्का खट्टापन आ जाता है।
आड़ू की चटनी सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि हमारे पहाड़ी खानपान की रचनात्मकता का उदाहरण है। जहाँ एक सामान्य फल को मसालों के साथ मिलाकर स्वाद का नया विस्फोट कर दिया गया। यह चटनी इस बात का भी सबूत है कि हमारी परंपराएं और स्वाद, दोनों मिलकर कुछ बेहद खास बना सकते हैं।
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